मशहूर शायर राहत इंदौरी (Rahat Indori) नहीं रहे। कोरोना संक्रमित राहत इंदौरी को दिल का दौरा पड़ा और उनका इंतकाल हो गया। मंगलवार को ही उन्होंने अपने कोरोना पॉजिटिव होने की खबर सोशल मीडिया के माध्यम से दी थी। लोगों से उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए दुआ करने को कहा था। इसी बीच उनके निधन की खबर आई। राहत इंदौरी को इंदौर की छोटी खजरानी स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया।
अपनी जिंदादिली के लिए मशहूर राहत इंदौरी के निधन के बाद तमाम लोग सोशल मीडिया के जरिए अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। उनकी मशहूर शायरी ‘लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना’ खूब साझा की जा रही है। पिछले साल ही जब साहित्य आजतक के मंच पर उनकी जीवनी का लोकार्पण हो रहा था तो राहत इंदौरी ने एक किस्सा भी साझा किया था। उन्होंने कहा, ‘एक दिन एक साहब ने उन्हें कहा कि राहत इंदौरी एक ‘जिहादी’ है। यह सुनकर वे काफी परेशान हो गए और पूरी रात करवटें बदलते रहे और सोचते रहे कि उन्हें ऐसा क्यों कहा गया।’
उन्होंने कहा कि ‘मैं सारी रात बिस्तर पर अपना जायज़ा लेता रहा। रुआ-रुआ नापता रहा कि मैं कहां से जिहादी हूं? सुबह तक उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। तभी उन्हें अज़ान सुनाई दी। उन्होंने उस तरफ इशारा किया और कहा तू ही बता दे क्या हूं मैं जिहादी?। पता चला जिहादी तो नहीं हूं लेकिन कुछ अलग जरूर हूँ’। इसी घटना के बाद राहत इंदौरी ने यह चर्चित शायरी लिखी थी – ‘मैं मर जाऊं तो मेरी एक पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना।’
ग़ज़ल लिखने के लिए दीवानगी जरूरी: राहत इंदौरी कहते थे गज़ल पढ़ने के लिए, गज़ल पढ़ाने के लिए, गज़ल समझने के लिए, गज़ल लिखने के लिए आदमी को थोड़ा दीवाना, आशिक़, उत्साही, पागल और थोड़ा बदचलन होना चाहिए। वही गज़ल को समझ सकता है। आपको बता दें कि राहत इंदौरी ग़ज़ल पढ़ने के खास अंदाज़ के लिए मशहूर थे। वे जब मंच पर झूमकर शायरी पढ़ते तो समां बंध जाता।
आलोचनाओं पर क्या कहते थे? : राहत इंदौरी कहते थे कि मेरे लहज़े को बहुत से लोग कहते हैं कि इसमें गाली है, गुस्सा है, नारा है, शोर की चीख है लेकिन अगर जरा सी हमदर्दी आप मेरे साथ कर लें तो राहत इंदौरी अच्छा लगने लग जाएगा।