अनुपम खेर अपने बेहतरीन किरदारों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हर तरह की फिल्मों में कॉमेडी से लेकर नेगेटिव किरदार अदा किए हैं। अनुपम खेर की फिल्म ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ में भी उनके किरदार की काफी प्रशंसा हुई। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तो कमाल नहीं दिखा पाई लेकिन अनुपम खेर का अभिनय क्रिटिक्स को बहुत पसंद आया। इस फिल्म में अनुपम खेर ने डिमेंशिया से जूझ रहे एक लेक्चरर का किरदार निभाया था।
इस फिल्म में अपने किरदार की तैयारी के लिए अनुपम खेर ने डिमेंशिया से ग्रसित कई लोगों से मुलाकात की जिसके बाद उन्हें समझ आया कि इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की आंखों में एक खालीपन होता है। उन्हें देखकर इस बात का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता कि उनके मन में क्या चल रहा है।
अनुपम खेर ने बहुत कोशिश की कि उनकी आंखों में भी वैसा ही खालीपन आ जाए लेकिन वो ऐसा कर नहीं पा रहे थे। तभी उनके दिमाग में एक तरकीब सूझी और वो समुद्र की तरफ बढ़ गए। वो बिना कुछ सोचे गहरे समुद्र की तरफ बढ़ रहे थे कि पानी के अंदर जाकर डूबने पर उनकी आंखों में एक पल के लिए वो खालीपन जरूर आएगा। तभी उन्हें एहसास हुआ कि उनकी आंखें खाली हैं और वो उस खालीपन को महसूस कर सकते हैं। अनुपम खेर इसके बाद वापस लौट आए और फिल्म की शूटिंग शुरू कर दी थी।
अनुपम खेर को उनकी पहली ही फिल्म के लिए काफी प्रसिद्धि मिली थी। ‘सारांश’ की शूटिंग के वक़्त अनुपम खेर 24 साल के थे लेकिन उन्होंने एक वृद्ध बाप का किरदार निभाया था जिसकी खूब तारीफ हुई थी। इस फिल्म में महेश भट्ट ने उन्हें साइन कर कुछ दिनों बाद संजीव कुमार को ले लिया था।
अनुपम खेर स्ट्रगल करके थक चुके थे और जब उन्होंने ये बात सुनी तो बेहद नाराज़ हुए। उन्होंने मुंबई छोड़ने का फैसला कर लिया था। शहर छोड़ने से पहले वो महेश भट्ट के पास गए और गुस्से में उन्हें खूब भला बुरा कहा था। उनके गुस्से को देख महेश भट्ट ने कहा था कि किरदार के लिए उन्हें इसी तरह के गुस्से की जरूरत है। अनुपम खेर को दोबारा फिल्म मिल गई थी और वहीं से उनका फ़िल्मी सफ़र शुरू हुआ था।