बॉलीवुड इंडस्ट्री के कलाकारों को हर साल उनके परफॉरमेंस के लिए सम्मानित करने के लिए कई अवॉर्ड दिए जाते हैं। वहीं 20 फरवरी को मुंबई में दादा साहब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवॉर्ड्स-2023 की अनाउंसमेंट हुई। इस दौरान छोटे परदे से लेकर बड़े परदे के कई स्टार्स को इस अवार्ड से सम्मानित किया गया। जिसमें विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स को बेस्ट फिल्म, रणबीर कपूर को बेस्ट एक्टर और आलिया भट्ट को बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड दिया गया है।
वहीं फिल्म भेड़िया के लिए वरुण धवन को क्रिटिक बेस्ट एक्टर का तो विद्या बालन को फिल्म जलसा के लिए क्रिटिक बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड मिला। लेकिन जब इस अवॉर्ड की की घोषणा की गई तो सोशल मीडिया पर दादा साहेब फाल्के अवार्ड को लेकर लोगों के बीच एक बड़ा कन्फ्यूजन पैदा हो गया। दरअसल, दादा साहेब इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवॉडर्स और भारत सरकार की ओर से दिया जा रहा दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड अलग-अलग है। आइए आपको बताते हैं कि आखिर दोनो में अंतर क्या है।
दादा साहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवॉर्ड
यह अवॉर्ड भले ही दादा साहब फाल्के के नाम से दिया जा रहा हो, लेकिन भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार से बिल्कुल अलग है। दादा साहब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल अवॉर्ड की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक इस अवॉर्ड की शुरुआत भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादा साहब की याद में 2012 में हुई। वेब साइट के मुताबिक यह इंडिया का एक मात्र इंडिपेंडेंट इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल है, जिसका उद्देश्य फिल्ममेकर के काम को सराहना है। यह अवार्ड कलाकारों को उनके टैलेंट और मेहनत के लिए दिया जाता है। यह अवॉर्ड एक प्राइवेट संस्थान द्वारा शुरू किया गया है। इसके जूरी प्रेसिडेंट दादा साहब फाल्के के पोते चंद्रशेखर पुसलकर हैं।
दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड
दादा साहेब फाल्के सम्मान देश में सिनेमा का सबसे बड़ा राष्ट्रीय सम्मान है जो हर साल किसी ऐसे कालाकार को दिया जाता है जिसने सिनेमा की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया हो। यह अवॉर्ड भारत सरकार द्वारा दिया जाता है। इसकी शुरुआत साल 1969 में हुई थी। यह अवॉर्ड भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादा साहब की याद में दिया जाता है। पहला दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड एक्ट्रेस देविका रानी को दिया गया था।
कौन थे दादा साहेब फाल्के
दादा साहेब फाल्के को हिंदी इंडस्ट्री का जनक कहा जाता है। फाल्के का जन्म 1870 में महाराष्ट्र के त्र्यंबक में हुआ था। उनके पिता गोविंद सदाशिव फाल्के संस्कृत के विद्धान और मंदिर में पुजारी थे। दादा साहेब को फिल्म बनाने का ख्याल ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ देखने के बाद आया था। दादा साहेब ने 1913 में भारत की पहली फीचर फिल्म (मूक फिल्म) राजा हरिश्चंद्र फिल्म का निर्माण किया था। इस फिल्म को बनाने में फाल्के साहेब को 6 महीने का समय लगा था। इस फिल्म का वजट 15 हजार रुपये था। इसके बाद उन्होंने 19 सालों में 95 फीचर फिल्मों का निर्माण किया। दादा साबेह एक डायरेक्टर और प्रोड्यूसर होने के साथ-साथ राइटर भी थे। दादा साहेब की आखिरी मूक फिल्म ‘सेतुबंधन’ थी। दादा साहेब ने 16 फरवरी 1944 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।