90 के दशक के एक्टर विवेक ओबेरॉय (Vivek Oberoi) काफी समय से फिल्मों से दूर थे। उन्होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म प्राइम वीडियो की सीरीज ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ (Indian Police Force) से वापसी की थी और ओटीटी पर छा गए। वो आज भले ही स्टार एक्टर हैं और दिग्गज अभिनेता के बेटे हैं मगर उन्होंने लाइफ में कम उतार-चढ़ाव नहीं देखे हैं। विवेक की लाइफ में भी ऐसा समय रहा था जब उन्हें बुरे दौर से गुजरना पड़ा था। ऐसे में अब एक्टर ने खुलासा किया है कि एक समय ऐसा भी आया था जब उन्होंने एक्टिंग छोड़ने का मन बना लिया था। उन्हें अंडरवर्ल्ड से धमकियां मिल रही थी।
विवेक ओबेरॉय ने अपने करियर की शुरुआत राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘कंपनी’ से की थी। इसके लिए उन्हें काफी तारीफें मिली थी। इसके बाद उन्होंने ‘रोड’, ‘युवा’ और ‘दम’ जैसी फिल्मों में काम किया है, जिसमें उन्होंने अपनी दमदार परफॉर्मेंस के लिए तारीफें बटोरी। फिर ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ में नेगेटिव रोल प्ले किया और इसके लिए अवॉर्ड मिला। लेकिन, फिल्म के 14 महीने उन्हें कोई काम नहीं मिला।
ब्लॉकबस्टर डेब्यू के बाद एक फिल्म के लिए तरस गए थे विवेक
दरअसल, विवेक ओबेरॉय ने हाल ही में एबीपी एंटरटेनमेंट लाइव से बात की। इस दौरान उन्होंने अपने करियर के बारे में बात की और उस किस्से के बारे में बताया जब उन्होंने एक्टिंग करियर छोड़ने का मन बना लिया था। ये बात उन दिनों की है जब उन्होंने करियर की शुरुआत की थी। विवेक ओबेरॉय ने अपने बुरे दौर के बारे में भी बात की। उन्होंने एक्टिंग छोड़ने का मन बना लिया था। कई प्रोजेक्ट छीन लिए गए थे। ब्लॉकबस्टर डेब्यू के बाद भी वो एक फिल्म के लिए तरस गए थे। इस बीच उन्हें अंडरवर्ल्ड से धमकियां भी मिल रही थीं। उन्होंने बताया कि उनकी लाइफ में बुरा वक्त ज्यादा दिन तक था। उन्हें ट्रोलिंग, अपमान तक सहना पड़ा। फिल्में साइन करने के बाद भी उनसे प्रोजेक्ट छीन लिए जाते थे। अंडरवर्ल्ड से धमकियां मिली तो पुलिस की ओर से सुरक्षा मिली। उन दिनों परिवारवालों की उन्हें चिंता सताती रहती थी। एक्टर अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक रखते थे ऐसे में परिवार वालों की चिंता रहती थी कि उन लोगों का क्या।
मां ने की विवेक ओबेरॉय की मदद
विवेक ओबेरॉय ने आगे बताया कि इस दौरान उनकी मां उनके साथ पिलर बनकर खड़ी रहीं। उन्होंने ही एक्टर की काफी मदद की। करियर से परेशान विवेक को उनकी मां एक बार बाल मेडिकल कैंसर विंग के अस्पताल ले गईं। यहां उन्होंने 7-8 बच्चों को सबसे खराब परिस्थितियों में कैंसर से जूझते हुए देखा। बच्चों के माता-पिता के चेहरे पर बेबसी दिखी, जो उन्हें बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। यहां उन्हें बच्चों और उनके माता-पिता की हालत देखकर ये सीख मिली कि उनकी लोगों की दिक्कतों के आगे दूसरों की परेशानियां कुछ नहीं है। ऐसे में उन्हें एहसास हुआ कि वो अपने दम पर बहुत कुछ कर सकते हैं। उन्हें विश्वास हुआ कि वो कर लेंगे। फिर वो करियर में आगे बढ़े और एक टेक कंपनी शुरू की। फिर फायदा कमाने के लिए उसे बेच भी दिया था।