70 के दशक में राजेश खन्ना सुपरस्टार थे। तो वहीं इस बीच अमिताभ बच्चन की भी एंट्री हुई। इस दशक के पहले हिस्से में तो राजेश खन्ना ने अपने पैर मजबूत रखे। बाद में अमिताभ बच्चन ने दर्शकों के दिलों पर राज करना शुरू कर दिया। तभी एक और कलाकार की फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री हुई। लेकिन हीरो के तौर पर नहीं विलेन के तौर पर- विनोद खन्ना। 6 अक्टूबर, 1946 को पेशावर में जन्मे विनोद खन्ना अपने करियर में बेहद शानदार प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन वह निगेटिल शेड के लिए जाने जा रहे थे।

हालांकि बाद में विनोद खन्ना हीरो के रोल में भी दिखने लगे। जिस दौर में अमिताभ बच्चन के अलावा कोई सुपरस्टार नहीं बचा था वहां विनोद खन्ना अमिताभ के बगल में आकर न सिर्फ खड़े हुए बल्कि उन्हें बराबर की टक्कर भी दी। अमिताभ की पर्सनालिटी उस वक्त काफी यूनिक और उभर कर दर्शकों के सामने आई थी। ऐसे में कोई दूसरा एक्टर उनके सामने नहीं ठहर पाता था।

अमिताभ बच्चन ने कर दी थी ये गलती!

वहीं जब विनोद खन्ना की हीरो के तौर पर एंट्री हुई तो उनकी पर्सनालिटी देख कर लोग उनकी तरफ आकर्षित होने लगे थे। शायद विनोद खन्ना विलेन ही बने रह जाते अगर उन्होंने वह फिल्म न साइन की होती जिस फिल्म को अमिताभ बच्चन ने छोड़ दिया था। जी हां, अमिताभ बच्चन की एक गलती से इंडस्ट्री को एक और स्टार मिल गया और विनोद खन्ना अमिताभ बच्चन के बराबर में आ खड़े हुए।

ये फिल्म थी कुर्बान। साल 1980 में रिलीज हुई इस फिल्म में डायरेक्टर्स अमिताभ बच्चन को कास्ट करना चाहते थे। लेकिन जब अमिताभ ने फिल्म करने से मना कर दिया, ऐसे में विनोद खन्ना मेकर्स को रोल के लिए फिट लगे। तो उन्होंने विनोद खन्ना को चांस दे दिया। फिल्म में विनोद खन्ना के अपोजिट जीनत अमान थीं। इसके अलावा फिल्म में फिरोज खान और अमजद खान भी थे। इस फिल्म के गाने भी हिट हुए तो वहीं ये फिल्म उस साल की सुपरहिट फिल्म रही। इसी के साथ ही विनोद खन्ना इंडस्ट्री के नए सुपरस्टार बन गए।

जब सन्यासी बन गए विनोद खन्ना

कई सुपरहिट फिल्में देने के बाद विनोद खन्ना ओशो से जुड़े। इस बीच विनोद खन्ना का हृदय-परिवर्तन होने लगा था। वह ओशो से ऐसे इंस्पायर हुए कि उनके आश्रम में 5 साल गुजार दिए। इस बीच विनोद खन्ना अपने सुपरस्टार वाली लाइफ से कट गए। विनोद खन्ना अब वहां माली का काम करने लगे थे। 1987 में विनोदख खन्ना ने फिर से फिल्मों में वापसी की। इस बीच उऩ्होंने फिल्म दयावान, और इंसाफ में काम किया। उसके 10 साल बाद उन्होंने पॉलिटिक्स में भी 1997 में बीजेपी का मेंबर बनने के बाद विनोद नेता गुरदासपुर, पंजाब से बीजेपी सांसद रहे। जुलाई 2002 में विनोद संस्कृति और पर्यटन मंत्री भी रहे।