Uttar Ramayan 22nd April: लंबी यात्रा पर निकली राम की तीनों माताएं शृंग ऋषि के आश्रम पहुंचती हैं। शृंग ऋषि आश्रम में पहुंची तीनों माताओंं से कहते हैं कि इस समय तुम्हारी बड़ी बहू गर्भ से है। उनके गर्भ से ऐसे पुत्रों का जन्म होगा जो अपने पिता से भी बलशाली होंगे। अपना मोह त्याग दो। पुत्रों की चिंता छोड़ अब परलोक सिधारो। सब अपने कर्मों से आता है। ये बात सुन सभी बहुत खुश होती हैं। वहीं राम भी सीता को बताते हैं कि शृंग ऋषि ने उन्हें तुम्हारे गर्भ के बारे में बता दिया है।
उत्तर रामायण में दिखाया जा रहा है कि माहर्षि वाल्मीकि को ब्रह्मा साक्षात आकर बताते हैं कि अब महाकाव्य रचने का समय आ गया है जिससे कि मानव जन उसे पढ़ कर पावन हो सकें। सही औऱ गलत समझ सकें और प्रभु श्रीराम को आदर्श मान सकें। इधर, अयोध्या में श्रीराम अपना दिनचर्य शुरू करते हैं।
इससे पहले वह मां कौशल्या के कक्ष में जाते हैं। वहां कौशल्या श्रीराम के सामने एक इच्छा प्रकट करती हैं कि तीनों दशरथ अर्धांगनियां अब लंबी यात्रा पर जाना चाहती हैं। सब सुख और शांति से है। ऐसे में चैत्र नवरात्र में वह तीर्थ को जाना चाहती हैं। श्रीराम से वह कहती हैं कि अगर राजा की इजाजत हो तो वह प्रबंध करवा दें। श्रीराम कहते हैं, इसमें संकोच कैसा, आपके आदेश का पालन करना मेरा कर्तव्य है माते।
श्रीराम कहते हैं। अयोध्या राजन कहते हैं कि माता तैयारी करें वह उनके जाने का प्रबंध कर देंगें। तभी श्रीराम मां कौशल्या से कहते हैं कि -‘लेकिन मैं आपके बिना अकेला हो जाऊंगा, इतनी सारी जिम्मेदारियां हैं, मैं जब थकूंगा तो किसी गोद में सिर रखूंगा?’ कौशल्या कहती हैं कि श्रीराम आप स्वंय जगत के पालनकर्ता हैं। आप तो अवतार हैं।
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श्रीराम से मिलने पहुंचे गुप्तचर: राम गुप्तचरों से नगर का हाल-चाल पूछते हैं। वे नगर के कुशल मंगल होने की बात कहते हैं। वे बताते हैं कि चारों तरफ अपने नए राजा का गुणगान करते रहे। उनके विचार में ऐसा आदर्श राजा आजतक नहीं हुआ है। राम पूछते हैं कि कल ऐसी बातें करने की क्या वजह थी। गुप्तचर बताते हैं कि कल महादेव वैश्य की पुत्री का विवाह था। बारात मधुरा के वैश्यनगरी के एक व्यापारी के यहां से आया था। मधुरा के राज का विवाह रावण के कुल में हुआ है। और उसका पुत्र नवासुर ही आजकल राज करता है और ऐसा लगता है कि बारात में उसके कुछ गुप्तचर भी आए थे। वे नगर में जगह-जगह दुकानों पर आपके बारे में पूछते रहे।
अयोध्या में समस्त ऋषियों का समागम, सीता की संतानों को गर्भ में मिलेगा आशीर्वाद: अयोध्या में एक साथ सभी आर्यावर्त ऋषियों का समागम होने वाला है। राम को इसकी सूचना मिलती है। सबके एक साथ अचानक आने के गुरु वशिष्ट से इसका कारण पूछते हैं तो वे बताते हैं कि बच्चों की पहली शिक्षा गर्भ में ही होती है। सीता के भावी बच्चों पर अभी से धर्मशिक्षा की दृष्टि बने इसके लिए ये समागम हो रहा है...
इधर श्रीराम सीता से संवाद करते हैं कि मांताओं को बहुत चिंता थी वह पूछ रही थीं कि सीता कैसी हैं। उन्हें पता चल गया है कि सीता गर्भवती है। माता ने आदेश दिया है कि सीता का खास रूप से खयाल रखा जाए। सीता मां तभी श्रीराम सेस कहती हैं कि उनकी इच्छा हो रही है कि वह नदी किनारे ऋषि मुनियों की पत्नियों संग वहां रहें और समय बिताए। श्रीराम कहते हैं कि पहले क्यों नहीं बताया अभी लक्ष्मण से कह देंगे कि तुम्हें वहां छोड़ आएं। अंजाने में प्रभु राम और मां सीता के मुख से वह नकल गया है जो भविष्य में होने जा रहा है।
जब तीर्थ यात्रा को निकलो तो, सारे मोह पीछे छोड़ दो:तीनों माताएं कौशल्या सुमित्रा और कैकई 6 महीने से अयोध्या से बाहर हैं। तीर्थ यात्रा पर गईं तीनों माताएं चिंता में हैं कि सभी पुत्र कैसे होगे? बहुएं कैसी होंगी। अयोध्या का भविष्य क्या है। ऐसे में ऋषिवर बताते हैं कि मां से दादी बनने की इच्छा महिला में अत्यंत होती है। इस समय अयोध्या की सबसे बड़ी बहू गर्भवती है। ये सुन कर कौशल्या प्रसन्न हो जाती है और वह कहती हैं कि अब उनकी सारी चिंताएं दूर हो गई हैं।
प्रभु को रोता देख कौवा महल से उड़ गया। तभी कौवा पीछे उड़ते बालक को देखते हैं। कौवा कहता मैं बहुत अचंभे में था कि ये बालक है या क्या? ऐसे में काग की उड़ान भी फीकी पड़ जाती है और कौवा वापस धरती पर आ गिरता है। कौवा तभी समझ नहीं पाता और भगवान से रक्षा करने को कहता है। तभी चार भुजावाले प्रभु विष्णु भगवन प्रकट होते हैं। उनकी प्रेम भरी वाणी सुन कौवा रोने लगता है।
काग बताते - मैं छोटा सा कौवा बन कर छोटे से राम लला संग खेलने उनके यहां चले जाया करते थे। हरि कागा को पकड़ने के लिए इधर उधर दौड़ा करते थे। सबको खेल खिलाने वाले को काक खेल खिलाया करता था। खेल खेल में काग ने लल्ला के हाथ से रोटी छीन ली। ऐसे में वह रोने लगे। मैं सोचने लगा कि एक छोटे से रोटी के टुकडे के लिए प्रभु रो रहे हैं। क्या ये हैं तीनों लोकों के स्वामी?
रामायण महाकाव्य लिखना आरंभ: जब वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य लिखना शुरू किया तो गरुण भी वहां आए। साथ ही काग भूषण भी उनके साथ थे। काग कहते हैं कि यह अति उत्तम है कि अब समस्त मानव जाति प्रभु की लाला समझ पाएंगे। औऱ मेरे तरह संशय में नहीं फंसेंगे।
तीर्थ यात्रा पर पहुंची तीनों माताएं अयोध्या में आने वाली इस खुशखबरी के बारे में सुनती हैं तो वह बहुत प्रसन्न हो जाती हैं। इससे पहले कौशल्या के चेहरे पर एक परेशानी दिख रही थी। इसके बाद ऋषिवर बताते हैं कि अयोध्या में सीता ने गर्भधारण कर लिया है। तब कौशल्या कहती हैं कि अब उनकी सारी चिंताएं दूर हो गई हैं। वह आराम से परलोक जा सकेगी।
राम गुप्तचरों से नगर का हाल-चाल पूछते हैं। वे नगर के कुशल मंगल होने की बात कहते हैं। वे बताते हैं कि चारों तरफ अपने नए राजा का गुणगान करते रहे। उनके विचार में ऐसा आदर्श राजा आजतक नहीं हुआ है। राम पूछते हैं कि कल ऐसी बातें करने की क्या वजह थी। गुप्तचर बताते हैं कि कल महादेव वैश्य की पुत्री का विवाह था। बारात मधुरा के वैश्यनगरी के एक व्यापारी के यहां से आया था। मधुरा के राज का विवाह रावण के कुल में हुआ है। और उसका पुत्र नवासुर ही आजकल राज करता है और ऐसा लगता है कि बारात में उसके कुछ गुप्तचर भी आए थे। वे नगर में जगह-जगह दुकानों पर आपके बारे में पूछते रहे।
अयोध्या में एक साथ सभी आर्यावर्त ऋषियों का समागम होने वाला है। राम को इसकी सूचना मिलती है। सबके एक साथ अचानक आने के गुरु वशिष्ट से इसका कारण पूछते हैं तो वे बताते हैं कि बच्चों की पहली शिक्षा गर्भ में ही होती है। सीता के भावी बच्चों पर अभी से धर्मशिक्षा की दृष्टि बने इसके लिए ये समागम हो रहा है...
शृंग ऋषि के आश्रम में पहुंची तीनों माताओंं से वे कहते हैं कि इस समय तुम्हारी बड़ी बहू गर्भ से है। उनके गर्भ से ऐसे पुत्रों का जन्म होगा जो अपने पिता से भी बलशाली होंगे। अपना मोह त्याग दो। पुत्रों की चिंता छोड़ अब परलोक सिधारो। सब अपने कर्मों से आता है। ये बात सुन सभी बहुत खुश होती हैं। वहीं राम भी सीता को बताते हैं कि शृंग ऋषि ने उन्हें तुम्हारे गर्भ के बारे में बता दिया है।
जब वाल्मीकि ने रामायण का श्रीगणेश किया तो शिव सहित कई देवताओं ने उन्हें प्रणाम किया। काकभुशुण्डि ने भी प्रणाम किया। वे राम के परमभक्त हैं। उन्हें राम ने अमर का वरदान दे रखा है। वाल्मीकि के आश्रम में राजगरुण राम कथा सुनने आए थे। वहीं काकभुशुण्डि गरुण को राम की बालकथा सुनाते हैं।
वाल्मीकि मां सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर रामायण काव्य की शुरुआत करते हैं। वे मां से वर मांगते हैं कि जो लिखूं वह प्राणी मात्र के लिए वरदान स्वरुप हो। इस रचना से समस्त प्राणियों में सुख-शांति का प्रवेश हो। सबका इससे कल्याण हो।
गुरु वाल्मीकि क्रौंच के वध से व्यथित जब आश्रम आते हैं तो भारद्वाज से कहते हैं यह जो मेरे शोकाकुल हृदय से श्लोक फूट पड़ा है, उसमें चार चरण हैं, हर चरण में अक्षर बराबर संख्या में हैं और इनमें मानो तंत्र की लय गूंज रही है अत: यह श्लोक के अलावा और कुछ हो ही नहीं सकता।पादबद्धोक्षरसम: तन्त्रीलयसमन्वित:।शोकार्तस्य प्रवृत्ते मे श्लोको भवतु नान्यथा।।वाल्मीकि भारद्वाज से कहते हैं ये तो काव्य रूप ले लिया है और संसार का यह पहला काव्य है। ब्रह्मा प्रकट होते हैं और वाल्मीकि से कहते हैं करुणा में से काव्य का उदय हो चुका है। वाल्मीकि को ब्रह्मा का आशीर्वाद मिलता है कि तुमने काव्य रचा है, तुम आदिकवि हो। ब्रह्मा बताते हैं कि ये सब सरस्वती के जिह्वा पर बैठने से हुआ। और उन्हें ये सब करने के लिए मैंने ही कहा था।
क्रौंच पक्षी के वध से वाल्मीकि व्यथित हो जाते हैं। रामायण में सारस जैसे एक क्रौंच पक्षी का वर्णन भी आता है। भारद्वाज मुनि और ऋषि वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के वध के समय तमसा नदी के तट पर थे। श्रीराम के समकालीन ऋषि थे वाल्मीकि। उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था। वे रामायण लिखने के लिए सोच रहे थे और विचार-विमर्श कर रहे थे लेकिन उनको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। तब नारद ने राम से परिचय काराया। क्रौंच पक्षी के वध से व्यथित हो जाते हैं।
वाल्मीकि इतिहास लिखने को लेकर दुविधा में होते हैं। ऐसे में नारद उनकी दुविधा को दूर करते हैं और राम नायक से परिचय कराते हैं। रामायण जैसे शास्त्र रचना को लेकर पूछते हैं कि ऐसा कौन है जो गुणवान, वीरवान, सच बोलने वाला और दृढ प्रतिज्ञ हो। नारद बताते हैं कि ब्रह्मा ने अपको इतिहास लिखने के लिए चुना है। और एक ऐसी घटना होने वाली है जिसके आप भी महत्वपूर्ण पात्र होंगे। वाल्मीकि पूछते हैं कि वह नायक कौन है। नारद बताते हैं कि आपके नायक इक्ष्वाकु वंश में पैदा हुए हैं। और राम के नाम से जाने जाते हैं। वह गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान हैं। 14 साल वनवास में काटने के बाद अभी राज्याभिषेक हुआ है..