शास्त्रीय नृत्य शैली के कुछ गुरुओं ने अपनी परिकल्पना से मुश्किल विषयों पर नृत्य रचना की है। श्रीराम भारतीय कला की ओर से आयोजित ग्रीष्मकालीन बैले उत्सव में मीरा, दुर्गा, कर्ण और खजुराहो पेश किया गया। वैसे तो हर नृत्य नाटिका अपने-आप में काफी सशक्त और मनोहारी है। लेकिन, सत्तर के दशक में गुरु केसी नायक द्वारा परिकल्पित खजुराहो नृत्य नाटिका अन्यतम है। इसे मयूरभंज छऊ शैली में पिरोया गया। शंकर शेष के आलेख पर आधारित यह प्रस्तुति अपनी अलग छाप छोड़ती है। परंपरागत वाद्यों से ध्वनित संगीत रचना बरुण गुप्ता ने की है। शोभा दीपक सिंह के निर्देशन में कलाकारों ने खजुराहो नृत्य रचना पेश की। इसमें चंद्रवंशी चंदेल राजवंश की स्थापना की कथा के साथ, विश्वप्रसिद्ध खजुराहो के मंदिर के निर्माण की कथा को नृत्य के जरिए पेश किया गया। हेमवती का संसर्ग चंद्र देवता से होता है और वह यशोवर्मन को जन्म देती है। सामाजिक तिरस्कार के बावजूद वह उसे धनुर्विद्या और युद्ध कौशल में पारंगत करती है। आगे चलकर यशोवर्मन ने चंदेल राज्य स्थापित किया।
उनकी राजकुमारी अलका मूर्तिकला सीखना चाहती है। उसे वह अनुमति देते हैं। गुरु के सानिध्य में वह मूर्तिकला सीखती है। इसी क्रम में राजा यशोवर्मन को स्वप्न दिखता है कि हेमवती उनसे खजुराहो में मंदिर निर्माण करवाने को कहती है। यह मंदिर मानवीय इच्छा और मृत्यु के भय पर विजय के तौर पर निर्मित करवाया गया। इस कथा को कलाकारों ने छोटे-छोटे दृश्यों के माध्यम से मोहक अंदाज में पेश किया। पहले दृश्य में चंद्रदेवता और हेमवती व सखियों के नृत्य को सहजता से पेश किया गया। इसमें नायक-नायिका के युगल नृत्य में लास्य और ष्ष्शृंगार का सरस गंूथन था। मीन हस्तक के साथ जलक्रीड़ा करते नायक-नायिका को दर्शाया गया। वहीं हेमवती का अपने पुत्र को प्रशिक्षित करने के दृश्य में वात्सल्य के साथ वीर रस का समावेश नजर आया। इस अंश में लोक नृत्य को नृत्यांगनाओं ने प्रस्तुत किया, जो स्थानीय खुशबू का अहसास करवा रहा था।
नर्तकों के समूह का छऊ नृत्य के भ्रमरी, चक्कर, चलन और अंगों का प्रभावी संचालन सुंदर था। राजकुमारी अलका और गुरु के प्रसंग को सिर्फ आंगिक और मुख अभिनय व भाव-भंगिमाओं से कलाकारों ने मनोहर बनाया। कुल मिलाकर, खजुराओ के मंदिरों के दीवारों पर उत्कीर्ण नायिकाओं की भंगिमाओं को मुद्राओं से कलाकारों ने बखूबी उकेरा। एक-एक भंगिमा में बहुत सफाई और सुदृढ़ता थी। कुल मिलाकर नृत्य रचना खजुराहो एक बेहतरीन प्रयास है। निर्देशक शोभा की भी सराहना की जानी चाहिए कि वह समय-समय पर इन अनमोल कृतियों को दर्शकों के समक्ष लेकर आती हैं। साथ ही, जिन कलाकारों ने इस प्रस्तुति में तन्मयता से नृत्य किया, वह भी सराहनीय है।

