1960 और 1970 के दशक में, पूर्व एक्टर और स्टंटमैन कामरान खान ने दारा सिंह अभिनीत एक्शन फिल्मों का निर्देशन करना शुरू किया था। ये फिल्में थीं ‘बेकसूर’, ‘वतन से दूर’, ‘इल्जाम’ और ‘पंच रतन’। हालांकि, अपने दूसरे बच्चे के जन्म के बाद, उन्होंने मेनस्ट्रीम डायरेटर बनने का सोचा। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति गिरवी रख दी, अपनी पूरी जिंदगी की सेविंग एक प्रोजेक्ट में लगा दी और संजीव कुमार को इसमें अभिनय करने के लिए साइन कर लिया।

हालांकि, फिल्म की शूटिंग के बीच में ही, संजीव कुमार ने प्रोजेक्ट छोड़ दिया, जिससे कामरान पर लाखों रुपये का कर्ज चढ़ गया। रातों-रात, उन्होंने सब कुछ खो दिया और उन्हें शराब की लत लग गई, और वो डिप्रेशन में चले गए। उनकी शादी टूट गई और हुआ ये कि वो अकेलेपन में दुनिया से चल बसे। परिवार के पास उनके अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे, और उन्हें अपने करीबी दोस्त, लेखक सलीम खान से थोड़े पैसे उधार लेने पड़े।

कामरान के दोनों बच्चे उस समय छोटे ही थे, लेकिन उन्हें अपने पिता का कर्ज चुकाने के लिए खुद कमाना शुरू करना पड़ा। हालांकि अब वो इंडस्ट्री में बड़ा नाम बन चुके हैं और वो हैं फराह खान और साजिद खान।

अजंता एलोरा फिल्म फेस्टिवल में हाल ही में एक बातचीत में फराह ने अपने और साजिद के बचपन के मुश्किल दिनों के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “सिनेमा ने मुझे सबसे बुरे समय में भी खुश रखा। बचपन में जब घर में हालात खराब थे और माता-पिता झगड़ रहे थे, वे अलग हो रहे थे,मुझे खुशी सिर्फ तभी मिलती थी जब मैं सिनेमाघर जाती थी, तीन घंटे बैठती थी और हम मनमोहन देसाई या नासिर हुसैन की कोई फिल्म देखते थे। हम उस समय बहुत सारी फिल्में देखते थे। इससे हम खुश रहते थे।”

फराह ने आगे कहा, “मुझे नहीं लगता कि मेरे पिता का नाम कोई जानता होगा, क्योंकि वे दारा सिंह के साथ बी-ग्रेड फिल्में बनाते थे, और वो बहुत मजेदार होती थीं। वो सब कुछ ऐसी होती थीं जैसे रॉबिन हुड बॉम्बे आता है, टार्जन बॉम्बे आता है… दारा सिंह टार्ज़न का कच्छा पहनकर पूरे बॉम्बे शहर में घूम रहे हैं… फिर, वही हुआ जो हमेशा होता था। उन्होंने अपना सारा पैसा एक ही फिल्म में लगा दिया, घर भी गिरवी रख दिया और इसके साथ ही सब कुछ खत्म हो गया। फिर, अगले 13-14 सालों तक, मेरे पिता ने कोई काम नहीं किया। वो घर से बाहर नहीं निकला, और हालात बहुत बुरे थे।”

घर के अलावा कुछ नहीं बचा था पास

पत्रकार करण थापर के साथ पहले एक बातचीत में, फराह ने बताया था कि उनके पिता की मृत्यु के समय उनकी जेब में केवल 30 रुपये थे। “मैं पहले से ही बिगड़ैल बच्ची थी, और जो चाहती थी, वो सब पा लेती थी, फिर अचानक सब कुछ बदल गया… सिर्फ घर बचा, बाकी सब कुछ चला गया… गाड़ियां, मां के गहने, ग्रामोफोन—सब कुछ। आखिरकार, हमारे पास एक खाली घर, दो सोफे और एक पंखा रह गया। हमने कुछ घंटों के लिए ड्राइंग रूम भी किराए पर दिया था। लोग आते, किटी पार्टी करते, कमरे में ताश खेलते, बदले में हमें कुछ पैसे देते और चले जाते। इसी तरह कुछ सालों तक घर चलता रहा।”

साजिद खान ने बताई थी असफलता की कहानी

टाइमआउट विद अंकित यूट्यूब चैनल पर एक इंटरव्यू में, साजिद ने अपने पिता की नाकामियों की कहानी सुनाई। उन्होंने कहा था, “मेरे पिता एक फिल्म निर्माता थे, जो दारा सिंह के साथ फिल्में बनाते थे। वो ब्लैक एंड व्हाइट बी-ग्रेड फिल्में बनाते थे। सलीम खान मेरे पिता के करीबी दोस्तों में से एक थे। जब फराह पैदा हुई, तब मेरे पिता बहुत अच्छे दौर से गुजर रहे थे, लेकिन जब मैं पैदा हुआ, तो उनकी पहली फिल्म फ्लॉप हो गई। उन्होंने सोचा होगा कि उनके दो बच्चे हैं, और उन्हें आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने एक ए-ग्रेड फिल्म बनाने का फैसला किया। उन्होंने संजीव कुमार के साथ एक बड़ी फिल्म बनाने की कोशिश की। वो फिल्म कभी नहीं चली, क्योंकि वो कभी बनी ही नहीं। बीच में ही संजीव कुमार ने फिल्म छोड़ दी और भाग गए। मेरे पिता ने अपना सारा पैसा गंवा दिया। फिर उन्होंने शराब पीना शुरू कर दिया, वो शराबी हो गए, मेरे माता-पिता का तलाक हो गया। और मैं अपनी मौसियों के पास रहने चला गया।”

उन्होंने बताया कि बचपन में भी, वो अपने नाना-नानी के रिश्तेदारों के बीच घूमते रहते थे और अपने धर्म को लेकर उलझन में रहते थे। “एक दिन, मैंने अपने पिता से पूछा, ‘मेरा धर्म क्या है?’ उन्होंने अपनी ड्रिंक नीचे रख दी, वो सुबह से शाम तक पीते रहते थे, और खिड़की से बाहर लीडो सिनेमा की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा, ‘यही तुम्हारा धर्म है।’ सात साल की उम्र में मुझे यही सिखाया गया था। उन्होंने कहा, ‘वहां हिंदू, मुसलमान और ईसाई, सब एक साथ मिलते हैं, साथ हँसते-रोते हैं, बस यही तुम्हारा धर्म है।'”

पिता की मौत के बाद हुआ बुरा हाल

साजिद ने अपने पिता के निधन के तुरंत बाद आई परेशानियों को याद किया। क्योंकि उन्होंने एक फिल्म का टिकट खरीदा था और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें फिल्म देखनी चाहिए या नहीं। उन्होंने कहा, “मैंने राजेश खन्ना की फिल्म ‘नया कदम’ के शुक्रवार के शो का टिकट खरीदा था। मंगलवार को मेरे पिता का निधन हो गया। उन्होंने शराब पीकर आत्महत्या कर ली। गुरुवार तक, मुझे फिल्म के लिए खरीदे गए टिकट की चिंता सताने लगी। क्या मुझे फिल्म देखनी चाहिए या नहीं? मंगलवार को ही मेरे पिता का देहांत हुआ था। मैं 14 साल का था। मैंने अपने दोस्त से पूछा कि क्या करूं, तो उसने कहा, ‘क्या तुम पागल हो गए हो?’ लेकिन मैंने उससे कहा कि मेरे पिता चाहते थे कि मैं फिल्म देखूं। मेरे दोस्त ने मेरे हाथ से टिकट लेकर फाड़ दिया। मैं आज भी इसी बात से जूझ रहा हूं। क्या पिता के निधन के बाद फिल्म के बारे में सोचना सही था? लेकिन यही बात उन्होंने मेरे दिमाग में बिठा दी थी।”

उन्होंने आगे कहा, “आम तौर पर, जब माता-पिता गुजर जाते हैं, तो वे कुछ जमीन-जायदाद या बैंक में जमा कुछ पैसे या वसीयत छोड़ जाते हैं। मेरे पिता ने मुझे और फराह को कर्ज में छोड़ दिया था। मैं 14 साल का था और फराह 17 साल की। ​​1984 में हम पर 3 लाख रुपए का कर्ज था। हम पूरी तरह टूट चुके थे। हमें पैसे कमाने का कोई जरिया नहीं सूझ रहा था। हमने उन लोगों से बात की और उन्हें बताया कि हम थोड़ा-थोड़ा करके उन्हें पैसे चुका देंगे। फराह ने नाचना शुरू किया, उसने अपना डांस ट्रूप शुरू किया। मैंने जन्मदिन की पार्टियों में मिमिक्री करना शुरू कर दिया। रविवार को मैं बीच पर परफॉर्म करता था। मैं पैसे फराह को दे देता था और कुछ पैसे फिल्म देखने के लिए बचा लेता था।”

बाद के सालों में भी उन्होंने जो कठिनाइयां झेलीं। उस वक्त के बारे में खुल कर बताते हुए उन्होंने कहा, “हम अपने मोहल्ले में इकलौते परिवार थे जिनके पास टीवी नहीं था। हमारे पास पैसे नहीं थे। हमारे पास बस एक पंखा था। हमारे पास दो हफ्तों तक बिजली का बिल भरने के पैसे नहीं थे। मैं और फ़राह, हम हॉल में सोते थे। जब आपके पास कोई विकल्प नहीं होता, तब आप काम करते हैं। हमने इसे एक निश्चित गरिमा के साथ किया, और मेरी मां ने जोर देकर कहा कि हम अपनी पढ़ाई पूरी करें। वो भी काम करती थीं, एक होटल में हाउस कीपिंग करती थीं, लेकिन वो अलग रहती थीं क्योंकि उन्हें सुबह जाना होता था और शाम को वापस आना होता था। जब मेरे पिता का देहांत हुआ, तो मैं अपने एक रिश्तेदार के पास अंतिम संस्कार के लिए पैसे मांगने गया। हमारे पास अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे। सलीम अंकल ने अंतिम संस्कार के लिए पैसे दिए। सलमान के पिताजी ने। उन्होंने मुझे पैसे दिए। लेकिन यही तो जिंदगी है। वे आपसे सब कुछ छीन सकते हैं, लेकिन वे आपका सेंस ऑफ ह्यूमर नहीं छीन सकते।”

बता दें कि आज फराह बॉलीवुड की नंबर वन कोरियोग्राफर हैं और डायरेक्टर हैं। उन्होंने ‘मैं हूं ना’ से निर्देशन में कदम रखा और फिर शाहरुख खान अभिनीत ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘ओम शांति ओम’ बनाई। साजिद ने खुद कई हिट फिल्में बनाईं, लेकिन #MeToo मूवमेंट के दौरान उन पर यौन शोषण के आरोप लगे। उसके बाद से उन्होंने कोई फिल्म डायरेक्ट नहीं की है।