Bandish Bandits, Amazon Prime Video: ‘तेनालीराम’ और ‘सात फेरों की हेरा फेरी’ जैसे शोज से दर्शकों का दिल जीतने वाले अमित मिस्त्री इन दिनों अमेजन प्राइम की वेब सीरीज Bandish Bandits से चर्चा में हैं। सीरीज में अमित मिस्त्री ‘देवेंद्र राठौर’ की भूमिका निभा रहे हैं। संगीत प्रेमी अमित मिस्त्री के लिए ये वेब सीरीज बेहद खास है क्योंकि इसमें उन्हें म्यूजिक का साथ भी मिला है। अमित मिस्त्री ने अपनी वेब सीरीज और खुद से जुड़ी खास बातों को Jansatta.Com के साथ साझा किया। आइए जानते हैं..
Bandish Bandits वेब सीरीज में काम करने का मौका कैसे मिला? इस सीरीज के डायरेक्टर आनंद तिवारी हैं। हम साथ में थिएटर किया करते थे। आज भी हम साथ ही हैं। यहां तक कि 5-6 साल पहले मैंने एक शॉर्ट फिल्म बनाई थी, जिसमें आनंद ने एक्टिंग की थी। तो हमारा वर्किंग इक्वेशन और तालमेल बहुत अच्छा रहा है। जब ये वेब सीरीज लिखी गई, तो उन्हें पता था कि संगीत के साथ मेरा जुड़ाव है। तब उन्होंने मुझे अप्रोच किया था कि अमित भाई एक रोल है मेरे पास आपके लिए। तो मैंने तो सोचा भी नहीं। बस ये सोचा कि आनंद ने सोचा है तो अच्छा ही होगा रोल।
इसके बाद मुझे रोल बताया गया तो वह मुझे बहुत पसंद आया। इस रोल में बहुत सारे वैरिएशन्स हैं। देवेंद्र राठौर का जो जीवन है और उसका जो भूतकाल है, वह जैसा दर्शाया गया है, वह उस वक्त सुनकर अच्छा लगा। इसके अलावा शूटिंग के बाद जो सीन फ्रेम में उभर कर आए हैं, उसे देख कर मैं बहुत संतुष्ट हूं। मैं बहुत खुश हूं कि ऑडियंस ने किरदारों की छोटी छोटी बातों को भी नोटिस किया है। मैं बहुत हैरान हूं ये देखकर कि लोगों ने इतनी बारीकी से उसे देखा है।
किरदार के बारे में बताएं?: इस किरदार को (देवेंद्र राठौर ) पंडित जी ने गाने से तो रोक दिया है, लेकिन व्हिसिल बजाने से तो नहीं रोक सकते! हालांकि वह पंडित जी के सामने तो व्हिसिल नहीं बजाता, तो ऐसे में बंदिशों के बाद भी वह अपनी जिंदगी को ऐसे जीता है। अपने तरीके से जुगाड़ कर लेता है। मैं एक शब्द में कहूं तो ये किरदार अपने आप में ‘मस्तमौला’ है।
वेब सीरीज में काम करना कितना आसान कितना मुश्किल? टेलीविजन पर काम की गति बहुत तेज होती है, वेब सीरीज में वैसे काम किया जाता है, जैसे कि सिनेमा में किया जाता है। क्योंकि छोटी-छोटी चीजों पर, बारीकिय़ों पर नजर रखनी पड़ती है। टीवी में क्या है कि एपिसोड एक दिन में आकर चला जाएगा।
इस वेब सीरीज की रिलीज के बाद जो सबसे बेहतर कॉम्प्लिमेंट आपको क्या मिला?
बहुत सारे कॉम्प्लिमेंट्स मिले मुझे पर एक बड़ा मजेदार कॉम्प्लिमेंट मिला किसी ने लिखा था- सर आपने एक दम ‘दिल चीर’ काम किया है। तो ये ‘दिल चीर’ शब्द का इस्तेमाल मुझे बहुत अच्छा लगा।
करियर की शुरुआत कैसे हुई? परिवार ने कितना सपोर्ट किया?: मैंने लॉ की पढ़ाई की है। कॉलेज से ही मैंने पार्टिसिपेट करना शुरू कर दिया था। कॉलेज के कॉम्पिटीशन्स में भी मैं पार्ट लेता था। वहां प्रोफेशनल ग्रुप के साथ मैंने 12 साल गाना गाया है। नवरात्रि में गाने के अलावा मैं कॉलेज के नाटकों में भी हिस्सा लेता था। जीतने पर प्राइज मिलता था, तो इंडस्ट्री के लोगों से मुलाकात हो जाती थी, वह जज बनकर हमारे यहां आया करते थे।
फिर पृथ्वी थिएटर में हमने नाटक करना शुरू किया। मकरंद देशपांडे का ग्रुप है। मैंने और मकरंद ने साथ में बहुत काम किया है। जिन नाटकों में मैं काम नहीं करता था तो उसमें म्यूजिक में काम करता था। दूसरे भी थिएटर ग्रुप्स थे- एक विकल्प नाम का ग्रुप है, तो मैंने ऐसे कई ग्रुप्स के साथ बहुत काम किया। इसके बाद टेलीविजन मेरी जिंदगी में आया। मेरा पहला शो था ‘वो’। उसमें मेरे साथ लिलिपुट थे, आशुतोष गोवारिकर थे, ये शो बहुत हिट हुआ था।
साथ साथ पृथ्वी थिएटर चलता रहता था। एक ‘शुभ मंगल सावधान’ करके सीरीज थी सहारा पर, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया। ‘भगवान बचाए इनको’ भी किया मैंने। प्रीति जिंटा, सैफ अली खान और चंद्रचूर संग ‘क्या कहना’ फिल्म आई थी उसमें मैंने काम किया था। इस बीच ऐसा भी हुआ जब मैं खाली था तब मैं प्लेज के लिए लिखता और डायरेक्ट भी करता रहा। शोर इन द सिटी, गली गली में चोर है, एक चालीस की लास्ट लोकल, जेंटलमेन, यमला पगला दीवाना को लोगों ने काफी सराहा।
फैमिली में कौन कौन हैं? और शादी?: फैमिली में माता-पिता और भाई हैं। शादी का आप देख ही रहे हैं क्या हाल चल रहा है… फिलहाल कोरोना काल है।
असल जिंदगी में भी क्या ‘बीरबल’ की तरह चतुर हैं?: चाइल्ड लाइफ फन, ह्यूमर बहुत है मुझमें, क्योंकि मुझे लगता है कि जिंदगी में ह्यूमर हो तो जिंदगी आसान हो जाती है और आसानी से कटती है। अपने आप पर हंसना सिखाती है। अपनी गलतियों पर जब हम हंसना सीख जाते हैं तो आप दूसरों के बात करने के तरीके से भी ह्यूमर निकाल लेते हैं, वो मजेदार हो जाता है।
नेपोटिज्म को लेकर क्या कहेंगे?: बड़े दुख की बात है किसी की मौत पर ये सब होना, ये एक प्राइवेट चीज है, जिसपर मैं कमेंट नहीं करना चाहूंगा। लेकिन ये जो माहौल बन गया है बहुत ही दुखदायी है। जो भी हुआ है, उसकी तहकीकात चल भी रही है। इससे थोड़ा खुश हूं। लोग नेपोटिज्म की बात कर रहे हैं, भेदभाव की बात कर रहे हैं।
मैं समझता हूं कि नेपोटिज्म तो हर जगह है। मैं भी एक आउटसाइडर हूं। इस इंडस्ट्री में काम कभी होता है, कभी नहीं होता है, ये तो आप मानकर चलिए। ऐसे में स्ट्रेस ज्यादा होता है। लॉकडाउन की वजह से ये ज्यादा हुआ है।
आउटसाइडर होने के नाते क्या आपने कभी भेदभाव झेला है?: मैं भाग्यशाली रहा हूं कि मेरे साथ ये कभी नहीं हुआ। मैं थिएटर के साथ जुड़ा रहा। मैं टेलीविजन के साथ काम करता रहा। बहुत समय तक खाली भी रहा, तो मैं लिख लेता था। मेरे पास बहुत सारा काम कभी नहीं रहा है, पर जब भी जरूरत होती थी तो हो जाता था। मैं बहुत लकी रहा हूं कि टीवी पर मैंने बहुत अलग अलग तरह का काम किया है।