Uttar Ramayan : श्रीराम ने अनुज शत्रुघ्न को जो कार्य सौंपा था। उन्होंने उसे पूरा कर दिखाया है और सूर्यवंश का पताका लहराया है। इस बीच शत्रुघ्न की जय-जयकार होने लगती है। लवणासुर का वध हो चुका है। सभी ऋषि बहुत खुश हैं कि अब उन्हें कोई परेशान नहीं करेगा। श्रीराम के आशीर्वाद से शत्रुघ्न ने लवणासुर पर विजय पाई।
च्यवन ऋषि ने शत्रुघ्न को लवणासुर के वध को लेकर रणनीति समझाई थी। वह कहते हैं- उस समय युद्ध करने के लिए ललकारो जब उसके पास वह त्रिशुल ना हो। जब वह बाहर निकलता है तो त्रिशुल साथ नहीं ले जाता है। जब तक उसके पास त्रिशुल है वह काफी बलशाली है। ऋषि आगे कहते हैं कि इस बात का ख्याल रखना होगा कि वह त्रिशुल लेने महल ना जा सके। आपकी सेना को भी नदी के पार चले जाना चाहिए। लेकिन ये ध्यान रखना होगा कि उसकी सेना को इसकी भनक ना लगे। आपकी सेना को रात के अंधेरे में ही उस पार पहुंच जाना चाहिए
लवणासुर जैसे ही महल के बाहर निकलता है घात लगाए शत्रुघ्न उसपर हमला कर देते हैं। लवणासुर कहता है कौन हो तुम जिसे अपनी प्राणों का मोह नहीं रहा। शत्रुघ्न कहते हैं कि यदि वीर हो तो युद्ध प्रदान करो। लवणासुर राह चलते लोगों से युद्ध नहीं करता। तुम अपना परिचय दो। राजकुमार अपना परिचय देते हैं। लवणासुर महल में जा कर त्रिशुल लाने की कोशिश करता है जिस पर शत्रुघ्न कहते हैं- मरने से पहले भगवान की पूजा करना चाहते हो तो यहीं कर लो। रण से भागने वाले को वीर नहीं कायर कहते हैं। शत्रुघ्न लवणासुर को बिना त्रिशुल युद्ध करने को बाध्य कर देते हैं। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है। काफी देर युद्ध के बाद शत्रुघ्न प्रभु श्रीराम के दिए दिव्य बाण का इस्तेमाल करते हैं। इस बाण से ही दैत्य राज लवणासुर का वध होता है।
इससे पहले आपने देखा कि सीता लव-कुश को जन्म देती हैं। वाल्मीकि शत्रुघ्न के हाथों दोनों बच्चों का जातक संस्कार करवाते हैं। इधर श्रीराम को सीता का सपना आता है, वह सोते हुए अचानक उठ बैठते हैं। तभी सेवा में खड़े लक्ष्मण श्रीराम से पूछते हैं भैया क्या हुआ? श्रीराम बताते हैं कि उन्हें एक स्वप्न आया जिसमें उन्हें सीता की आवाज सुनाई दी। लक्ष्मण कहते हैं कि शायद भाभी किसी कष्ट में हो और आपको आवाज दिया हो। राम कहते हैं उसे कष्ट नहीं हो सकता। और हो भी तो उसे मेरी जरूरत नहीं है। वह दुर्गा का रूप धारण कर गई है उसे कष्ट नहीं हो सकता। उसके स्वर में उल्लास था। लक्ष्मण कहते हैं फिर अयोध्या के राजकुमार ने जन्म लिया हो।…
आश्रम में लव कुश की किलकारियां: वाल्मीकि के आश्रम में दोनों बच्चों की किलकारियां गूंज उठी हैं। मां सीता अब लव कुश को सुलाने के लिए लोरी गाती हैं। मुनिवर दोनों बच्चों की कुंडलियां बना रहे हैं।
इधर सीता के पास महार्षि वाल्मीकि आते हैं। सीता पूछती हैं कि शत्रुघ्न ने कैसे जीता युद्ध पता चला? ऋषि कहते हैं कि दूत अयोध्या जाने की जल्दी में था, ऐसे में मैं फिर कभी विस्तार से सारी कहानी बताऊंगा। श्रीराम तक शत्रुघ्न के पराक्रम की कहानी पहुंचती है तो वह अति प्रसन्न होते हैं। श्रीराम कहते हैं अयोध्या में दीप माला उत्सव किया जाए। यहां लक्ष्मण सीता मां को याद करते हैं कि भाभी यहां होतीं तो कितना खुश होतीं। श्रीराम कहते हैं कि उनतक ये बात पहुंच गई होगी।
इधर, लवणासुर की रानी अब शत्रुघ्न के चरणों में आती हैं। शत्रुघ्न कहते हैं कि माता आपको चिंतित होने की आवश्यक्ता नहीं है। माता हम भगवान शिव के उस दिव्य त्रिशूल के दर्शन करना चाहते हैं। लवणासुर की पत्नी कहती हैं कि वह तो महाराज के जाते ही अंतर्ध्यान हो गया। शत्रघ्न उस स्थान पर जाकर त्रिशूल नमन करते हैं। अब शत्रुघ्न वहां का राजपाठ संभालते हैं। ऐसे में शत्रुघ्न का राज तिलक होता है। उन्हें मुकुट पहनाया जाता है।
इधर लवणासुर का वध होता है, उधर लवणासुर का त्रिशूल वापस शिव भगवान के पास जा पहुंचता है। लवणासुर की रानी को आभास होता है और वह रोने लगती है। यहां अयोध्या का पताका लहराता है। रघुवंशियों की जय होती है। सूर्य का उदयऔऱ अधंकार का नाश होता है। सारे ऋषि मुनी अति प्रसन्न होते हैं। सारे मंदिरों के कपाट खुलने लगते हैं। मंदिरों में पूजन शुरू होता है। लोग उत्सव मनाते हैं।लोग कहते हैं कि जैसे राजा राम हैं वैसे ह उनके भैया शत्रुघ्न हैं। लोग खुश होते हैं कि मधुरा धरती में अब राम राज आया है।
लवणासुर शत्रुघ्न के हर बाण का जवाब देता है। तीर पे तीर चलते हैं एक दूसरे के तीरों को ध्वस्त किया जाता है। अब लवणासुर शत्रुधअन पर भारी पड़ता है। ऐसे में शत्रुघ्न भैया राम का दिया दिव्य अस्त्र निकालते हैं औऱ चलाते हैं। लवणासुर को बाण लगजाता है औऱ वह वहीं चित्त हो जाता है।
अब लवणासुर अपने महल से रथ पर बैठ कर निकलता है। तभी शत्रुघ्न लवणासुर को ललकारता है। लवणासुर कहता है कि मैं राह चलते लोगों से युद्ध नहीं करता। लवणासुर कहता है पहले अपना परिचय दो बालक। जब शत्रुघ्न बताते हैं कि वह अय़ोध्या से आए हैं, तो लवणासुर युद्ध के लिए तैयार हो जाता है। वह अब अपने शस्त्र को लेने महल जाता है, लेकिन शत्रुघ्न उसे महल के अंदर त्रिशूल लाने नहीं जाने देते। ऐसे में दोनों के बीच भयंकर युद्ध चलता है।
लवणासुर अब अपने उस त्रिशूल की पूजा करता है जो हमेशा युद्ध में उसकी जान बचाता है। वह हर रोज उस त्रिशूल को ऐसे ही पूजता है। लवणासुर की पत्नी अब आती है औऱ कहती है स्वामी मैंने सुना की कल राज दरबार में आपको एक ऋषि ने आपको श्राप दिया। तभी लवणासुर गुस्से में कहता है कि रानी तुम एक महाबली राक्षस की पत्नी हो और एक मामूली से ऋषि के श्राप से डर रही हो?
अब लवणासुर अपने महल में नृत्य का आनंद ले रहा है, जिसमें एक शेर हिरण का शिकार कर रहा है। लवणासुर इस दृश्य को देख कर अति प्रसन्न हो रहा है। जब शेर हिरण को मार देता है तो लवणासुर बेहद खुश होता है। युद्ध आगे बढ़ता है। अब इस बार कुछ लोग शेर का शिकार करने आते हैं। शेर एक एक कर उनस सभी लोगों को भी घायल कर देता है और धराशाही कर देता है। लेकिन अंत में शेर मर जाता है। लवणासुर इस क्रूर दृश्य को देख बहुत प्रसन्न होता है।
लवणासुर औऱ मांधता के बीच भयंकर युद्ध छिड़ता है जिसमें मांधता के सारे प्रयास रद्द होते नजर आते हैं, हर शस्त्र नाकामयाब होता दिखता है औऱ लवणासुर उसपर हंसता है।लवणासुर के पास त्रिशूल है जो बहुत शक्तिशाली है वह उसे विजयी करता है और मांधता का अंत हो जाता है। शत्रुघ्न को ये कहानी सुनाई जाती है। औऱ समझाया जाता है कि जब ये त्रिशूल लवणासुर के पास न हो तब उसे मारा जा सकता है।
इधऱ, मांधाता इंद्र के पास पहुंचता है और उन्हें युद्ध के लिए ललकारता है। वह कहता है कि इस धरती पर ऐसा कोई राजा नहीं जिसे मैंने पराजित नहीं किया। इंद्र कहते हैं यह तुम्हारी भूल है, रावण। मांधाता कहता है- रावण से वह युद्ध कर चुका है। वह तो सात दिन चले इस युद्ध में हम रावण को इसलिए नहीं मार सके कि उसे ब्रह्मा का वरदान मिला है और ब्रह्मा ने खुद आकर युद्ध रोकने के लिए कहा था। इस बीच इंद्र कहते हैं कि लवणासुर भी है जो तुमसे बलशाली है। अब अहंकारमें मांधता लवणासुर की तरफ जाता है औऱ युद्ध के लिए ललकारता है।
लवणासुर को रण में पराजित करने के बाद शत्रुघ्न वापस अयोध्या लौटते हैं। उनके विजय की गाथा भरी सभा में कही जाती है। राम आज्ञा देते हैं कि आज पूरी अयोध्या में दीप जलाए जाएं। वहीं लक्ष्मण राम से कहते हैं कि शत्रुघ्न भाभी का लाडला था। अगर यह सुनती तो कितना खुश होतीं। राम कहते हैं जहां भी होगी जान तो गई होगी।
लवणासुर के वध के बाध मदुरा में उत्सव मनाया जाता है। असुर पताका हटाकर वहां सूर्य वंश का पताका फहराया जाता है। वहीं ऋषि मुनियों को भी लवणासुर के आतंक से मुक्ति मिलती है।
जैसा कि लवणासुर महल में जा कर त्रिशुल लाने की कोशिश करता है जिसपर शत्रुघ्न कहते हैं- मरने से पहले भगवान की पूजा करना चाहते हो तो यहीं कर लो। रण से भागने वाले को वीर नहीं कायर कहते हैं। शत्रुघ्न लवणासुर को बिना त्रिशुल युद्ध करने को बाध्य कर देते हैं। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है। काफी देर युद्ध के बाद शत्रुघ्न प्रभु श्रीराम के दिए दिव्य बाण का इस्तेमाल करते हैं। इस बाण से ही दैत्य राज लवणासुर का वध हो जाता है।
जैसा कि लवणासुर महल में जा कर त्रिशुल लाने की कोशिश करता है जिसपर शत्रुघ्न कहते हैं- मरने से पहले भगवान की पूजा करना चाहते हो तो यहीं कर लो। रण से भागने वाले को वीर नहीं कायर कहते हैं। शत्रुघ्न लवणासुर को बिना त्रिशुल युद्ध करने को बाध्य कर देते हैं। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है। काफी देर युद्ध के बाद शत्रुघ्न प्रभु श्रीराम के दिए दिव्य बाण का इस्तेमाल करते हैं। इस बाण से ही दैत्य राज लवणासुर का वध हो जाता है।
जैसा कि लवणासुर महल में जा कर त्रिशुल लाने की कोशिश करता है जिसपर शत्रुघ्न कहते हैं- मरने से पहले भगवान की पूजा करना चाहते हो तो यहीं कर लो। रण से भागने वाले को वीर नहीं कायर कहते हैं। शत्रुघ्न लवणासुर को बिना त्रिशुल युद्ध करने को बाध्य कर देते हैं। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है। काफी देर युद्ध के बाद शत्रुघ्न प्रभु श्रीराम के दिए दिव्य बाण का इस्तेमाल करते हैं। इस बाण से ही दैत्य राज लवणासुर का वध हो जाता है।
लवणासुर जैसे ही महल के बाहर निकलता है घात लगाए शत्रुघ्न उसपर हमला कर देते हैं। लवणासुर कहता है कौन हो तुम जिसे अपनी प्राणों का मोह नहीं रहा। शत्रुघ्न कहते हैं कि यदि वीर हो तो युद्ध प्रदान करो। लवणासुर राह चलते लोगों से युद्ध नहीं करता। तुम अपना परिचय दो। राजकुमार अपना परिचय देते हैं। लवणासुर महल में जा कर त्रिशुल लाने की कोशिश करता है जिस पर शत्रुघ्न कहते हैं- मरने से पहले भगवान की पूजा करना चाहते हो तो यहीं कर लो। रण से भागने वाले को वीर नहीं कायर कहते हैं। शत्रुघ्न लवणासुर को बिना त्रिशुल युद्ध करने को बाध्य कर देते हैं। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है।
लवणासुर की पत्नी किसी अनहोनी की तरफ इशारा करती है। वह कहती हैं कि सुना है कि सभा में किसी ऋषि ने आपको श्रॉप दिया है। लवणासुर कहता है-कुत्तों के भौंकने से भैंसे नहीं मरा करतीं। तुमसे ऐसी बातें सुन अच्छा नहीं लगा। मामा रावण भी कहा करते थे पृथ्वी से ऋषियों के समूल नाश कर दिया जाए तो राक्षसों का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा।
च्यवन ऋषि शत्रुघ्न को लवणासुर के बध की रणनीति समझाते हैं। वह कहते हैं- उस समय युद्ध करने के लिए ललकारो जब उसके पास वह त्रिशुल ना हो। जब वह बाहर निकलता है तो त्रिशुल साथ नहीं ले जाता है। जब तक उसके पास त्रिशुल है वह काफी बलशाली है। ऋषि आगे कहते हैं कि इस बात का ख्याल रखना होगा कि वह त्रिशुल लेने महल ना जा सके। आपकी सेना को भी नदी के पार चले जाना चाहिए। लेकिन ये ध्यान रखना होगा कि उसकी सेना को इसकी भनक ना लगे। आपकी सेना को रात के अंधेरे में ही उस पार पहुंच जाना चाहिए।
इंद्र से मांधाता कहता है कि इस धरती पर कोई राजा नहीं बचा है युद्ध के लिए। इंद्र बताते हैं कि रावण है। वह कहता है-रावण से युद्ध कर चुका है। इंद्र तब बताते हैं कि असुर लवणासुर है जिससे तुमने युद्ध नहीं किया है। मांधाता को ठेस लगती है और तुरंत वह लवणासुर से युद्ध करने निकल पड़ता है। युद्ध में शिव के त्रिशुल के साथ लवणासुर अकेले आता है और मांधाता से युद्ध करता है। इस युद्ध में मांधाता मारा जाता है।
इंद्र को मांधाता चुनौती देते हैं। मांधाता कहता है कि इस धरती पर ऐसा कोई राजा नहीं जिसे मैंने पराजित नहीं किया। इंद्र कहते हैं ऐसा है। रावण। मांधाता कहता है- रावण से युद्ध कर चुके हैं। सात दिन चले इस युद्ध में हम रावण को इसलिए नहीं मार सके कि उसे ब्रह्मा का वरदान मिला है और ब्रह्मा ने खुद आकर युद्ध रोकने के लिए कहा था।
लवणासुर के सैनिक कुछ ऋषियों को उसके सामने कोड़े मारते हुए पेश करते हैं। लवणासुर कहता है तुम्हें ज्ञात नहीं कि मेरे राज्य में वैदिक पूजा निषेध है। यज्ञ अनुष्ठान कर शक्ति प्राप्त करना पाप है। ऋषि कहते हैं कि पाप हम नहीं तुम कर रहे हो। लवणासुर कहता है कि यहां का भगवान सिर्फ मैं हूं। दैत्य गुस्सा हो उनको मृत्यु दंड देता है लेकिन सभी राक्षस के हाथों मरने के बजाय खुद ही अग्नि में अपने शरीर को भस्म कर लेते हैं।
दैत्य लवणासुर का वध करने निकले शत्रुघ्न बीच में रुकते हैं। वह वाल्मीकि के आश्रम पहुंचते हैं जहां उनका सेवक स्वागत करते हैं। वाल्मीकि मन ही मन कहते हैं कि क्या संयोग है कि सीता के बच्चों का जन्म होने वाला है और कुमार शत्रुघ्न भी आए हैं। वाल्मीकि दोनों बालकों को शत्रुघ्न की गोद में देते हैं। जातक संस्कार कराते हैं और कहते हैं इस बालक का मार्जन हमनें कुश द्वारा किया है इसलिए इसका नाम कुश होगा। इस बालक का मार्जन हमने लव द्वारा किया है इसलिए इसका नाम लव होगा।