Ramayan 6 April Episode 2020: श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण संग सुग्रीव के पास पहुंचने की तैयारी करते हैं। इस बारे में जब सुग्रीव को खबर होती है तो वह श्री राम की असलियत जानने के लिए मंत्री हनुमान को उनके पास भेजते हैं। हनुमान श्रीराम के पास पहुंते हैं और श्रीराम की दिव्य अलौकिक दृष्टि को महसूस करते हैं। इधर राम भी पहचान जाते हैं कि ये तो मेरा परम भक्त है- हनुमान। लेकिन इस बारे में वह कुछ नहीं कहते। अब हनुमंत बताते हैं कि वह कौन हैं। हनुमान अपना परिचय देते हुए कहतेहैं- वह सुग्रीव के कुल पुरोहित केसरी नंदन हैं। हनुमान श्रीराम से जानना चाहते हैं कि वह कौन हैं औऱ यहां बन में क्या कर रहे हैं? इसके लिए वह राम और लक्ष्मण से ढेरों सवाल पूछते हैं।
राम हनुमान को बताते हैं कि माता सबरी ने सुग्रीव का पता दिया था। सुग्रीव हमें रावण तक पहुंचने में मदद कर सकते हैं। अब हनुमान कहते हैं कि राम को उनका असली परियच बताना पड़ेगा। तो ही वे राजा सुग्रीव से मिलवा सकते हैं। हनुमान की बातें सुन लक्ष्मण परिचय देते हुए कहते हैं कि वह परम प्रतापी अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण हैं। राम नाम सुनते ही हनुमान आश्चर्यचकित रह जाते हैं। यह सुनते ही वह प्रभु के पैरों में गिर पड़ते हैं। तभी श्रीराम हनुमंत को उठाकर अपने हृदय से लगा लेते हैं। राम कहते हैं- तुम तो मेरे लक्ष्मण और भरत के समान ही प्रिय हो। इसके बाद वह राम और लक्ष्मण को कंधे पर बैठा सुग्रीव के पास ले जाते हैं। आज जानिए शो में क्या होता है:-
बाली अपनी गलती मानता है। तभी श्रीराम कहते हैं कि 'पापी ने अपना पाप माना इसके बाद से उसके पाप कट जाते हैं। हे, बाली तुम्हारी सेवा कर अब हम तुम्हें ठीक करेंगे। तुम चिंता न करो।' कभी बाली कहते हैं -'स्वामी वो ठीक है लेकिन ऐसी मृत्यु फिर नहीं मिलेगी। मुझे अपनपे चरण छूने दें।'
सुग्रीव ने श्री राम का धन्यवाद अदा करते हुए उनके चरणों में अपना मुकुट अर्पित किया। साथ ही, युवराज अंगद को राम जी का आशीर्वाद लेने को कहा। राम ने सुग्रीव को राजनीति संबंधी कई अच्छे सुझाव दिए। उन्होंने बोला कि इस समय सुग्रीव का प्रथम कर्तव्य ये है कि अपने राज्य की शक्तियों को संगठित करें। इस पर सुग्रीव कहने लगे कि उनका पहला कर्तव्य है कि वो मां सीता की तलाश करें। लेकिन श्री राम ने कहा कि अभी बरसात का समय है, सीता की खोज वो सब मिलकर कार्तिक माह से शुरू करेंगे। इन चार महीनों में वो अपना पूरा समय अपने राज्य को दें। राम ने बताया कि अगले 4 महीने वो गिरि पर्वत पर वास करेंगे।
बाली की मौत के बाद सुग्रीव राज्याभिषेक किया गया। उत्सव के इस माहौल में हर ओर प्रसन्नता छाई थी। महिलाएं नृत्य करती हैं, ऋषि-मुनि सुग्रीव पर फूलों की बरसात कर रहे थें। हनुमान-जामवंत ने मिलकर सुग्रीव का रुद्राभिषेक किया। इसके बाद लक्षमण ने पूरे सम्मान के साथ सुग्रीव को मुकुट पहनाया।
इतना सुनते ही बाली को अपनी भूल का अहसास हो गया। वो श्री राम से हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगे और कहने लगे कि मैं पश्चाताप की अग्नि में जल रहा हूं।
श्री राम ने बाली से कहा कि छोटे भाई सुग्रीव के साथ अन्याय करके उन्हें बिना किसी गलती के राज्य से निष्कासित कर दिया। अपने अनुज सुग्रीव की पत्नी को अपने कब्जे में रखा था। बाली ने कहा कि अगर मैंने गलती की भी है तो मुझे दंड देने का अधिकार तुम्हें किसने दिया, ये तो केवल राजा का अधिकार होता है। इस पर राम ने कहा कि उन्होंने अयोध्या के राजा भरत की आज्ञा मानकर बाली का वध किया। साथ ही राम ने कहा कि जैसा पाप बाली ने किया है उसका दंड धर्म की दृष्टि से उचित है।
राम ने बाली से कहा कि मित्र का शत्रु मेरा भी शत्रु है। तुमने सुग्रीव के साथ दुराचार किया इस वजह से मैंने तुम्हारा वध किया। इस पर बाली ने श्री राम से पूछा कि क्या उन्हें मारने में श्री राम का स्वार्थ नहीं छिपा था। अपने अंतिम समय में बाली राम के आगे धर्म, सत्कर्म और नीति की दुहाई देने लगा। श्री राम ने बाली से कहा कि मेरी निंदा करते समय तुम मुझे किसी अबोध बालक के तरह नजर आ रहे हो।
बाली ने श्री राम से कहा कि क्या छुपकर वार करना ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम की मर्यादा है। उन्हें ललकारते हुए बाली ने कहा कि अगर उनकी छाती से ये बाण निकल जाए तो वो अब भी युद्ध में उनको मात दे सकते हैं। बाली ने राम से पूछा कि उनका राम से कोई बैर नहीं था फिर भी सुग्रीव उनका प्रिय और वो शत्रु कैसे बन गया।
सुग्रीव और बाली में एक बार फिर घमासान युद्ध होने लगा। जब बाली सुग्रीव पर हावी पड़ने लगा तो श्री राम ने बाली पर बाण चलाया। अपनी अंतिम सांस गिनते हुए बाली ने सुग्रीव से कहा कि वो हारे नहीं बल्कि उसने छल से बाली को हराया है।
सुग्रीव ने बाली से कहा कि युद्ध के डर से डरपोक बाली पत्नी की आंचल में छुप गया। लज्जा से डूब मर। इतना सुनते ही बाली आवेश में आकर सुग्रीव की ओर ये कहते हुए दौड़ा कि अगर आज तेरे नसीब में मरना ही लिखा है तो आ जा
वापस अपने स्थान पर पहुंचकर रोष से भरे सुग्रीव ने श्री राम पर तंज कसते हुए कहा कि अगर आप बाली को नहीं मार सकते थे तो पहले ही बता देते। इस पर श्री राम ने कहा कि बाली और आप में काफी समानताएं हैं, ऐसे में बाण चलाकर मैं अपने मित्र को खोने का खतरा मोल नहीं ले सकता था। उन्होंने सुग्रीव से कहा कि इस बार आप गले में माला पहन लें ताकि आप दोनों भाइयों में भेद करना आसान हो जाए।
राम ने हनुमान से कहा कि वो बाण नहीं चला सकते क्योंकि दोनों ही भाइयों में बहुत समानता है। जरा सी भी भूल अर्थ से अनर्थ कर सकती है। इधर, बाली सुग्रीव को लगातार मारे जा रहा था। इसी बीच सुग्रीव मौका पाकर वहां से अपने प्राण बचाकर निकल गए।
राम पर भरोसा करके सुग्रीव ने बाली को युद्ध के लिए ललकारा। क्रोधित बाली सुग्रीव से युद्ध करने के लिए बाहर आया। दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा, तब तक राम जी भी उस स्थान पर पहुंच गए।
बाली कहते हैं- 'वह राक्षस ललकारने लगा... हम दोनों भाई उसका सामना करने गए। वह दानव हमदोनों को देख कर छुप गया। बाली उस राक्षस को खत्म करने के लए गुफा में जाने लगा। लेकिन मैंने कहा कि भैया हम नहीं जानते कि वह गुफा कितनी लंबी है और कहां जाती है। मैं साल भर तक वहीं खड़ा रहा। दीर्घकाल तक ये चलता रहा। मैं बाहर इंतजार करता रहा। एक दिन गुफा से खून बहने लगा। आवाजें तेज आने लगी। ऐसे में मुझे लगा बाली भैयाअब नहीं रहे। ऐसे में मैंने गुफा को बंद कर दिया। और किश्किंधा लौट आया। मैं जब वापस आय़ा तो मंत्रियों ने तय किया कि अब मुझे राजा बनाया जाए। लेकिन बाली मरा नहीं था। बाली ने दानव का अंत कर दिया था। बाली को लगा कि मैंने उसके साथ विश्वासघात किया है। वह सीधा दरबार में आ गया मैं राजा बना बैठा था। मैंने पूछा भैया आप? बाली ने कहा कि कष्ट हुआ होगा तुम्हें। बाली मुझसे लड़ने लगा।'
श्रीराम पूछते हैं कि तुमने बाली का ऐसा क्या किया कि उसने तुम्हारे साथ ऐसा किया? ऐसे में सुग्रीव बतताते हैं- 'प्रभु मैंने तो हमेशा उनकी सेवा ही की। लेकिन उसने हमेशा मेरा तिरस्कार ही किया। पिताजी की मृत्यु के बाद राज पाठ बाली को मिला औऱ मुझे युवराज घोषित किया गया। मैं उनकी सेवा करता था। एक बार एक मायावी राक्षस आय़ा और बाली को युद्ध के लिए ललकारने लगा।'
श्रीराम सुग्रीव से पूछते हैं कि आखिर आप दोनों भाइयों की क्यों नहीं बनी? तभी सुग्रीव कहते हैं कि बाली ने उनका बहुत तिरस्कार किया है उनकी पत्नी को भी हर लिया। वह श्रीराम को बताते हैं कि इस वजह से हमें लगा कि कहीं आप भी उसके भेजे हुए तो नहीं। ऐसे में हमने हनुमान को आपके पास आपका भेद जानने के लिए भेजा।
इधर, बाली अपने गुरूर में है। उसे लगता है कि कोई भी राजा ऐसे व्यक्ति से संधी नहीं करेगा जो खुद अपने ही राज्य से निकाला गया हो। दरअसल, तारा बाली से संदेह जताते हुए कहती है कि कहीं सुग्रीव दोबारा न आ जाए, वह कुछ ताकतवर लोगों से मिला है जो मिलकर हमपर आक्रमण कर सकते हैं। लेकिन अपने अभिमान में चूर बालीकहता है कि वह कायर है ऐसा नहीं कर सकता।
श्रीराम कहते हैं- सीते तुम्हारा राम तुम्हारी सहायता के लिए जरूर आएगा। इधर मां सीता की आत्म इस बात को सुन लेती है। सीता अपने मन से पूछती हैं कि मेरा पता कौन बताएगा, स्वामी को कैसे पता चलेगा कि मैं कहा हूं। मैंने आभूषण फेंके थे, उन्हें मिले होंगे ना? अशोक वाटिका में त्रिजटा सीता को समझाती हैं कि उन्हें अपनी सेहत का खयाल रखना चाहिए। अभी कुछ खालें। लेकिन सीता नहीं मानतीं।
सुग्रीव श्रीराम को बताते हैं कि उन्होंने आखिरी बार सीता को देखा था। एक राक्षस उन्हें वायुयान से ले जा रहा था। सुग्रीव बताते हैं कि सीता ने एक पोठली भी नीचे फेंकी थी। जिसमें कुछ आभूषण बंद थे। श्रीराम उन्हें देखते ही रो पड़ते हैं वह अपने भाई लक्ष्मण से पूछते हैं कि देखा लक्ष्मण ये तुम्हारी भाभी के ही आभूषण हैं ना? रोते हुए श्रीराम पूछते हैं। तभी लक्ष्मण कहते हैं भैया मैं तो कभी भाभी के चेहरेको देखा ही नहीं। हमेशा उनके चरणों की ही वंदना की है।
सुग्रीव कहते हैं- आज से आपका दुख हमारा है। राम कहते हैं- आपका मित्र होने के पश्चात मरा पहला कर्तव्य है कि आपके सुख को बांटने से पहले आपका दुख बांटूं। श्रीराम वचन देते हैं कि वह उनकी पत्नी और उनका राज्य उन्हें वापस दिलाएंगे।
कांधे पर दो वीर बीठाकर चले वीर हनुमान: श्रीराम के पूर्ण परिचय के बाद हनुमान प्रभु के चरणों में गिर पड़ते हैं। इसके बाद हनुमान श्रीराम और लक्ष्मण को अपने कांधे पर बैठाकर सुग्रीव से मिलाने चल पड़ते हैं।