धन संपत्ति, बल और वैभव चाहे जितना भी हो जाए, उसका अभिमान नहीं करना चाहिए। समय या काल बहुत बलवान होता है इसलिए जीवन का प्रत्येक क्षण अच्छे कार्यों में लगाना चाहिए। क्योंकि समय कब क्या दिखा दे कुछ कहा नहीं जा सकता। राम द्वारा बालि के वध से यही सार निकलता है। बाली जिसके छूने भर से बड़े बड़े पहाड़ धूल में मिल जाते थे। वह स्वयं धूल में मिल जाता है।
रामायण में इस समय बालि का वध हो चुका है। बालि के वध के लिए छोटे भाई सुग्रीव अपने आपको जिम्मेदार ठहराते हैं। जो भाई रामचंद्र से कह, अपने अग्रज का वध कराते हैं वे राजा बनने की इच्छा त्यागने की बात करते हैं। सुग्रीव कहते हैं कि वे अब राजा नहीं बनना चाहते हैं बल्कि तपस्या कर पाप का प्रायश्चित करना चाहते हैं। सुग्रीव की इस बात पर राम उन्हें समझाते हैं कि ये प्रायश्चित का भाव ही तुम्हें सच्चा पुरुष बनाता है। वहीं सुग्रीव संन्यासी बनने की बात कहते हैं।
सुग्रीव को राम समझाते हुए कहते हैं, ‘सन्यासी से अच्छा राजा और कौन हो सकता है। जिसे सिंघासन और सत्ता का लोभ ना हो वही न्याय कर सकता है। जिसे काम की इच्छा नहीं होगी वही तपस्वी की भांति जन कल्याण में मग्न रहेगा। सन्यासी की भांति ही कुछ भी ना अपना होगा ना ही पराया होगा। वह ईश्वर और प्रजा से एक जैसा बर्ताव करेगा। इसलिए राजा को ईश्वर माना गया है।’
सुग्रीव ने श्री राम का धन्यवाद अदा करते हुए उनके चरणों में अपना मुकुट अर्पित करते हैं। वह युवराज अंगद को राम जी का आशीर्वाद लेने को कहा। राम ने सुग्रीव को राजनीति संबंधी कई अच्छे सुझाव दिए। उन्होंने बोला कि इस समय सुग्रीव का प्रथम कर्तव्य ये है कि अपने राज्य की शक्तियों को संगठित करें। इस पर सुग्रीव कहते हैं कि उनका पहला कर्तव्य है कि वो मां सीता की तलाश करें। लेकिन श्री राम ने कहा कि अभी बरसात का समय है, सीता की खोज वो सब मिलकर कार्तिक माह से शुरू करेंगे। इन चार महीनों में वो अपना पूरा समय अपने राज्य को दें। राम ने बताया कि अगले 4 महीने वो गिरि पर्वत पर वास करेंगे। वहीं सुग्रीव अपने राज्य के साथ सेना तैयारी में जुटेंगे।
Highlights
हनुमान जी ने राम जी से पूछा कि मां सीता की खोज की शुरुआत कैसे करनी है। इस पर राम जी ने कहा कि कर्ता तो आप ही हैं तो ये फैसला भी आपका ही होना चाहिए। बजरंगबली युवराज अंगद को आदेश देते हैं और मां जानकी की खोज के प्रयत्नों को गति प्रदान करते हैं।
हनुमान ने राम को बताया कि सुग्रीव ने तमाम वानर सेना को इकट्ठा करने के आदेश दिए हैं। साथ ही, अपने गुप्तचरों को मां सीता की खोज में लगा दिया है। इस बीच, हनुमान जी के पिता केसरी भी वहां पहुंच गए।
महारानी तारा ने सुग्रीव से कहा कि वो शीघ्र ही जाकर श्री रामचंद्र से जाकर मिलें। वो लक्षमण जी से कहती हैं कि सुग्रीव अपने वचन से पीछे नहीं हटे हैं। माता सीता की खोज के लिए वो अपना राज-काज, घर-द्वार सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार हैं। राम से मिलने के बाद सुग्रीव उनके चरणों में गिर गए, राम उनसे कहते हैं कि मित्र की जगह हृदय में होती है। इस पर सुग्रीव कहते हैं कि वो उनके अपराधी हैं। राम जी कहते हैं कि मित्र पर संदेह नहीं करते बल्कि उन पर विश्वास करते हैं। हनुमान जी ने राम से कहा कि सुग्रीव से विलंब जरूर हुआ लेकिन उन्हें अपना वचन हमेशा याद था।
तारा ने लक्षमण से कहा कि इतनी दूर से आप आए हैं इसलिए आप कुछ देर आराम कर लें। लक्षमण उनसे कहते हैं कि क्या सुग्रीव उनसे मिलना नहीं चाहते, इस पर हनुमान उनसे कहते हैं कि ऐसा नहीं है। वो अपनी भूल पर लज्जित हैं पर आपसे मिलने के अभिलाषी हैं। लक्षमण सुग्रीव से कहते हैं कि सब कुछ पाकर वो भोग विलास में लिप्त हो गए हैं। वो आगे कहते हैं कि कृतघ्नता का कोई पश्चाताप नहीं होता। बीच में रोकते हुए तारा लक्षमण से कहती हैं कि मित्र के प्रति ऐसे कठोर वचन का उपयोग सही नहीं है। हनुमान जी लक्षमण से कहते हैं कि राज-काज की वजह से सुग्रीव को समय का अंदाजा न रहा, यथार्थ को जाने बगैर ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। इसके बाद लक्षमण ने अपने कठोर वचनों के लिए सुग्रीव से माफी मांगी।
अपने राजसी ठाठ-बाट के प्रभाव में सुग्रीव अपने कक्ष में नृत्यांगनाओं का नृत्य देखने में व्यस्त हैं, वहीं लक्षमण सुग्रीव को याद दिलाने उनके महल की ओर प्रस्थान करते हैं। जैसे ही लक्षमण वहां पहुंचे युवराज अंगद ने इस बात की जानकारी हनुमान व जामवंत को दी। इधर, हनुमान ने महारानी तारा से कहा कि इस समय वही लक्षमण को शांत कर सकती हैं। वहीं लक्षमण ने क्रोध में आकर बाण छोड़ा जिसकी गर्जना से पूरे महल में भगदड़ मच गई।
राज-काज में व्यस्त सुग्रीव बरसात का मौसम बीतने के बाद भी राम से मिलने नहीं गए जिससे हनुमान और जामवंत चिंतित थे। इधर, राम लक्षमण से कहते हैं कि सीता का कोमल तन इतनी कठोर यातनाएं कैसे सहता होगा। राम सुग्रीव के बारे में भी लक्षमण से कहते हैं कि वो अब तक मिलने नहीं आए। वो कहते हैं कि मुझे दुख इस बात का है कि हनुमान को भी उनकी चिंता नहीं है। राम लक्षमण को आदेश देते हैं कि वो जाकर सुग्रीव को चेतावनी देकर आएं। मुझे लगता है कि वो बाली के वध करने वाले राम को भूल गए हैं। क्रोधित लक्षमण आवेश में आकर सुग्रीव को सबक सिखाने निकलते हैं कि तभी राम उनसे कहते हैं कि इतना आवेश ठीक नहीं, वो वहां जाकर संयम से काम लें।
माता सीता राम जी को याद करके विलाप कर रही थीं। इधर, राम भी बिना सोए केवल दिन गिन रहे थे। वो सोचने लगे कि जानकी तो वनवास केवल मेरे भरोसे आई थी और मुझसे उनकी रक्षा भी नहीं हो पाई। हर समय बस यही सोचते थे कि सीता किस हालत में होगी। वहीं, अयोध्या में भी भरत, कौशल्या और उर्मिला राम-लखन और सीता की यादों में खोए हुए हैं।
बरसात के मौसम में भीगती हुई सीता अशोक वाटिका में बैठे हुए श्री राम का इंतजार करती हैं। इधर, लक्षमण जी भी अपनी भाभी की स्थिति का अनुमान लगाकर चिंतित हो रहे थे। वो सुग्रीव से कहते हैं कि भैया तो हमें अपनी व्यथा नहीं बताएंगे परंतु भाभी के लिए तो एक-एक दिन वर्षों के भांति बीत रहे होंगे। वहीं, सीता अकेली बैठी अपने पुराने दिनों का स्मरण करती हैं।
इस समय सुग्रीव का प्रथम कर्तव्य ये है कि अपने राज्य की शक्तियों को संगठित करें। इस पर सुग्रीव कहते हैं कि उनका पहला कर्तव्य है कि वो मां सीता की तलाश करें। लेकिन श्री राम ने कहा कि अभी बरसात का समय है, सीता की खोज वो सब मिलकर कार्तिक माह से शुरू करेंगे। इन चार महीनों में वो अपना पूरा समय अपने राज्य को दें।
सुग्रीव कपिश्वर किश्किंधापति का राज्याभिषेक...: हनुमान ने सुग्रीव को गंगाजल से पवित्र किया औऱ लक्ष्मण ने सुग्रीव को मुकुट पहनाया। इस बीच उत्सव मनाया जाता है। महिलाएं नृत्य करती हैं, ऋषि-मुनि सुग्रीव पर फूलों की बरसात कर रहे थें। हनुमान-जामवंत ने मिलकर सुग्रीव का रुद्राभिषेक किया। इसके बाद लक्षमण ने पूरे सम्मान के साथ सुग्रीव को मुकुट पहनाया।
बाली का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ : श्रीराम कहते हैं, अंगद वीर बाली के अंतिम संस्कार की तैयारी करो राजकीय सम्मान के साथ।
बाली की पत्नी तारा कहती हैं - प्रभु राम जिस बाण से आपने मेरे पति के प्राण लिए हैं, उसी से आप मेरे भी प्राण हरलीजिए। तभी श्रीराम कहते हैं- वीरवधु तारा ये अधर्म होगा। पंच तत्वों से बने प्राणा के शरीर को अगर अपना पति मानती हो तो यहीं ये बाली सामने। और अगर पवित्र आत्मा को अपना बाली मानती हो तो वह हमेशा तुम्हारे साथ है।
बाली भगवन श्रीराम से कहते हैं कि सुग्रीव की तरह ही अंगद को भी शरण में ले लीजिए..: श्रीराम से बाली प्रार्थना करते हैं कि प्रभु मेरे बेटे को भी अपनी शरण में सुग्रीव की तरह ले लीजिए। बाली बेटे को समझाते हैं कि बेटे सदैव सुग्रीव को सम्मान देकर उनके आधीन रहना। उनके शत्रुओं का साथ मत देना। सदा स्वामी बनकर सुग्रीव के कार्य में हाथ बटाना। गलत का साथ मत देना। समय के साथ ही अपने आप को बदल लेना ही बुद्धिमानी है। काका पिता के समान होता है।
पति बाली को मरता देख दौड़ी आई तारा..: 'तारा कहती हैं स्वामी ये क्या हो गया, मैंने आपको कहा था कि सुग्रीव को मारने यूं न जाएं। आप नहीं मानें। स्वामी चलिए अपने भवन में वहां सब ठीक हो जाएगा।' लेकिन बाली नहीं मानते वह कहते हैं- 'नहीं मुझे अब पुत्र अंगद अपने कांधे पर ले जाएगा।'
बाली अपनी गलती मानता है। तभी श्रीराम कहते हैं कि 'पापी ने अपना पाप माना इसके बाद से उसके पाप कट जाते हैं। हे, बाली तुम्हारी सेवा कर अब हम तुम्हें ठीक करेंगे। तुम चिंता न करो।' कभी बाली कहते हैं -'स्वामी वो ठीक है लेकिन ऐसी मृत्यु फिर नहीं मिलेगी। मुझे अपनपे चरण छूने दें।'
श्रीराम ने स्वंय अपने बाण से बाली का वध किया। तीर लगने के बाद बाली ने श्रीराम से पूछा कि आखिर सुग्रीव आपको कैसे प्यारा हो गया औऱ मैं आपके लिए दुश्मन बन गया। बाली कहता है- राम तुम्हारे इस पाप का प्राश्चित कभी नहीं होगा। तुमने मुझे अनीति से मारा है। मुझे एक वीर योद्धा की तरह नहीं मारा। छल से माराहै। तभी श्रीराम कहते हैं 'जिस का कभी तुमने पालन नहीं किया आज वह सब तुम मुझे गिना रहे हो। तुम और तुम्हारे मंत्री चपल हैं। तुम धर्म की बात कर रहे हो। तुमने तो कभी सामान्य आचार विचार भी नहीं किया। अपने छोटे भाई से कैसा व्यवहार किया। अपने छोटी भाई की बीवी के साथ तुमने गलत किया। तुमने सुग्रीव के साथ अन्याय किया। ऐसे पुरुष को दंडित कर के पाप नहीं लगता।'
श्रीराम ने बोला कि इस समय सुग्रीव का प्रथम कर्तव्य ये है कि अपने राज्य की शक्तियों को संगठित करें। इस पर सुग्रीव कहने लगे कि उनका पहला कर्तव्य है कि वो मां सीता की तलाश करें। लेकिन श्री राम ने कहा कि अभी बरसात का समय है, सीता की खोज वो सब मिलकर कार्तिक माह से शुरू करेंगे। इन चार महीनों में वो अपना पूरा समय अपने राज्य को दें। राम ने बताया कि अगले 4 महीने वो गिरि पर्वत पर वास करेंगे।
श्रीराम ने सुग्रीव को उनका राजपाठ वापस दिलाया। ऐसे में सुग्रीव ने श्री राम का धन्यवाद। भगवन को प्रणाम करते हुए सुग्रीव ने राम के चरणों में अपना मुकुट अर्पित कर दिया। इसके बाद सुग्रीव युवराज अंगद को राम जी का आशीर्वाद लेने को कहते हैं। राम ने सुग्रीव से कहा कि अब सुग्रीव राजा बन गए हैं ऐसे में उनको राजनीति संबंधी कई अच्छे सुझाव श्रीराम ने दिए।