Ramayan 21 May Episode Update: प्रभु राम से बिछड़ने के वियोग में भाई भरत का काफी बुरा हाल हो जाता है। ऐसे में भरत श्रीराम से वापस अयोध्या चलने की गुहार लगाते हैं। प्रभु श्रीराम अपने धर्म को ध्यान में रख कर अपने निर्णय पर अटल रहते हैं। भाई के प्रेम को देखकर प्रभु राम अपने भाई भरत को गले से लगा लेते हैं और कहते हैं कि जो राज्य आज तुम मुझे देने आए हो मैं उसे स्वीकार करता हूं लेकिन पिता जी की आज्ञा को मैं टाल नही सकता ऐसे में तुमको 14 वर्षों तक अयोध्या का कार्यभार संभालना होगा।
भरत, प्रभु राम की बात सुनकर कहते हैं कि ये मेरे लिए संभव नही जिसपर राम कहते हैं कि तुम्हें इस कार्य में बड़ों से पूरा सहयोग मिलेगा। भाई भरत प्रभु राम की बातों से सहमत होकर 14 वर्षों तक अयोध्या के राजा के रूप में कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन वो जाते जाते राम जी के निशानी के रूप में उनकी चरण पादुका मांगते हैं। प्रभु राम भाई का प्रेम देखकर काफी भावुक हो जाते हैं।
इससे पहले राजा जनक राम और भरत से कहते हैं कि तुम दोनों में से महान कौन है इस बात का फैसला मुझ जैसा तुच्छ व्यक्ति नही कर सकता ऐसे में प्रभु राम आप ही कोई फैसला लें कि क्या करना है। भाई भरत राजा जनक की बातें सुनकर दुविधा में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि वो प्रभु राम के लिए अपने प्राण तक दे सकते हैं। जिसपर राजा जनक उनसे कहते हैं कि ये फैसला तुम प्रभु राम को करने दो कि वो क्या चाहते हैं और वो जो भी निर्णय लेंगे वो सबको मंजूर होगा।
Highlights
भाई भरत प्रभु राम की बातों से सहमत होकर 14 वर्षों तक अयोध्या के राजा के रूप में कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन वो जाते जाते राम जी के निशानी के रूप में उनकी चरण पादुका मांगते हैं। प्रभु राम भाई का प्रेम देखकर काफी भावुक हो जाते हैं और उन्हें गले से लगा लेते हैं।
प्रभु राम अपने भाई भरत को गले से लगा लेते हैं और कहते हैं कि जो राज्य आज तुम मुझे देने आए हो मैं उसे स्वीकार करता हूं लेकिन पिता जी की आज्ञा को मैं टाल नही सकता ऐसे में तुमको 14 वर्षों तक राज्य करना होगा। भरत, प्रभु राम की बात सुनकर कहते हैं कि ये मेरे लिए संभव नही जिसपर राम कहते हैं कि तुम्हें इस कार्य में पूरा सहयोग मिलेगा। भरत, राम से कहते हैं कि अगर आपको आने में 14 वर्षों से एक भी दिन की देरी हुई तो मैं तुरंत अपने प्राण त्याग दूंगा।
जनक राम और भरत से कह रहे हैं कि तुम दोनों में से महान कौन है इस बात का फैसला मुझ जैसा तुच्छ व्यक्ति नही कर सकता ऐसे में प्रभु राम आप ही कोई फैसला लें कि क्या करना है। भाई भरत राजा जनक की बातें सुनकर दुविधा में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि वो प्रभु राम के लिए अपने प्राण तक दे सकते हैं। जिसपर राजा जनक उनसे कहते हैं कि ये फैसला तुम प्रभु राम को करने दो कि वो क्या चाहते हैं और वो जो भी निर्णय लेंगे वो सबको मंजूर होगा।
वन में राजा जनक का आगमन हो चुका है। अयोध्या वासियों को इस बात की उम्मीद है कि राजा जनक अवश्य राम जी को अयोध्या ले आएंगे। ऐसे में राजा जनक दुविधा में पड़ जाते हैं क्योंकि एक तरफ प्रेम है और दूसरी तरफ धर्म।
भरत, राम जी से कहते हैं कि अगर उन्हें अपने भाई से प्रेम है तो वो तुंरत अयोध्या लौट चलें। राम अपने वचन से बंधे हुए हैं ऐसे में भरत भावुक मन से उनसे कहते हैं कि अगर वो अयोध्या नही लौटे तो वो उनके चरणों में अपने प्राण त्याग देंगे। वहीं दूसरी ओर राजा जनक का आगमन होता है।
प्रभु राम, भरत से कहते हैं कि महाराज ने जो कुछ भी किया उसका पालन करना हमारा धर्म है ऐसे में तुम अयोध्या लौट जाओ। राम जी की बातें सुनकर कैकयी को पछतावा होता है और वो राम जी से कहती हैं कि महाराज को वचन मैंने दिया था। मैं तुमको उस वचन से मुक्त करती हूं।
भाई के प्रेम को देखकर प्रभु राम अपने भाई भरत को गले से लगा लेते हैं और कहते हैं कि जो राज्य आज तुम मुझे देने आए हो मैं उसे स्वीकार करता हूं लेकिन पिता जी की आज्ञा को मैं टाल नही सकता ऐसे में तुमको 14 वर्षों तक अयोध्या का कार्यभार संभालना होगा। भरत, प्रभु राम की बात सुनकर कहते हैं कि ये मेरे लिए संभव नही जिसपर राम कहते हैं कि तुम्हें इस कार्य में बड़ों से पूरा सहयोग मिलेगा। भाई भरत प्रभु राम की बातों से सहमत होकर 14 वर्षों तक अयोध्या के राजा के रूप में कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन वो जाते जाते राम जी के निशानी के रूप में उनकी चरण पादुका मांगते हैं। प्रभु राम भाई का प्रेम देखकर काफी भावुक हो जाते हैं।
पुत्र वियोग में राजा दशरथ ने जीने की इच्छा ही छोड़ दी है। राजा दशरथ रानी कौशल्या को बताते हैं कि श्रवण कुमार के अंधे पिता ने उन्हें श्राप दिया था। राजा दशरथ को विवाह से पहले ये श्राप मिला था, जब राजा दशरथ रात के समय शिकार पर निकले थे. उस दौरान राजा दशरथ जानवर समझकर श्रवण कुमार पर निशाना लगा देते हैं जिससे श्रवण कुमार घायल हो जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है। श्रवण कुमार के पिता इस बात से क्रोधित होकर बेटे के ग़म में राजा दशरथ को श्राप देते हैं कि राजा दशरथ भी पुत्र वियोग में तड़प-तड़प कर मरेगा।