Ramayan 20th May Episode Update: प्रभु राम से बिछड़ने के वियोग में भाई भरत का काफी बुरा हाल हो जाता है। ऐसे में भरत श्रीराम से वापस अयोध्या चलने की गुहार लगा रहे हैं। प्रभु श्रीराम अपने धर्म को ध्यान में रख कर अपने निर्णय पर अटल हैं। वह पिता के वचन को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे में राजकुमार भरत के लिए समस्याएं बढ़ जात हैं। वहीं दूसरी ओर श्री भरत राजा जनक की बातें सुनकर दुविधा में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि वो प्रभु राम के लिए अपने प्राण तक दे सकते हैं। जिसपर राजा जनक उनसे कहते हैं कि ये फैसला तुम प्रभु राम को करने दो कि वो क्या चाहते हैं और वो जो भी निर्णय लेंगे वो सबको मंजूर होगा।
प्रभु राम अपने भाई भरत को गले से लगा लेते हैं और कहते हैं कि जो राज्य आज तुम मुझे देने आए हो मैं उसे स्वीकार करता हूं लेकिन पिता जी की आज्ञा को मैं टाल नही सकता ऐसे में तुमको 14 वर्षों तक अयोध्या पर राज करना होगा। भरत, प्रभु राम की बात सुनकर कहते हैं कि ये मेरे लिए संभव नही जिसपर राम कहते हैं कि तुम्हें इस कार्य में बड़ों से पूरा सहयोग मिलेगा। भाई भरत प्रभु राम की बातों से सहमत होकर 14 वर्षों तक अयोध्या के राजा के रूप में कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन वो जाते जाते राम जी के निशानी के रूप में उनकी चरण पादुका मांगते हैं। प्रभु राम भाई का प्रेम देखकर काफी भावुक हो जाते हैं।
इससे पहले रामायण में दिखाया गया कि पुत्र वियोग में राजा दशरथ ने जीने की इच्छा ही छोड़ दी है। राजा दशरथ रानी कौशल्या को बताते हैं कि श्रवण कुमार के अंधे पिता ने उन्हें श्राप दिया था। राजा दशरथ को विवाह से पहले ये श्राप मिला था, जब राजा दशरथ रात के समय शिकार पर निकले थे. उस दौरान राजा दशरथ जानवर समझकर श्रवण कुमार पर निशाना लगा देते हैं जिससे श्रवण कुमार घायल हो जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है। श्रवण कुमार के पिता इस बात से क्रोधित होकर बेटे के ग़म में राजा दशरथ को श्राप देते हैं कि राजा दशरथ भी पुत्र वियोग में तड़प-तड़प कर मरेगा।
Highlights
कुमार भरत अपनी मां से आशीर्वाद लेते हुए नंदीग्राम की ओर रवाना हो जाते हैं। भरत के वन में जाने से अयोध्या में सभी लोग दुखी हो जाते हैं और प्रभु श्री राम के प्रति भाई के इस आदरभाव को देखकर भावुक हो उठते हैं।
भरत, उर्मिला से माफी मांगते हुए कहते हैं कि वो उन्हें क्षमा कर दें कि वो उन्हें अपने साथ नही ले जा पाए जिसपर। उर्मिला उनसे कहती हैं कि कुमार भरत आप ऐसा मत कहें आपके त्याग के आगे तो मेरा दुख कुछ भी नही।
कुमार भरत मुनियों से अपने मन की बात बताते हुए कहते हैं कि जिसके प्रभु जंगलों में हो वो कैसे राजपाठ संभाल सकता है। भरत कहते हैं कि जब तक श्री राम अयोध्या नही वापस आएंगे तब तक वो भी अयोध्या का सुख नही भोगेंगे और वन में रहकर राज्य का सारा कार्य संभालेंगे।
भाई भरत प्रभु राम की बातों से सहमत होकर 14 वर्षों तक अयोध्या के राजा के रूप में कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन वो जाते जाते राम जी के निशानी के रूप में उनकी चरण पादुका मांगते हैं। प्रभु राम भाई का प्रेम देखकर काफी भावुक हो जाते हैं।
प्रभु राम अपने भाई भरत को गले से लगा लेते हैं और कहते हैं कि जो राज्य आज तुम मुझे देने आए हो मैं उसे स्वीकार करता हूं लेकिन पिता जी की आज्ञा को मैं टाल नही सकता ऐसे में तुमको 14 वर्षों तक राज्य करना होगा। भरत, प्रभु राम की बात सुनकर कहते हैं कि ये मेरे लिए संभव नही जिसपर राम कहते हैं कि तुम्हें इस कार्य में पूरा सहयोग मिलेगा।
भाई भरत राजा जनक की बातें सुनकर दुविधा में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि वो प्रभु राम के लिए अपने प्राण तक दे सकते हैं। जिसपर राजा जनक उनसे कहते हैं कि ये फैसला तुम प्रभु राम को करने दो कि वो क्या चाहते हैं और वो जो भी निर्णय लेंगे वो सबको मंजूर होगा।
राजा जनक दुविधा में पड़ चुके हैं और राम और भरत से कह रहे हैं कि तुम दोनों में से महान कौन है इस बात का फैसला मुझ जैसा तुच्छ व्यक्ति नही कर सकता ऐसे में प्रभु राम आप ही कोई फैसला लें कि क्या करना है।
भरत को रानी कैकई के पास ले जाती हैं और उनकी मां को विधवा के रूप में देख भरत के होश उड़ जाते हैं। भरत अपने मां से इस अवतार का कारण पूछते हैं, रानी कैकई अपने बेटे भरत को बताती है कि राजा दशरथ अब इस दुनिया में नहीं रहे, ये सुनकर भरत को बहुत धक्का लगता है।
राजा दशरथ की मृत्यु हो जाती है। महल में दुख की लहर दौड़ पड़ती है। वहां वन में श्रीराम का मन विचलित हो रहा है, उन्हें किसी अनहोनी का आभास हो रहा है और उनके मुख से पिता निकल जाता है और वे ये बात लक्ष्मण से कहते हैं।