Ramayan 11 April Evening Episode: वानर सेना की अथक मेहन रंग लाती है और सेतु निर्माण का कार्य सम्पन्न होता है। जैसे ही सेतु निर्माण का कार्य पूरा होता है हनुमान तुरंत आकर इसकी राम को सूचना देते हैं। राम इसका श्रेय सबको देते हुए भगवान शिव से हाथ जोड़ प्रार्थना करते हैं और कहते हैं कि हे भोलेनाथ मेरी एक विनीती स्वीकार करिए और आज से इस जगह को रामेश्वर के नाम से भी जाना जाएगा। इसके बाद हर-हर महादेव के जयकारे के साथ पूरी वानर सेना लंका की ओर कूच कर जाती है।
राम ने ऐसे मनाया समुद्र देव को
विभीषण पुरुषोत्तम राम की शरण में आ चुके हैं। राम विभीषण और पूरी वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने को लेकर समुद्र देवता से अपनी धारा को कम करने का आग्रह करते हैं। सुबह से शाम हो जाती है लेकिन समुद्र की लहरें ज्यों की त्यों बनी रहती है। इधर, राम जी लगातार समुद्र की अराधना में लीन हो जाते हैं। पूरी वानर सेना वहीं सिंधु तट पर बैठे समुद्र को निहारती रहती है। हनुमान जी कहते हैं कि क्या समुद्र महाराज सगर के उपकारों को भूल गया। दो दिन व्यतीत हो जाने के बावजूद समुद्र की लहरों में कोई बदलाव नहीं आया।
प्रभु राम ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र उठा लेते हैं जिसके भय से समुद्र देवता प्रकट हुए और उनके चरणों में गिर पड़े। उन्होंने कहा कि जल यदि अपने प्रवाह को रोकेगा तो इससे राम जी की आज्ञा का ही उल्लंघन होगा। अगर पंचतत्व में से किसी भी तत्व में विकार आएगा तो सृष्टि में प्रलय आ जाएगा। सारी बातें सुनकर राम जी समुद्र से कहते हैं कि हमें कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे न तो समुद्र की गरिमा भंग हो और वो अपनी सेना को लेकर समुद्र भी पार कर लें।
राम जी अपनी सेना से कहते हैं कि जब तक पुल का निर्माण चल रहा है, वो अपने आराध्य शिव जी की पूजा करेंगे। इधर, वानर सेना पुल बनाने के कार्य में जुट जाती है। वहीं श्री राम भी विधिवत् शिव पूजा में लीन हो जाते हैं। राम पूरे विधि-विधान से शिवलिंग की स्थापना करते हैं और उन पर पुष्प और बेलपत्र अर्पित करते हैं।
राम अपने बाण से रावण को आगाह करते हैं। राम का बाण रावण के मुकुट पर लगता है और जमीन पर गिर पड़ता है। मंदोदरी ये देख काफी भयभीत हो जाती है। वह तुरंत महादेव से अपने पति की रक्षा की गुहार लगाने लगती है। वहीं रावण ठहाके लगाने लगता है। उधर इंद्रजीत कहता है कि उसे आज्ञा मिले तो आज रात ही राम को खत्म कर दे। लेकिन मंत्री ऐसा ना करने की हिदायत देते हैं और कहते हैं कि ये नहीं भूलना चाहिए कि विभीषण उनके साथ हैं और हमारी सारी रणनीति के बारे में पहले ही आगाह कर दिया होगा। इसके बात सबकी सहमति से राम की सेना की टोह लेने के लिए दो गुप्तचर भेजे जाते हैं। हालांकि वे पकड़े जाते हैं। राम दोनों को माफ कर देते हैं।
400 कोस की दूरी पार कर राम अब लंका की धरती पर पैर रख चुके हैं। छावनी के गठन को लेकर राम सुग्रीव की तारीफ करते हैं। वहीं सुग्रीव बताते हैं कि इस छावनी का निर्माण तो विभीषण ने किया है। विभीषण बताते हैं कि वह रावण के भाई हैं और रण के दांव पेंच तो उन्हें भी आते हैं..
मायावी रावण एक चाल चलने की कोशिश करता है और अपने मायावी शक्तियों से वह राम का कटा हुआ सिर सीता के सामने थाल में पेश करता है। सीता पति का कटा सिर देख रोने लगती हैं और रावण को उसके विनाश का श्रॉप देती हैं। रावण कहता है कि जब तक पति जीवित था, तुम्हारी हठधर्मिता समझ में आती थी लेकिन जो रहा नहीं उसके लिए इस वृक्ष के नीचे जोगन की भांति जीवन व्यतीता करना कहां कि समझदारी है। हालांकि कि कुछ ही देर में वह मायावी सिर गायब हो जाता है। वहां मौजूद राक्षसी बताती है कि ये मायावी सिर है। राम तो लंका आ चुके हैं।
वानर सेना की अथक मेहन रंग लाती है और सेतु निर्माण का कार्य सम्पन्न होता है। जैसे ही सेतु निर्माण का कार्य पूरा होता है हनुमान तुरंत आकर इसकी राम को सूचना देते हैं। राम इसका श्रेय सबको देते हुए भगवान शिव से हाथ जोड़ प्रार्थना करते हैं और कहते हैं कि हे भोलेनाथ मेरी एक विनीती स्वीकार करिए और आज से इस जगह को रामेश्वर के नाम से भी जाना जाएगा...
सेतु का आधार रस्सियों और काठ से तैयार किया जाता है। इसके आधार पर श्रीराम लिखे पत्थरों को रखा जाता है। इस कार्य में पूरी वानर सेना जुटी होती है। श्रीराम लिखे पत्थर समुद्र की सतह पर ही अटक जाते हैं। इस तरह तैरते पत्थरों के जरिए सेतु निर्माण का कार्य किया जा रहा है...
वानर सेना सेतु निर्माण में जुट चुकी है। वहीं प्रभु राम भगवान शिव की पूजा में लीन हो जाते हैं। राम समुद्र के तट पर शिवलिंग की स्थापना करते हैं और वेलपत्र अर्पित करते हुए शिव की पूजा में लीन हो जाते हैं।
अब राम-सीता के मिलन में ज्यादा समय नहीं है। रावण को जैसे ही इस बात की खबर लगी तो वो बेहद क्रोधित हो गया। वहीं, सीता इस बात को जानने के बाद बहुत ही प्रसन्न हुईं और समुद्र देव ने राम जी के चरण छुए इस बात से भी माता सीता गौरवांवित हुईं। वो कहती हैं कि अब राम-सीता के मिलन में ज्यादा समय नहीं है।
समुद्र देवता राम को बताते हैं कि उनकी सेना में नल-नील नामक दो भाई हैं जिन्हें ऋषि ने श्राप दिया था कि वो जो कुछ भी पानी में डालेंगे, वो डूबेगा नहीं। अगर वो समुद्र पर सेतु बांध बनाएंगे तो समुद्र पर पुल का निर्माण मुमकिन है। राम जी ने समुद्र से कहा कि हमारी एक और समस्या का समाधान करो, उन्होंने कहा कि उनका ये बाण अमूक है तो ये बाण वो कहां छोड़ें। इस पर देव कहते हैं कि उत्तर दिशा में द्रोणकाल नामक एक जगह है जहां असुर दुराचार करते हैं। इसके उपरांत राम जी ने विश्वकर्मा नंदन नल-नील को सेतु बनाने की आज्ञा दी।