Mahabharat 6th May Episode online Updates: महाभारत के महासंग्राम में पितामह भीष्म के धराशायी होने के बाद उनसे गुरुद्रोण मिलने पहुंचे। उन्होंने भीष्म से कहा कि मैं आपको आर्शीवाद तो नहीं दे सकता लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि आप जैसा योद्धा पूरे भारतवंश में फिर कभी नहीं होगा। इसके साथ ही गुरु द्रोण ने पितामह को अंतिम प्रणाम करते हुए कहा, कि गंगापुत्र भीष्म मैं आपसे पहले इस धरती को छोड़ूंगा, इस लिए मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिए। इतना कह कर द्रोण पितामह के पास से चले गए।
वहीं इससे पहले अपने पुत्र भीष्म को लेने आए महाराज शांतनु से पितामह ने कहा मैंने भारतवंश की ओर आने वाली सभी परेशानियों को वापस लौटाने के सभी प्रयत्न किए लेकिन मैं असफल रहा। हस्तिनापुर के अपराधियों में कहीं न कहीं मैं भी अवश्य खड़ा हुआ हूं और अब देखिए जो मैं ये बाणों की शैय्या पर लेटा हूं। अपनी वजह से हूं। शान्तनु कहते हैं कि चलो पुत्र वहां स्वर्ग में सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, आशीर्वाद लेने के लिए। लेकिन भीष्म अपने पिता शान्तनु के साथ जाने से इंकार कर देते हैं। वह कहते हैं कि जिन लोगों को जाना हैं मैं उन्हें भेजने के बाद ही अपनी अंतिम यात्रा पर निकलूंगा। स्वर्ग की ओर बढ़ूंगा। इतनी देर में द्रोण, भीष्म से मिलने आ जाते हैं और कहते हैं कि मैं प्रार्थना करता हूं कि आपको मोक्ष प्राप्त हो।
वहीं महाभारत के संग्राम में दसवें दिन पितामह भीष्म को युद्ध में अर्जुन के बाणों से छलनी होने के बाद जमीन पर लेटे जाते हैं। कौरव और पांडव भाई उनके पास पहुंचते हैं। भीष्म बोलते हैं कि मेरे सिर को सहारा चाहिए। दुर्योधन दुशासन से तकिया लाने के लिए कहते हैं। भीष्म ने कहा कि जिसने मुझे यह सइया दी है वही सिराहना देगा। अर्जुन अपने तीर से भीष्म के सिराहना बना देते हैं। भीष्म कहते हैं कि मुझे प्यास लगी है। इसके बाद मां गंगा भीष्म को पानी पिलाने के लिए आती हैं
इससे पहले भीष्म पितामह अपने शिविर में होते हैं। इतने में उनके पास युधिष्ठर और अर्जुन आते हैं। उन्हें प्रणाम करते हैं। भीष्म पितामह युधिष्ठर को विजयभव का आशीर्वाद देते हैं। युधिष्ठर कहते हैं कि हम यहां विजयभव का आशीर्वाद लेने नहीं आए हैं। हमें कोई आशीर्वाद न दीजिए पितामह। भीष्म पितामह चौंक जाते हैं। युधिष्ठर कहते हैं कि हमारी विजय के बीच स्वयं आप खड़े हैं। भीष्म कहते हैं कि मैं दी हुई वस्तु वापस नहीं ले सकता। पुत्र तुम मेरी बात न काटो, मेरा बांण काटो, मेरा धनुष काटो। लेकिन आशीर्वाद मैं तुमसे वापस नहीं ले सकता। वासुदेव भली भांति जानते हैं कि अंत में जीत उन्हीं की होगी। वह सब जानते हैं। वह जानते हैं कि तुम्हें और तुम्हारी जीत के बीच से इस गंगा पुत्र को हटाने का उपाय क्या है। अगर मेरे सामने कोई नारी आ जाए तो मुझे इस रणभूमि से बाहर किया जा सकता है। ऐसे में युधिष्ठर पूछते हैं कि युद्ध के मैदान में नारी कैसे आ सकती हैं पितामह। भीष्म कहते हैं कि यह तुम वासुदेव से जाकर पूछो।


पितामह भीष्म के धराशायी होने के बाद उनसे गुरुद्रोण मिलने पहुंचे। उन्होंने भीष्म से कहा कि मैं आपको आर्शीवाद तो नहीं दे सकता लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि आप जैसा योद्धा पूरे भारतवंश में फिर कभी नहीं होगा। इसके साथ ही गुरु द्रोण ने पितामह को अंतिम प्रणाम करते हुए कहा, कि गंगापुत्र भीष्म मैं आपसे पहले इस धरती को छोड़ूंगा, इस लिए मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिए। इतना कह कर द्रोण पितामह के पास से चले गए।
पिता शांतनि से,भीष्म पितामह कहते हैं कि इस रणभूमि में लाशों के ढेर लगेंगे और यह सब मेरी वजह से है। मैंने भारतवंश की ओर आने वाली सभी परेशानियों को वापस लौटाने के सभी प्रयत्न किए लेकिन मैं असफल रहा। हस्तिनापुर के अपराधियों में कहीं न कहीं मैं भी अवश्य खड़ा हुआ हूं और अब देखिए जो मैं ये बाणों की शय्या पर लेटा हूं अपनी वजह से हूं। शान्तनु कहते हैं कि चलो पुत्र वहां स्वर्ग में सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, आशीर्वाद लेने के लिए। लेकिन भीष्म अपने पिता शान्तनु के साथ जाने से इंकार कर देते हैं। वह कहते हैं कि जिन लोगों को जाना हैं मैं उन्हें भेजने के बाद ही अपनी अंतिम यात्रा पर निकलूंगा। स्वर्ग की ओर बढ़ूंगा। इतनी देर में द्रोण, भीष्म से मिलने आ जाते हैं और कहते हैं कि मैं प्रार्थना करता हूं कि आपको मोक्ष प्राप्त हो।
महाराज शांतनु मैं क्या करूं। इसे कैसे संभालूं। कुरुक्षेत्र की रणभूमि वास्तव में मेरी ही रणभूमि है। मैं ही तीर चला रहा हूं। मैं ही मर रहा हूं। मैं ही धृतराष्ट्र हूं और मैं ही युधिष्ठर, मैं ही था जिसने द्रौपदी को दाव पर लगाया था, मैं ही था जिसने द्रौपदी को अपनी जांघ पर बैठने को कहा था, मैं वहीं हूं जिसने द्रौपदी का वस्त्रहरण किया। मैं इससे भाग नहीं सकता।
पितामह भीष्म को बाणों की शैया पर लेटा देख उनके पिता शांतनु स्वर्ग में बहुत उदास हो रहे हैं। इस दौरान वो स्वर्ग से धरती लोक पर अपने पुत्र देवव्रत यानी भीष्म से मिलने आए हैं। शांतनु ने आते ही अपने पुत्र की जय जय कार की उन्होंने कहा तेरे जैसे पुत्र का पिता होकर मैं धन्य हो गया। तेरी वीर गाथा युगों युगों तक गाई जाएगी। इसके बाद शांतनु ने कहा मेरा सत्यवती के लिए मोह प्रेम ही था जिसकी उपज धृतराष्ट्र है। जिसकी वजह से ये सब हो रहा है। मैं आज अपनी धरती पर आकर अपने कर्मों की माफी मांग रहा हूं।
गुरुद्रोण और युधिष्ठर आपस में युद्ध कर रहे हैं। एक-दूसरे पर तीर छोड़ रहे हैं। गुरुद्रोण ने युधिष्ठर का धनुष तोड़ दिया है। वहां, शल्य भी घायल हो चुके हैं और मामा शकुनि भी युद्ध के मैदान में लोगों को घायल करने में लगे हैं। आचार्य द्रोण, युधिष्ठर के रथ के पास अपना रथ लेकर जा रहे हैं। वहीं, अर्जुन उन्हें रोकते हैं और आग की रेखा खींच देते हैं। वासुदेव अर्जुन और द्रोण के बीच हो रहे युद्ध को देख रहे हैं।
कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध हो रहा है। सैनिक घायल हो रहे हैं। मारे जा रहे हैं। उधर गुरुद्रोण सैनिकों पर तीर से बम फोड़ रहे हैं। यहां तक की घोड़े भी घायल हो रहे हैं। यह सब देखकर युधिष्ठर गुस्से में आ रहे हैं। वह अर्जुन और भीम से कहते हैं कि गुरुद्रोण को रोको अगर उन्हें नहीं रोका गया तो वह आज हमें पराजित कर देंगे और उन्हें रोक पाना मुश्किल हो जाएगा। अगर तुम लोग उन्हें नहीं रोक सकते हो तो मैं उनसे युद्ध करूंगा। अर्जुन और भीम कहते हैं कि भैया हमें आपको सुरक्षित रखने का आदेश है। युधिष्ठर कहते हैं कि तुम लोग अवश्य ही मुझसे कुछ छुपा रहे हो।
एक गुप्तचर समाचार लेकर आते हैं। वासुदेव और पांडव युधिष्ठर को बंदी बनाने की बात सुनकर चौंक जाते हैं। वासुदेव कहते हैं कि गुस्सा मत करो बस बड़े भैया की सुरक्षा का प्रबंध करो। दुर्योधन ने बड़ा ही अचूक बाण चलाया है। वह जानता था कि द्रोणाचार्य मान जाएंगे। अगर वह बड़े भैया को बंदी बनाने में सफल हो गए तो यह युद्ध समाप्त हो जाएगा।
कर्ण और मामा शकुनि दुर्योधन का इंतजार कर रहे हैं। शकुनि कहते हैं कि शायद दुर्योधन से भीष्म अपनी आखिरी इच्छा बता रहे हों। आ जाएगा। दुर्योधन शिविर में पधारते हैं और शकुनि का रणभूमि पर हुई बात बताते हैं। इसके बाद शकुनि दुर्योधन से कहते हैं कि अगर तुम युधिष्ठर को बंदी बनाने की बात भी कहो तो आचार्य द्रोण अवश्य मानेंगे।
द्रौपदी का सामना रणभूमि में दुर्योधन से होता है। वह पूछती हैं कि कैसे हो दुर्योधन। दुर्योधन गुस्से में आकर कहते हैं कि अर्जुन ने अगर भीष्म पितामह का मार गिराया है तो यह मत सोचना की हस्तिनापुर का ध्वज गिरा दिया है। हस्तिनापुर का ध्वज मैं हूं, दुर्योधन। दुर्योधन पितामह की शय्या के लिए कहते हैं कि यहां एक खाई खोदी जाए। सेनिक काम पर लग जाते हैं।
द्रौपदी के साथ उत्तरा भी आई हैं। भीष्म पितामह कहते हैं कि हे पुत्री मैं तुमसे यहां रणभूमि में पहली बार मिल रहा हूं। अवस्था तो देखो मिल भी कहां रहा हूं। मेरे पास तुझे देने के लिए मेरे घावों और अर्जुन के वाणों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। इनमें से जो बाण मुझे लगा, ऐसा लगा यह अर्जुन है जो मेरी गोद में बैठ रहा है। मेरे सारे जीवन की कमाई यही बाण है पुत्री। द्रौपदी और उत्तरा के साथ दासियां भी भीष्म पितामह के ऊपर फूल चढ़ा रही हैं। भीष्म पितामह सभी को आशीर्वाद दे रहे हैं। अर्जुन ने मुझपर बाण चलाकर अपने कर्तव्य का पालन किया है और मैंने उसके बाण खाकर अपने कर्तव्य का पालन किया है।
समय कहते हैं कि मैं जख्मों और लाशों की जंगल में खड़ा भविष्य की ओर देख रहा हूं। क्योंकि वर्तमान में लाशों और जख्मों के सिवा कुछ है ही नहीं। भविष्य की तरफ देखा जा हे मानव। सूर्य रोज निकलता है, सवेरा अवश्य ही होता है। देखते रहो कहां से सूर्योदय होगा और रणभूमि की तरफ देखों भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर पड़े हुए हैं।
भीष्म पितामह बाणों की शैया पर लेटे हुए हैं और द्रौपदी दिया लेकर अपनी बहु उत्तरा के साथ उन्हें पूजने के लिए आ रही हैं। भीष्म पितामह की शैया पर द्रौपदी रो रही हैं। भीष्म पितामह उन्हें सौभाग्यवतीभव का आशीर्वाद देते हैं। द्रौपदी तु सदेव पांडवो के मान-अपमान का प्रतीक मानी जाओगी।
पितामह भीष्म के बाणों की शैय्या पर लेटने के बाद अब दुर्योधन के प्रिय मित्र अंगराज कर्ण को रणभूमि में युद्ध का मौका मिला है। इससे पहले कर्ण अर्जुन का वध करने की शपथ ले चुका है।
पितामह भीष्म के बाणों की शैय्या पर लेटे होने के बाद, कुंती गांधारी और धृतराष्ट्र के पास भीष्म के रणभूमि में धराशाई होने का शोक बनाने गई है। इस दौरान धृतराष्ट्र पर गांधारी ने आरोप लगाया कि मेरी कोक उजड़ने के साथ-साथ हस्तिनापुर के साथ-साथ हमारे पितामह भीष्म का भी अंत हो रहा है।
पितामह भीष्म के बाणों की शैय्या पर लेटने के बाद अब दुर्योधन के प्रिय मित्र अंगराज कर्ण को रणभूमि में युद्ध का मौका मिला है। इससे पहले कर्ण अर्जुन का वध करने की शपथ ले चुका है।
बाणों की शय्या पर लेटे पितामह भीष्म से मिलने अंगराज कर्ण पहुंचे हैं। इस दौरान कर्ण से पितामह ने कहा मैं जानता हूं तुम कुंती पुुत्र हैं। इस बात को सुनकर कर्ण हैरान रह गया उसने भीष्म से पूछा अगर आप जानते थे कि मैं पांडवों का ज्येष्ठ भ्राता हूं, तो आपने बताया क्यों नहीं, इस पर पितामह ने कहा इसके दो कारण हैं, पहला ये कि तुमने अपनी आंखों पर मित्रता की पट्टी बांध रखी है, औऱ दूसरा ये कि मैं नहीं चाहता था कि इस युद्ध में अर्जुन या तुम में से कोई एक वीर जिंदा रहे। मैं चाहता हूं कि तुम दोनों ही इस युद्ध में जीवित बचो पुत्र।
पितामह भीष्म के बाणों की शैय्या पर लेटे होने के बाद, कुंती गांधारी और धृतराष्ट्र के पास भीष्म के रणभूमि में धराशाई होने का शोक बनाने गई है। इस दौरान धृतराष्ट्र पर गांधारी ने आरोप लगाया कि मेरी कोक उजड़ने के साथ-साथ हस्तिनापुर के साथ-साथ हमारे पितामह भीष्म का भी अंत हो रहा है।
विदुर ने अपने घर में ठहरी पांडवों की मां कुंती को बताया कि अर्जुन ने अपने बाणों से पितामह भीष्म को बाणों की शैय्या पर लेटा दिया है। जिसके बाद विदुर ने बताया कि पितामह अभी अपने प्राण नहीं त्यागे हैं, क्योंकि वो जब तक हस्तिनापुर को चारों तरफ से सुरक्षित नहीं देख लेंगे, तब तक अपने प्राण नहीं त्यागेंगे। ये सुनकर विदुर उनकी पत्नी और कुंती तीनों फूट-फूट कर रो रहे हैं।
मां गंगा भीष्म से कहती हैं कि चलो। लेकिन भीष्म जाने से मना कर देते हैं। वह कहते हैं कि मैंने पिता को वचन दिया था हस्तिनापुर को छोड़कर नहीं जाऊंगा।
अर्जुन भीष्म से मिलने के आते हैं। वह भीष्म की हालत देखकर बहुत दुखी होते हैं। भीष्म कहते हैं कि आज रणभूमि में तुमने मेरे सारे ऋण चुका दिए। अर्जुन ने कहा कि मैंने कायरता की। शिखंडी के पीछे छिपकर मैंने आप पर बाण चलाए। मैं इस अपराध के लिए खुद को कभी माफ नहीं करूंगा। भीष्म ने कहा कि शिखंडी तुम्हारा ढाल था और मैं उस ढाल को तोड़ने में सफल नहीं हो पाया।
पितामह भीष्म को अपने बाणों से छलनी-छलनी करने के बाद अर्जुन पितामह भीष्म के चरणों को छू कर फूठ फूट कर रो रहे है। इस दौरान पितामह भीष्म बाणों की शय्या पर लेटे हैं।
पितामह भीष्म को शिखंडी की सहायता से छलनी-छलनी करने के बाद अर्जुन ने उन्हें बाणों की शय्या पर लेटा दिया है।
पितामह भीष्म ने अपने कहे वचनों के अनुसार शिखंडी को आगे करने पर अपने शस्त्रों का त्याग कर दिया। जिसके बाद अर्जुन के तीरों ने भीष्म को छलनी-छलनी कर दिया है। इसके बाद भी पितामह अर्जुन को आयुष्मान होने का आर्शीवाद दे रहे हैं।
धृतराष्ट्र और संजय बात कर रहे हैं कि अचानक आचार्य द्रोण ने ऐसा क्यों कहा कि आशीर्वादों के बल पर यह युद्ध नहीं जीता जा सकता। संजय कहते हैं कि आशीर्वाद पूजा का प्रसाद नहीं है महाराज जो हाथ फैलाए उसे दे दिया जाए। उन्होंने सच कहा है। धृतराष्ट्र कहते हैं कि मैं देख रहा हूं कि तुम्हारा सुर भी उन्हीं के साथ मिलता जा रहा है। धृतराष्ट्र गुस्से में कह रहे हैं कि मेरे पुत्र दुर्योधन को किसी ने विजय होने का आशीर्वाद नहीं दिया। मैं जानता हूं वह अकेला इस युद्ध में लड़ रहा है। संजय कहते हैं कि महाराज यह युद्ध का दसवां दिन है। इतिहास क्या कहता है आप यह बात अच्छी तरह जानते हैं महाराज धृतराष्ट्र। मैं सच कह नहीं पाऊंगा और आप सच जानते हैं।
गुरुद्रोण का पुत्र अश्वत्थामा अपने पिता के पास जाता है और उनसे सवाल करता है। पिता जी आप युद्ध किस की तरफ से कर रहे हैं। क्योंकि ये सवाल बार बार दुर्योधन मेरे सामने रखता है कि पितामह और गुरुद्रोण कौरवों की तरफ होने के बाद भी युद्ध पांडवों की ओर से कर रहे हैं। इसके बाद अश्वत्थामा से गुरुद्रोण ने कहा मेरी और भीष्म के अंदर की पीढ़ा तुम नहीं समझ सकते पुत्र। इस लिए मेरे आर्शीवाद से नहीं युद्ध अपनी क्षमता से लड़ो और जीतो।
शिखंडी युद्ध में जाने के लिए तैयार हो रहे हैं। उनके पास अर्जुन आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। अंबा के रूप में शिखंडी भीष्म पितामह से अपने अपमान का बदला लेने के लिए युद्ध के मैदान में जाने के लिए तैयार हैं। अर्जुन कहते हैं कि शिखंडी मुझे आपसे कुछ चाहिए। आज के युद्ध में मुझे आपका साथ चाहिए। मैं आपकी सहायता के बिना पितामह से युद्ध जीत नहीं सकता। आप मेरे रथ पर चलना स्वीकार करेंगे महाराज। शिखंडी अर्जुन के साथ पितामह से युद्ध करने के लिए तैयार हो जाते हैं। वह कहते हैं कि तुम नहीं जानते मैं पितामह से युद्ध करने के लिए कितना व्याकुल हूं।