Mahabharat 2nd May Episode online Updates: अर्जुन, भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य को देखकर कमजोर पड़ जाते हैं। अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहते हैं कि वो अपने ही परिवार के लोगों से युद्ध नहीं कर पाएंगे। वह युद्ध के मैदान में अपने लोगों का वध नहीं कर सकते। अर्जुन कहते हैं कि इन पर हमला करने से अच्छा है कि मैं इन हाथों से भिक्षा मांगू। युद्ध भूमि में अपने परिजनों को देख अर्जुन बहुत ज्यादा व्याकुल हो जाते हैं। अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहते हैं कि उनके लिए अब युद्ध करना संभव नही है। अर्जुन कृष्ण से विनती करते हैं कि ऐसे स्थिति में वो ही कोई मार्ग दिखाएं।
वासुदेव अर्जुन को समझाते हैं और कहते हैं कि वर्तमान जीवन, संपूर्ण जीवन नहीं हैं। जो सुख और दुख को एक समान समझे वो ही मोक्ष का अधिकारी है। मारने और मरने की चिंता से हट जाओ। जन्म तो जीव का होता है आत्मा का नहीं और अगर आत्मा का जन्म नहीं होता तो उसका अंत कैसे हो सकता है। तो मारने और मरने का प्रशन व्यर्थ है। वहीं महाभारत के युद्ध से एक रात पहले सभी योद्धा पितामह भीष्म के शिविर में एकत्रित हुए। इस दौरान गंगा पुत्र ने युद्ध के नियमों को दोनों तरफ के योद्धाओं को बताया। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण कर्ण के पास गए और उन्होंने कहा मुझे गंगा पुत्र की रणनीति समझ नहीं आई उन्होंने तुम्हें युद्ध करने को मना क्यों किया।
भीष्म को तो इच्छा मृत्यु का वरदान है इसका मतलब जब तक वो जीवित हैं तब तक तुम युद्ध नहीं करोगे। वहीं वासुदेव ने कर्ण को सुझाव दिया कि युद्ध देखना ही है तो पांडवों के शिविर में बैठकर देखो। इस पर कर्ण ने कहा नहीं मैंने द्रौपदी का अपमान किया है मैं उसका सामना कभी नहीं कर पाउंगा। उस सती जैेसी पावन नारी का अपामन करके मैं अपने आपको कभी माफ नहीं कर पाउंगा। वहीं इससे पहले शिखंडी अपने शिविर में बैठे हुए प्रतिशोध की आग में जल रहा होता है। शिखंडी गंगा पुत्र भीष्म को मारने की तैयारी कर रहा है।


वासुदेव अर्जुन को समझाते हैं और कहते हैं कि वर्तमान जीवन, संपूर्ण जीवन नहीं हैं। जो सुख और दुख को एक समान समझे वो ही मोक्ष का अधिकारी है। मारने और मरने की चिंता से हट जाओ। जन्म तो जीव का होता है आत्मा का नहीं और अगर आत्मा का जन्म नहीं होता तो उसका अंत कैसे हो सकता है। तो मारने और मरने का प्रशन व्यर्थ है।
युद्ध भूमि में अपने परिजनों को देख अर्जुन बहुत ज्यादा व्याकुल हो जाता है। अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहता है कि उसके लिए अब युद्ध करना संभव नही है। अर्जुन कृष्ण से विनती करता है कि ऐसे स्थिति में वो ही उसको कोई मार्ग दिखाएं क्योंकि फिलहाल उसे कुछ समझ नही आ रहा है। वासुदेव कृष्ण अर्जुन की टूटते हौंसलो को सहारा प्रदान करते हैं।
अर्जुन, भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य को देखकर कमजोर पड़ रहे हैं। वह श्री कृष्णा से कहते हैं कि वो अपने ही परिवार के लोगों से युद्ध नहीं कर पाएंगे। वह युद्ध के मैदान में अपने लोगों का वध नहीं कर सकते। अर्जुन कहते हैं कि इन पर हमला करने से अच्छा है कि मैं इन हाथों से भिक्षा मांगू।
अर्जुन के रथ को पास आता देख दुर्योधन कहता है कि ये अर्जुन मैदान के बीचों बीच क्यों आ रहा है क्या इसे इस बात से तनिक भी चिंता नही की हमारी सेना में एक से बढ़कर एक महारथी हैं या फिर इसका रथ भटक गया है। वहीं गंगापुत्र भीष्म भी अर्जुन के इस रवैये को समझ नही पाते और बाण निकाल लेते हैं।
अर्जुन के रथ को पास आता देख दुर्योधन कहता है कि ये अर्जुन मैदान के बीचों बीच क्यों आ रहा है क्या इसे इस बात से तनिक भी चिंता नही की हमारी सेना में एक से बढ़कर एक महारथी हैं या फिर इसका रथ भटक गया है। दुर्योधन की बात सुनकर कर्ण कहता है कि जिसके सारथी स्वंय वासुदेव हों उसका रथ कैसे भटक सकता है।
गुरू द्रौण को सामने देखकर अर्जुन व्याकुल हो जाता है और वो कृष्ण से कहता है कि अपने सगे संबधियों को सामने देखकर मुझे थोड़ा अजीब सा लग रहा है। अर्जुन, कृष्ण से कहता है कि मुझे मैदान के बीचों बीच ले जाए जहां से मैं दोनों सेना को देख सकूं। कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि है ये बात तुमने पहले क्यों नही कही।
धृतराष्ट्र संजय से पूछता है कि इस वक्त कुरुक्षेत्र के मैदान में क्या हो रहा है। संजय महाराज को युद्धभूमि में दोनों सेना की गति से अवगत कराता है।
पितामह से मिलने के लिए कृष्ण पांडवों के साथ पहुंचते हैं। इस दौरान सभी भाई भीष्म पितामह से एक-एक करके आशीर्वाद लेते हैं। वह अर्जुन से गले मिलकर रोने लगते हैं। तभी वहां पर शिखंडी पहुंचते हैं। भीष्म उन्हें बैठने के लिए कहते हैं। इसके बाद अर्जुन गुरुद्रोण से आशीर्वाद लेते हैं।
वासुदेव ने कर्ण को सुझाव दिया कि युद्ध देखना ही है तो पांडवों के शिविर में बैठकर देखो। इस पर कर्ण ने कहा नहीं मैंने द्रौपदी का अपमान किया है मैं उसका सामना कभी नहीं कर पाउंगा। उस सती जैेसी पावन नारी का अपामन करके मैं अपने आपको कभी माफ नहीं कर पाउंगा।
भीष्म पितामह ने कौरवों और पांडवों से कहा कि हम लोगों के बीच दुर्भाग्य से रणभूमि के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इसलिए युद्ध के नियम तय कर लीजिए। कृष्ण ने कहा कि आप जो नियम बनाएंगे वहीं पांडव मानेंगे। भीष्म ने कहा यह भार मुझ पर मत डालिए। कृष्ण बोलते हैं कि इस युध्द का नियम आपको ही बनाना होगा। इस दौरान भीष्म युद्ध के कई तरह के नियम बताते हैं।
अब तक आपने देखा कि भीष्म पितामह काफी चिंतित हैं। वह कहते हैं कि मुझे नींद नहीं आ रही है। हस्तिनापुर में जो भी कुछ चल रहा है वह सही नहीं। जब भी आंख लगती है तो पांडवों का बाल-बचपन सामने आकर खड़ा हो जाता है। भीष्म, पुराने समय और पाडवों के बचपन को याद कर खुश भी होते हैं और दुखी भी। अब देखिए जानिए क्या हुआ...
कर्ण और भगवान श्री कृष्ण के बीच वार्ता चल रही है। इस दौरान श्री कृष्ण ने कहा कि पांडवों के शिविर में चलो। अगर पितामह ने युद्ध करने से मना कर ही दिया है तो पांडवों के शिविर में आ कर युद्ध को देख लो। इस दौरान कर्ण ने कहा कि मैं उनके शिविर मे नहीं जा सकता क्योंकि मैंने उस सती का अपमान किया है जो पावन और शुद्ध है। द्यूत सभा में ना जाने मुझे क्या हो गया था जो मैनें द्रौपदी को अपशब्द बोल दिए। उसके लिए अपशब्द बोलने के लिए मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाउंगा।
भगवान श्री कृष्ण युद्ध के नियमों की चर्चा करने के बाद सीधे कर्ण के पास आए हैं। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा कि उन्हें पितामह की रणनीति समझ नहीं आ रही है। उन्होंने तुम्हें युद्ध करने से मना क्यों कर दिया है।
भगवान श्री कृष्ण के कहने से पितामह भीष्म ने दोनों पक्षों के योद्धाओं को युद्ध के नियम समझा दिए हैं। इस दौरान उन्होंने पितामह ने कहा कि पांडवों की सेनापति दृष्टद्यूम भी अपना कुछ सुझाव दे सकते हैं। जिसके बाद पांडवों के सेनापति ने कहा हमें आपके बनाए सभी नियम मान्य हैं। किंतु सुनिश्चित कर लीजिए की आपकी तरफ से लड़ने वाला योद्धा पहले से किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं करेगा।
पितामह भीष्म के शिविर में युद्ध से पहले दोनों पक्षों के योद्धा इकठ्ठे हुए हैं। यहां दोनों ही पक्ष बैठकर युद्ध के नियम बना रहे हैं। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने पितामह से कहा कि आप नियम बनाइए क्योंकि आप सबसे बड़े हैं और आर्दणीय हैं।
महात्मा विदुर पांडवों की मां कुंती से कह रहे हैं कि आप संशय में मत रहिए और पांडवों को जीत का आर्शीवाद दीजिए क्योंकि पांडव ना सिर्फ आपके पुत्र हैं बल्कि धर्म की तरफ से युद्ध कर रहे हैं। इसलिए वो जीत के अधिकारि भी हैं।
गांधारी भगवान शिव के आगे नतमस्तक होकर उनसे प्रार्थना कर रही है कि मुझे अपनी शरण में ले लो भगवान और मेरे पुत्रों और कुंती पुत्रों को ज्ञान मार्ग देने की कृपा करो। जिससे ये युद्ध टल जाए।
भगवान श्री कृष्ण के कहने से अर्जुन ने मां दुर्गा की पूजा की है। जिसके बाद साक्षात मां दुर्गा प्रकट हुई हैं। अर्जुन ने दुर्गा मां से युद्ध में विजय होने का वरदान मांगा है। लेकिन मां दुर्गा ने अर्जुन से कहा कि तुम्हें विजय की कामना करने की जरूरत नहीं क्योंकि जहां वासुदेव श्री कृष्ण हैं वहीं धर्म है और विजय भी।
द्यूत सभा में हुए द्रौपदी के साथ अन्याय के बारे में सोच-सोच कर अर्जुन आग बबूला होते जा रहे हैं। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया है। जिसके बाद अर्जुन शांत हो गए हैं और उनकी आज्ञा मानी है।
जैसे-जैसे महाभारत के युद्ध का समय निकट आ रहा है। वैसे-वैसे पितामह भीष्म को कुरुवंश के सर्वनाश की चिंता सता रही है। वो जानते हैं कि युद्ध धर्म और अधर्म के बीच है और जहां धर्म है वहां वासुदेव श्री कृष्ण स्वयं हैं। धर्म के कार्य में बाधा बनने वाले प्रत्येक रोड़े को वासुदेव रास्ते से हटा देते हैं। लेकनि दुर्योधन के हठ के कारण होने वाले इस युद्ध में पितामह अपनी पराजय मान चुके हैं किंतु अपनी प्रतिज्ञा से बंधे होने की वजह से वो हस्तिनापुर की तरफ से युद्ध करने को तैयार हैं।
गंगापुत्र भीष्म को सर्वनाश की चिंता सता रही है। ऐसे में एक बार फिर वो अपनी मां देवी गंगा के पास जाकर अपने दिल की बात बताते हैं। मां गंगा उनसे कहती हैं कि भीष्म तुम बलवान और बुद्धिमान दोनों हो मुझे पूरा भरोसा है कि तुम धर्म का साथ दोगे।
परशुराम की आज्ञा के चलते गंगापुत्र भीष्म को उनसे युद्ध करना पड़ रहा है। उन दोनों का यु्द्ध देखकर अंबा भी काफी व्याकुल नजर आ रही है। ऐसे में इन महाशक्तियों के टकराव को केवल महादेव ही रोक सकते हैं। वर्ना प्रलय आना निश्चित है। आकाशवाणी होती है जिसके बाद भीष्म अपने शस्त्रों का त्याग करते हैं।
भीष्म से ब्रह्मऋषि बात कर रहे हैं कि तुमने अंबा को स्वीकार क्यों नहीं किया। भीष्म कह रहे हैं कि गुरुदेव अंबा ने बताया कि वह शाल्य को अपना पति मान चुकी थी। मैं तो अब उसे अपने भाई से भी नहीं ब्याह सकता। ऐसे में ब्रह्मऋषि उनके साथ युद्ध करने के लिए कहते हैं। वह कहते हैं कि अगर तुमने अंबा को ग्रहण नहीं किया तो युद्ध होगा। भीष्म, युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।
शिखंडी अपने अनुज को सभी बातें बता रहा है। भीष्म से मिले अपमान के बाद ऋषियों से अंबा प्रार्थना कर रही हैं। अंबा कहती है कि भीष्म के कारण ही राजा शल्व ने उसको त्याग दिया है। वह कह रही हैं कि मेरे पास तपस्या के अलावा कोई मार्ग खुला नहीं रह गया है। ऐसे में ऋषि कहते हैं कि पुत्री तपस्या का मार्ग आसान नहीं बहुत कठिन है। अंबा तपस्या के लिए तैयार हो जाती है। अंबा की बात सुनकर ऋषि उससे परशुराम के पास जाने की सलाह देते हैं।
शाल्व राज भीष्म को रोकने की कोशिश करते हैं। भीष्म उन्हें तीर मारकर चित्त कर देते हैं। अंबा, भीष्म को बताती हैं कि मैं आपके आने से पहले शाल्व को अपना पति मान चुकी थी। लेकिन, भीष्म उनका हरण करके हस्तिनापुर ले आए। ऐसे में गंगा, अंबा को वापस भिजवाने के लिए कहती हैं। सभा में अंबा अपनी बात रखती हैं और कहती हैं कि मैं वापस नहीं जाऊंगी और भीष्म के गले में वरमाला डालूंगी। लेकिन, भीष्म उन्हें कहते हैं कि मैंने ब्रह्माचारी होने की प्रतिज्ञा ली है। मैं वहां सिर्फ हस्तिनापुर का प्रतिनिधित्व करने आया था।