Mahabharat 29th April Episode online Updates: पांडवों के साथ अब हस्तिनापुर का युद्ध अनिवार्य हो गया है। ऐसे में शकुनि ने दुर्योधन से कहा कि गंगा पुत्र भीष्म को इस युद्ध में अपना सेनापति बना लो। जिसके बाद दुर्योधन पितामह के पास युद्ध में सेनापति बनने का प्रस्ताव लेकर गया। पितामह भीष्म ने उसकी कही बात मान ली लेकिन दुर्योधन के आगे कुछ शर्त रख दीं। पितामह भीष्म ने दुर्योधन से कहा मेरी सेना में एक कर्ण नहीं होगा। इसके अलावा उन्होंने दुर्योधन के आगे शर्त रखी की युद्ध में वो पांडु पुत्रों पर वार नहीं करेंगे जिसे सुनकर दुर्योधन क्रोधित हो गया लेकिन शकुनि ने उसे समझा कर शांत कर दिया। इससे पहले भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण को बताया कि वो कुंती का पुुत्र है और पांडवों का ज्येष्ठ भ्राता है जिसे सुनकर कर्ण भावुक हो गया था।
सूर्य पुत्र कर्ण का का एक नाम दानवीर कर्ण भी था। कर्ण को दानवीर यूंही नहीं कहा जाता था। वो अपने दान के लिए तीनों लोकों में व्यख्यात था। भगवान सूर्य की चेतावनी के बाद भी कर्ण ने अपने कवच और कुंडल इंद्र देव को दान कर दिए क्योंकि वो किसी को दान देने से मना नहीं कर सकता था। वो जानता था कि अर्जुन से युद्ध करने के दौरान उसके लिए ये कवच,कुंडल कितने महत्वपूर्ण हैं और कर्ण ये भी जानता था कि देवराज इंद्र उससे कवच कुंडल क्यों मांग रहे हैं। फिर भी उसने अपने कवच कुंडल को निकाल कर ब्राह्मण के वेश में आए देवराज इंद्र को दे दिए। कर्ण के कवच कुंडल अभेद्य हैं उसे किसी भी दिव्य अस्त्र से भेदा नहीं जा सकता है।
वहीं शांतिदूत बनकर भगवान हस्तिनापुर आए थे, पांडवों का संदेशा लाए थे। भरी राज्यसभा में भगवान श्री कृष्ण पांडवों का प्रस्ताव महाराज धृतराष्ट्र के सामने रखेंगे। दुर्योधन को पांडवों का सुझाव सुनाएंगे, युधिष्ठिर की मांग है अगर न्याय पूरा नहीं दे सकते तो आधा दो। यदि इसमें भी कोई बाधा हो तो दे दो केवल 5 गांव रखो अपनी धरती तमाम हम वहीं खुशी से खाएंगे परिजनों पर शस्त्र ना उठाएंगे। भगवान की इस बात को सुनकर दुर्योधन क्रोध में आकर उनको बंदी बनाने का प्रयत्न करता दिखा जिसके बाद भगवान ने हस्तिनापुर की भरी सभा में अपना रौद्र रूप दिखाया। जिसके बाद वहां उपस्थित सभी महाबली योद्धा भगवान श्री कृष्ण के आगे नतमस्तकर होते दिखाई दिे।
पांडवों के शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन के भोजन निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। जिसके बाद दुर्योधन क्रोधित हो गया लेकिन वासुदेव से कुछ नहीं कह पाया। इसके बाद दुर्योधन ने कर्ण और शकुनि से कहा कि शांतिदूत बनकर आए कृष्ण ने अगर कल राजसभा में कुछ उल्टे-सीधे शब्दों का इस्तेमाल किया तो मैं इस ग्वाले को उसी वक्त बंदी बना लूंगा। जिसके बाद शकुनि ने उसे समझाया कि वासुदेव से ऐसे बात मत करो।
Highlights
दुर्योधन ने हस्तिनापुर की तरफ से युद्ध करते वक्त पितामह भीष्म को सेनापति बनाने का प्रस्ताव दिया था। जिसे पितामह ने स्वीकार कर लिया है। किंतु उन्होंने शर्त रखी है कि ना तो उनकी सेना में कर्ण होगा और ना ही वो पांडवों पर शस्त्र उठाएंगे जिसके बाद दुर्योधन क्रोधित हो गया लेकिन उसे शकुनि ने समझा दिया है।
महात्मा विदुर ने पितामह भीष्म से मिलने के बाद उन्हें ये बताया कि वो हस्तिनापुर के महामंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। जिसके बाद पितामह ने विदुर से कहा कि जाओ तुम जा सकते हो। लेकिन मैं अपनी प्रतिज्ञा से बंधा हुआ हूं, कुछ कर नहीं सकता चाह कर भी इस युद्ध से पीछे नहीं हट सकता हूं।
पितामह भीष्म गुरुद्रोण और कृपा चार्य बैठ कर आपस में विचार विमर्श कर रहे हैं। इस दौरान गुरुद्रोण ने कहा कि ये सबसे दुर्भाग्य का समय है जब हम युद्ध करने जा रहे हैं और दोनों तरफ से हमारे ही शिष्यों के ध्वज लहरा रहे होंगे।
भगवान श्री कृष्ण ने हस्तिनापुर में जा कर जिस तरह अपना रौद्र रूप दिखाया है। तब से ही शकुनि व्चाकुल हो गया है। उसने दुर्योधन से कहा कि श्री कृष्ण के चमत्कार के आगे हस्तिनापुर कैसे टिकेगा ये देखना बहुत जरूरी है।
भगवान श्री कृष्ण ने जबसे ये बताया है कि कर्ण कुंति पुत्र है तबसे ही कर्ण व्याकुल हो गया है और विधाता से अपने साथ किए खिलवाड़ को लेकर दुखी हो रहा है। जिसके बाद कर्ण अपने मित्र दुर्योधन के पास गया और उससे कहा चाहे जो कुछ भी हो जाए मैं तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगा।
कर्ण और श्री कृष्ण के बीच वार्ता जब लंबी हुई, तो भगवान ने उसे बता दिया की वो ज्येष्ठ कुंती पुत्र है। जिसके बाद कर्ण ने कहा कि आपने ऐसा करके युद्ध से पहले ही अर्जुन के प्राण बचा लिए हैं। अब मैं कभी भी अर्जुन पर प्राण घाती बाण नहीं चला सकका हूं। लेकिन मैं अपने कर्तव्य से बंधा हुआ हूं और ये जानते हुए भी की जहां आप हैं वहां युद्ध कोई और जीत ही नहीं सकता फिर भी दुर्योधन की तरफ से युद्ध करूंगा।
भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा कि आप ज्येष्ठ पांडु पुत्र हैं। आप इंद्रप्रस्थ के राजा बनेंगे। सारा संसार आपके यश का गुणगान करेगा। भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण से वापस चलने की बात कही। लेकिन कर्ण ने कहा मैं दुर्योधन का ऋणी हूं। इसलिए मैं दुर्योधन की मित्रता को छोड़कर कभी नहीं जा सकता।
कर्ण और भगवान श्री कृष्ण के बीच वार्ता चल रही है। इस दौरान भगवान ने कर्ण को बताया कि वो पांडवों का ज्येष्ठ भ्राता है और कुंती उनकी माता हैं और सूर्यदेव उनके पिता हैं। जिसके बाद कर्ण भावुक हो गया और आंखों में आंसू लेकर रोने लगा
श्री कृष्ण से कर्ण ने दुर्योधन के दुर्व्यहवाहर के लिए क्षमा मांगी है। जिसके बाद भगवान कृष्ण अंगराज कर्ण को अकेले में अपने साथ ले गए हैं और उसे धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने की सीख दे रहे हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने हस्तिनापुर जाकर दुर्योधन को समझाने का प्रयत्न किया। किंतु दुर्योधन नहीं माना जिसके बाद पांडवों और कौरवों के बीच होने वाले महासंग्राम का जिम्मेदार श्री कृष्ण ने सिर्फ और सिर्फ धृतराष्ट्र ठहराया है।
दानवीर कर्ण ने ब्राह्मण के वेश में आए देवराज इंद्र ने उससे कवच कुंडल दान में मांग लिए हैं। जिसके बाद कर्ण ने जानते हुए भी दान दे दिया।
हरि ने भीषण हुंकार किया अपना रूप विस्तार किया, हस्तिनापुर की सभा में डगमग डगमग दिग्गज डोले भगवान कुपित होकर बोले। जंजीर बढ़ा कर साध मुझे अपनी सैनिकों से कहो दुर्योधन की बांधे मुझे
भगवान श्री कृष्ण को बंदी बनाने जैसी बड़ी मूर्खता करने वाले दुर्योधन वा हस्तिनापुर की सभा दिग्गज को भगवान ने अपना विराट स्वरूप दिखाया जिसके बाद वहां बैठे सभी दिग्गज थर थर कांप उठे हैं।
भगवान के शांति प्रस्ताव को ठुकराने के बाद दुर्योधन ने एक और मूर्खता की है। उसने अपने सैनिकों को स्वयं भगवान नारायण को बंदी बनाने का आदेश दिया है।
भगवान श्रीकृष्ण शांतिदूत बनकर आए हैं। इस दौरान भगवान ने पांच गांव मांगे हैं। जिससे दुर्येधन क्रोधित हो गया है और उसने भगवान को बंदी बनाने के लिए सैनिक बुलवा लिए हैं।
दानवीर कर्ण ने ब्राह्मण के वेश में आए देवराज इंद्र ने उससे कवच कुंडल दान में मांग लिए हैं। जिसके बाद कर्ण ने जानते हुए भी दान दे दिया।
भगवान श्री कृष्ण को बंदी बनाने जैसी बड़ी मूर्खता करने वाले दुर्योधन वा हस्तिनापुर की सभा दिग्गज को भगवान ने अपना विराट स्वरूप दिखाया जिसके बाद वहां बैठे सभी दिग्गज थर थर कांप उठे हैं।
भगवान के शांति प्रस्ताव को ठुकराने के बाद दुर्योधन ने एक और मूर्खता की है। उसने अपने सैनिकों को स्वयं भगवान नारायण को बंदी बनाने का आदेश दिया है।
भगवान श्रीकृष्ण शांतिदूत बनकर आए हैं। इस दौरान भगवान ने पांच गांव मांगे हैं। जिससे दुर्येधन क्रोधित हो गया है और उसने भगवान को बंदी बनाने के लिए सैनिक बुलवा लिए हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने धृतराष्ट्र से कहा कि अगर युद्ध हुआ तो सर्वनाश होगा और इसके लिए इतिहास हमेशा उनको दोषी ठहराएगा। भगवान हस्तिनापुर के राजा से हाथ जोड़ कर विनती कर रहे हैं कि ये युद्ध रोक लीजिए वरना भीषण विध्वंस होगा।
भगवान श्री कृष्ण पांडवों का शांति संदेश लेकर हस्तिनापुर की राज्यसभा में पहुंचे हैं। इस वक्त वो हस्तिनापुर नरेश धृतराष्च्र को शांति बनाए रखने का ज्ञान दे रहे हैं।
भगवान ने दुर्योधन के महल में नहीं रुकने का फैसला किया था। जिसके बाद भगवान ने उनके घर भोजन करके अपने आपको तृप्त मेहसूस किया। इस दौरान विदुर ने कहा कि आपने ये गलत किया मेरे घर रुकने से दुर्योधन क्रोधित हो गया होगा।
शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे भगवान श्री कृष्ण को लेकर दुर्योधन ने शकुनि को चेतावनी दी की अगर कल श्री कृष्ण ने कुछ उल्टा सीधा बोला तो मैं इसे बंदी बना लूंगा।
हस्तिनापुर में शांतिदूत बनकर पहुंचे भगवान श्री कृष्ण की चापलूसी करते दिख रहा है। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने शकुनि को उनकी ही तरह जवाब दिए हैं जिसके बाद शकुनि चारों खानें चित हो गए।
भगवान श्री कृष्ण हस्तिनापुर पहुंच गए हैं। इस दौरान वो पांडवों के शांति दूत बनकर पहुंचे है। लेकिन उन्होंने हस्तिनापुर के राजमहल में रुकना अस्वीकार किया और महात्मा विदुर के घर जाकर विश्राम करने और खाना खाने का विचार किया है। वहीं कुंति भगवान श्री कृष्ण से मिलकर उनकी बुआ कुंती फूट-फूट कर रो रही हैं। जिसके बाद भगवान ने कुंती को समझाया है।