Mahabharat 27th April Episode online Updates: युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर में अपना राजदूत भेजा था। जिसने धृतराष्ट्र के सामने पांडवों का संदेशा दिया। जिसमें युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र से इंद्रप्रस्थ लौटा देने का आग्रह किया था। किंतु अहंकारी दुर्योधन ने राजदूत की बात बीच में ही रोकते हुए उसका अपमान किया। जिसके बाद पितामह ने आक्रोश में आकर दुर्योधन को शांतिदूत से कैसे बात करते हैं इसका ज्ञान पाठ पढ़ाया। जिसके बाद जब राजदूत ने धृतराष्ट्र से इन्द्रप्रस्थ लौटाने को कहा तो हस्तिनापुर के राजा ने जवाब दिया कि मुझे इस बारे में सोचने का समय चाहिए। इसके बाद उसने अपने सारथी संजय को पांडवों के पास भेज और कहलवाया कि पांडवों से कहो जहां है वहीं रहें। इसी में सभी की भलाई है। जिसके बाद संजय द्वारा इस प्रस्ताव को धर्मराज युधिष्ठिर ने खुद उनकी इस बात को मानने से मना कर दिया।
अभिमन्यु और उत्तरा की शादी के उपरान्त राजा द्रुपद ने हस्तिनापुर पर आक्रमण की सलाह दी। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने इस परामर्श को ठुकरा दिया और पहले हस्तिनापुर के सामने शांति प्रस्ताव रखने की बात कही, जिसके बाद तमाम सलाह मश्वरा होने के बाद युधिष्ठिर ने राजा द्रुपद के राज पुरोहित को हस्तिनापुर अपना दूत बना कर भेजता है। जैसे ही दुर्योधन को इस बात का पता चलता है कि युधिष्ठिर का दूत हस्तिनापुर में आया है, उसका खून खौल उठता है। जिसके बाद शकुनि उसे क्रोध ना करने को कहता है और उसे समझाता है कि पहले उसकी बात सुनो और पांडवों की रणनीति समझो। इसके बाद शकुनि कहता है कि अगर पांडवों का साथ वासुदेव छोड़ दें तो मैं उन्हें हमेशा के लिए अज्ञात वास में भेज दूं। लेकिन कृष्ण बहुत शातिर है और जब तक वो पांडवों के साथ है तब तक उनका कुछ बिगाड़ पाना मुश्किल है।
वहीं इससे पहले पांडवों का एक वर्ष का अज्ञात वास पूरा हो गया था और इंद्रप्रस्थ लौटने से पूर्व उन्होंने मत्स्य देश के राजा से विदा लेने का मन बनाया। जिसके बाद वो अपने अज्ञात वास के वेश को त्याग कर अपने असल रूप में आ गए। जिसे देख मत्स्य देश का राजा थर-थर कांपने लगा और उसने युधिष्ठिर से कहा महाराज मुझे क्षमा कर दीजिए मैंने आपको कंक समझ कर और आपके भाइयों को अन्य सेवक समझ कर ना जाने क्या क्या कहा शब्द कहें जिसके लिए मैं आपसे क्षमा मांगना चाहता हूं। जिसके बाद धर्मराज युधिष्ठिर मत्स्य देश के राजा को ना सिर्फ माफ करते हैं, बल्कि अर्जुन उनकी पुत्री उत्तरा से अपने पुत्र अभिमन्यु का विवाह भी निश्चित कर देते हैं।
वहीं इससे पहले हस्तिनापुर की सेना देख कर मत्स्य देश के युवराज उत्तर की हालत खराब हो गई थी। जिसके बाद अर्जुन ने अकेले ही हस्तिनापुर के दिग्गजों से युद्ध करने का फैसला लिया। और उन्हें एक-एक कर के धूल चटा दी। गांडीवधारी अर्जुन मे कर्ण जैसे योद्धाओं को रणभूमि छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया। मत्स्य के युवराज उत्तर के सारथी बनकर गए अर्जुन के धनुष की टंकार पहचान कर दुर्योधन पांडवों को उनके 12 वर्ष के पुन: वनवास की बात पितामह से रखता है। जिसके बाद पितामह ने कहते हैं कि पांडवों के अज्ञात वास का समय पूर्ण हो चुका है। वहीं अर्जुन को युद्ध में देख कुलगुरु कृपा चार्य कहते हैं कि अर्जुन को रोक पाना हम में से किसी एक के बस की बात नही हैं।
धृतराष्ट्र ने संजय को भेज कर युधिष्ठिर को ये सूचना दी की, पांडवों से जाकर कहो, जहां हैं वहीं खुश रहें। संजय की इस बात को सुनकर सभी पांडवों का खून खौल उठा है। जिसके बाद खुद युधिष्ठर ने भी संजय से कहा कि पिता श्री से कहो कि हम इंद्रप्रस्थ में शांति पूर्वक रह लेंगे। अगर वो इंद्रप्रस्त नहीं देना चाहते तो युद्ध के लिए तैयार रहें।
धृतराष्ट्र ने अपने सारथी संजय को युधिष्ठिर के पास अपना निर्णय लेकर भेजा है। इस दौरान संजय ने युधिष्ठिर को बताया कि महाराज धृतराष्ट्र ने संदेशा भेजा है, कि पांडव जहां है वहीं रहें इसी में सभी की भलाई है। जिसके बाद बाकी पांडव खौल उठे हैं।
इंद्रप्रस्थ वापस मांगने के लिए युधिष्ठिर ने शांति दूत हस्तिनापुर भेजा था। लेकिन दुर्योधन ने उसे लज्जित कर दिया। जिसके बाद धृतराष्ट्र ने अपने सारथी से कहा कि तुम पांडवों के पास मेरा ये संदेशा लेकर जाओ कि वो जहां हैं वहीं रहें। वापस इंद्रप्रस्थ मांगने की चेष्ठा ना करें। क्योंकि हठी दुर्योधन राज्य देने की बात कभी नहीं मानेगा।
दुर्योधन ने युधिष्ठिर के शांति दूत का अपमान किया था। जिसके बाद पितामह भीष्म ने दुर्योधन को ज्ञान देकर समझाया कि अपनों से बड़ों की इज्जत करना सीखो। जिसके बाद दुर्योधन खामोश होकर बैठ गया। लेकिन इंद्रप्रस्थ लौटाने के सवाल पर अभी भी ना ही धृतराष्ट्र ने और ना ही दुर्योधन ने कोई भी जवाब दिया।
हस्तिनापुर पहुंचे युधिष्ठिर के शांति दूत का संदेशा सुनकर अहंकारी दुर्योधन सभा में ही उस पर चीख पड़ा। शांति दूत ने धृतराष्ट्र से कहा कि युधिष्ठिर ने अपना इंद्रप्रस्थ का राज मुकुट वापस मांगा है। जिसके बाद धृतराष्ट्र ने कहा कि मुझे इंद्रप्रस्थ लौटाने के लिए सोचने का समय मांगा है।
हस्तिनापुर की राज्यसभा में पांडवों का संदेशा लेकर राजा द्रुपद के राज पुरोहित पहुंचे हैं। इस दौरान उन्होंने युधिष्ठिर का संदेशा सुनाया है।
धृतराष्ट्र और गांधारी आपस में बात कर रहे हैं। इस दौरान गांधारी ने धृतराष्ट्र से कहा कि हमारा पुत्र दुर्योधन जो कर रहा है वो गलत है। ये राज सिंहासन युधिष्ठिर का है क्योंकि वो दुर्योधन से बड़ा है और दुर्योधन, जो कर रहा है हस्तिनापुर में जो होने वाला है वो बहुत गलत है।
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धृतराष्ट्र और गांधारी आपस में बात कर रहे हैं। इस दौरान गांधारी ने धृतराष्ट्र से कहा कि हमारा पुत्र दुर्योधन जो कर रहा है वो गलत है। ये राज सिंहासन युधिष्ठिर का है क्योंकि वो दुर्योधन से बड़ा है और दुर्योधन, जो कर रहा है हस्तिनापुर में जो होने वाला है वो बहुत गलत है।
धृतराष्ट्र और गांधारी आपस में बात कर रहे हैं। इस दौरान गांधारी ने धृतराष्ट्र से कहा कि हमारा पुत्र दुर्योधन जो कर रहा है वो गलत है। ये राज सिंहासन युधिष्ठिर का है क्योंकि वो दुर्योधन से बड़ा है और दुर्योधन, जो कर रहा है हस्तिनापुर में जो होने वाला है वो बहुत गलत है।
धृतराष्ट्र और गांधारी आपस में बात कर रहे हैं। इस दौरान गांधारी ने धृतराष्ट्र से कहा कि हमारा पुत्र दुर्योधन जो कर रहा है वो गलत है। ये राज सिंहासन युधिष्ठिर का है क्योंकि वो दुर्योधन से बड़ा है और दुर्योधन, जो कर रहा है हस्तिनापुर में जो होने वाला है वो बहुत गलत है।
धृतराष्ट्र और गांधारी आपस में बात कर रहे हैं। इस दौरान गांधारी ने धृतराष्ट्र से कहा कि हमारा पुत्र दुर्योधन जो कर रहा है वो गलत है। ये राज सिंहासन युधिष्ठिर का है क्योंकि वो दुर्योधन से बड़ा है और दुर्योधन, जो कर रहा है हस्तिनापुर में जो होने वाला है वो बहुत गलत है।
धृतराष्ट्र और गांधारी आपस में बात कर रहे हैं। इस दौरान गांधारी ने धृतराष्ट्र से कहा कि हमारा पुत्र दुर्योधन जो कर रहा है वो गलत है। ये राज सिंहासन युधिष्ठिर का है क्योंकि वो दुर्योधन से बड़ा है और दुर्योधन, जो कर रहा है हस्तिनापुर में जो होने वाला है वो बहुत गलत है।
धृतराष्ट्र और गांधारी आपस में बात कर रहे हैं। इस दौरान गांधारी ने धृतराष्ट्र से कहा कि हमारा पुत्र दुर्योधन जो कर रहा है वो गलत है। ये राज सिंहासन युधिष्ठिर का है क्योंकि वो दुर्योधन से बड़ा है और दुर्योधन, जो कर रहा है हस्तिनापुर में जो होने वाला है वो बहुत गलत है।
भगवान के कहे अनुसार युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर अपना अपना दूत भेजा है। जिसके बाद पितामह भीष्म काफी व्याकुल नजर आ रहे हैं। उन्होंने महात्मा विदुर को बताया कि मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं शवों के खेत में अकेले खड़ा हूं। मुझे हस्तिनापुर की बहुत चिंता हो रही है।
महात्मा विधुर ने एक बार फिर धृतराष्ट्र को समझाने का प्रयास किया है कि, युधिष्ठिर के दूत द्वारा अपनी मांगे रखने से पहले ही पांडवों को उनका राजपाठ लौटा दीजिए। यही हस्तिनापुर के हित में होगा। जिसके बाद धृतराष्ट्र ने कहा कि यदि युधिष्ठिर खुद आया होता तो मैं उसे इंद्रप्रस्थ दे भी देता। लेकिन उसने दूत भेजा है तो कैसे दे दूं।
भगवान श्री कृष्ण के परामर्श पर युधिष्ठिर ने राजा द्रुपद के राज पुरोहित को दूत बनाकर हस्तिनापुर भेजा है। जिसकी खबर सुनकर दुर्योधन का खून खौल उठा है। इसके बाद शकुनि ने दुर्योधन से कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है पहले उनकी रणनीति दो देख लो क्या है। इसके अलावा शकुनि ने कहा कि मैं पांडवों को हमेशा के लिए अज्ञात वास में भेज सकता हूं लेकिन इस सबके बीच सिर्फ एक ही आदमी खड़ा है वो है वासुदेव श्री कृष्ण, जब तक वो पांडवों के साथ है तब तक उनका कुछ बिगाड़ पाना मुश्किल ही है।
युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर में अपना दूत भेजा है। इस सूचना को सुनने के उपरांत दुर्योधन का खून खौल उठा है। लेकिन शकुनि ने दुर्योधन को समझाया कि कोई परेशानी की बात नहीं है क्योंकि महाराज तुम्हारी बात कभी नहीं टालेंगे।
सम्राट युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के परामर्श के बाद अपना दूत हस्तिनापुर भेजा है। इस बात को सुनकर पितामह भीष्म ने कहा कि मैं जो नहीं चाहता था वो ही हुआ। अब युद्ध होगा ही अनिवार्य है।
महाराज द्रुपद हस्तिनापुर पर आक्रमण करने के लिए उतावला है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने द्रुपद से कहा कि क्रोध से नहीं पहले शांति प्रस्ताव हस्तिनापुर के सामने रखा जाएगा। अगर वो नहीं मानते हैं तो ही युद्ध का आहवान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि किसी ऐसे व्यक्ति को शांति प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाना चाहिए जो कि मधुर भाषा में वहां के राजा धृतराष्ट्र को समझा सके।
महाराज द्रुपद हस्तिनापुर पर आक्रमण करने के लिए उतावला है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने द्रुपद से कहा कि क्रोध से नहीं पहले शांति प्रस्ताव हस्तिनापुर के सामने रखा जाएगा। अगर वो नहीं मानते हैं तो ही युद्ध का आहवान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि किसी ऐसे व्यक्ति को शांति प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाना चाहिए जो कि मधुर भाषा में वहां के राजा धृतराष्ट्र को समझा सके।
भगवान श्री कृष्ण के परामर्श पर युधिष्ठिर ने राजा द्रुपद के राज पुरोहित को दूत बनाकर हस्तिनापुर भेजा है। जिसकी खबर सुनकर दुर्योधन का खून खौल उठा है। इसके बाद शकुनि ने दुर्योधन से कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है पहले उनकी रणनीति दो देख लो क्या है। इसके अलावा शकुनि ने कहा कि मैं पांडवों को हमेशा के लिए अज्ञात वास में भेज सकता हूं लेकिन इस सबके बीच सिर्फ एक ही आदमी खड़ा है वो है वासुदेव श्री कृष्ण, जब तक वो पांडवों के साथ है तब तक उनका कुछ बिगाड़ पाना मुश्किल ही है।
युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर में अपना दूत भेजा है। इस सूचना को सुनने के उपरांत दुर्योधन का खून खौल उठा है। लेकिन शकुनि ने दुर्योधन को समझाया कि कोई परेशानी की बात नहीं है क्योंकि महाराज तुम्हारी बात कभी नहीं टालेंगे।
सम्राट युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के परामर्श के बाद अपना दूत हस्तिनापुर भेजा है। इस बात को सुनकर पितामह भीष्म ने कहा कि मैं जो नहीं चाहता था वो ही हुआ। अब युद्ध होगा ही अनिवार्य है।
पितामह भीष्म ने गुरुद्रोण से कहा कि धृतराष्ट्र को समझाओ की वो पांडवों का इंद्रप्रस्थ लौटा दे। जिसके बाद आचार्य द्रोण ने कहा कि मैं हस्तिनापुर के ध्वज से बंधा हुआ है। इसके बाद पितामह भीष्म ने कहा कि अगर युद्ध हुआ तो जीते कोई भी लेकिन घाव हमारे ही लगेंगे।
महाराज द्रुपद हस्तिनापुर पर आक्रमण करने के लिए उतावला है। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने द्रुपद से कहा कि क्रोध से नहीं पहले शांति प्रस्ताव हस्तिनापुर के सामने रखा जाएगा। अगर वो नहीं मानते हैं तो ही युद्ध का आहवान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि किसी ऐसे व्यक्ति को शांति प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाना चाहिए जो कि मधुर भाषा में वहां के राजा धृतराष्ट्र को समझा सके।
गांडीवधारी अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु का विवाह मत्स्य देश की राजकुमारी उत्तरा से संपन्न हुआ है। इस विवाह समारोह में भगवान श्री कृष्ण के साथ बलराम जी भी पहुंचे। पांचों पांडवों के अलवाा उनके सभी पुत्र भी उपस्थित रहे।
भगवान कृष्ण ने 13 साल बाद द्रौपदी को उनके सभी पुत्रों से मिलवाया है। अपने पुत्रों को देख पांचाली फूली नहीं समा रही हैं। इस दौरान अभिमन्यु के अलावा सभी पांडव पुत्र मौजूद हैं।
द्रुपद को ने अपने पुत्र शिखंडी को बताया कि अर्जुन ने अपने पुत्र के विवाह का आमंत्रण दिया है। हमें वहां अपनी पूरी सेना के साथ जाना चाहिए क्योंकि हो सकता है विवाह के उपरांत हस्तिनापुर पर हमला करना पड़ जाए। जिसके बाद शिखंडी ने कहा युद्ध के लिए मैं भी व्याकुल हूं हस्तिनापुर से मैंने एक जन्म बिता दिया है पितामह के वध के लिए
मत्स्य देश की राजकुमारी उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के साथ निश्चित हो गया है। इनके विवाह का निमंत्रण युधिष्ठिर ने पूरे भारतवर्ष के राजाओं के साथ हस्तिनापुर में भी भेजा है। जिसको लेकर पितामह भीष्म वहां होने वाली दुर्योधन की पांडवों से भेंट को लेकर काफी चिंतित हैं।
पितामह भीष्म से मिलने आए हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र को बताया कि उनके दिल में बहुत अधिक पीड़ा है। इतिहास हम लोगों को कभी माफ नहीं करेगा। इतिहास हम लोगों को कभी माफ नहीं करेगा।
अपने अज्ञात वास का एक साल पूरा करने के बाद पांडव अपने असली रूप में आ गए हैं। जिसके बाद मत्स्य देश का राजा उन्हें देख कर डर गया। उसने कहा कि मैंने जाने अनजाने में आप सभी का बहुत अपमान किया है जिसके लिए मुझे माफ कर दीजिए और इस मत्स्य देश पर अपनी कृपा बनाए रखिए।
स्त्री वेष में मत्स्य देश में अपना आखिरी दिन बिता रहे अर्जुन ने ज्ञान दिया है। उन्होंने कहा कि मेरे बड़े भाई युधिष्ठिर धर्मराज हैं। उन्होंने ये भी समझाया कि किसी की पराजय पर उसकी हंसी ना उड़ाओ। सबको एक समान समझो।