Mahabharat 21st April Episode Updates: 12 वर्ष के वनवास तथा एक वर्ष के अज्ञात वास पर पांडव निकल गए हैं। जिसके बाद पितामाह का संदेश लेकर विदुर उन्हें वापस लेने गए लेकिन धर्मराज युधिष्ठिर ने पूरा वनवास और अज्ञात वास काट कर ही वापस आने की बात कही है। जिसके बाद विदुर वापस हस्तिनापुर लौट गए हैं
पिता धृतराष्ट्र को अपने मोह में फंसा कर पांडवों को फिर चौसर उनकी इच्छा के विरुद्ध खिलवाया। लेकिन इस बार उसने शर्त रखी थी अगर वो हारा तो 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का आज्ञात वास वो काटेगा, यदि पांडव हारे तो उनको भी यही मिलना चाहिए। अपने ज्येष्ठ पिता की आज्ञा मानते हुए युधिष्ठिर ने एक बार फिर चौसर खेलना स्वीकार किया और इस बार फिर हार गया। जिसके बाद पांडवों के हिस्से में 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञात वास आया है।
वहीं इससे पहले भरी सभा में अपने बड़ों के सामने खुद के साथ हुए वस्त्रहरण जैसे घिनौने कृत्य से लज्जित हुई, द्रौपदी ने अपने साथ ऐसा बर्ताव करने वाले दुशासन के लिए ये प्रण लिया कि जब तक वो दुशासन के रक्त से अपने बालों को नहीं धोयेंगी तब तक उन्हें खुला रखेंगी। वहीं इस घिनौने कृत्य के साथ महाभारत के इतिहास का सबसे अशोभनीय अध्याय सीरियल में दिखाया जा चुका है। जहां नीच दुर्योधन ने अपने मामा शकुनि की मदद से छल कर के युधिष्ठिर को चौसर में हराकर उसका राजपाठ और उसके भाई के साथ उसकी पत्नी द्रौपदी को भी जीत लिया था। जिसके बाद दुर्योधन अपने भाई दुशासन से द्रौपदी के केश पकड़ द्यूत सभा में लाने को कहता है।
जिसके बाद वो पितामाह भीष्म, गुरु द्रोण, कुलगुरु कृपा चार्य के सामने द्यूत सभा में दुशासन को पांचाली के वस्त्र हरण का आदेश देता है। जिसे देख वहां बैठे सभी योद्धा स्तब्ध हो जाते हैं लेकिन कोई कुछ बोल नहीं पाता है। वहीं दुशासन द्रौपदी के वस्त्र हरण करने के लिए आगे बढ़ता है और उसके वस्त्र उतारने का प्रयत्न करता है ऐसे में द्रौपदी वहां बैठे सभी योद्धाओं और अपने पिता समान गंगा पुत्र भीष्म और द्रौणाचार्य से अपनी लाज बचाने की विनती करती है लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आता और अपने कर्तव्य से बंधे होने का हवाला देते हैं। लेकिन जिसका कोई नहीं होता उसका स्वयं ईश्वर होता है।
विदुर को हस्तिनापुर निकालने पर पितामाह भीष्म ने धृतराष्ट्र को जमकर फटकारा है। जिसके बाद धृतराष्ट्र ने संजय को भेज कर विदुर को वापस बुला लिया है इस बात से चिंतित दुर्योधन मायुस हो गया है। लेकिन शकुनि ने उसे समझा दिया है।
महात्मा विदुर को हस्तिनापुर से निकाले जाने के बाद पितामाह भीष्म धृतराष्ट्र पर क्रोधित नजर आए। इसके बाद पितामाह ने कहा कि विदुर को वापस बुला लो धृतराष्ट्र वरना इस कुल का सूरज कभी नहीं उगेगा। इसके बाद विदुर पांडवों से विदा लेकर फिर से हस्तिनापुर चले गए हैं।
वनवास काट रहे पांडवों से उनका दुख दर्द बांटने हस्तिननापुर के महामंत्री विदुर पहुंचे हैं। इस दौरान उन्होंने बताया कि पितामाह भीष्म की हालत तुम लोगों के वनवास आने के बाद से काफी खराब है। वहीं तुम्हारी मां कुंती तुम्हारे वापस आने का एक एक दिन गिन रही हैं। इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि धृतराष्ट्र ने उन्हें हस्तिनापुर से निकाल दिया है।
द्रौपदी के भाई दृष्टदूम वनवास काट रहे पांडवों के पास अपनी सेना के साथ पहुंचे हैं और उन्होंने बताया कि पांचाली के और मेरे पिता द्रुपद ने मुझे हस्तिनापुर पर आक्रमण करने का फैसला किया है। जिसके बाद द्रौपदी ने अपने भाई को समझा कर युद्ध ना करने के लिए कहा है।
12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष क अज्ञात वास झेल रहे पांडवों में भीम, नकुल अर्जुन, सहदेव और अर्जुन, हस्तिनापुर से बदला लेने की तैयारी कर रहे हैं। इस दौरान युधिष्ठिर ने उन्हें समझा कर रोका है।
12 वर्ष के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञात वास पर निकले पांडव पुत्रों को वापस बुलाने का परामर्श लेकर विदुर धृतराष्ट्र के पास पहुंचे थे। लेकिन धृतराष्ट्र ने क्रोध दिखाते हुए विदुर को अपने मंत्रीमंडल से भी निकाल दिया और उनका परामर्श भी ठुकरा दिया है।
पितामाह भीष्म ने रोते हुए विदुर से कहा कि होने वाले हस्तिनापुर के संघार के बारे में सोचकर धृतराष्ट्र से कहो कि पांडवों को वापस बुला ले। जिससे होने वाला विध्वंस रोका जा सके।
द्यूत सभा में पांडव हारकर 12 वर्ष के वनवास तथा एक वर्ष के अज्ञात वास के लिए वन वन भटकने चले गए हैं। जिसरे बाद गंगा पुत्र भीम का दिल टूट गया है और वो महात्मा विदुर से कह रहे हैं, कि द्यूत सभा में पांडव नहीं हारे बल्कि मैं हारा हूं। इसके अलावा उन्होंने विदुर से कहा कि आगे होने वाले हस्तिनापुर में विध्वंस से इसे बचा लो।
कुंती पांडवों और द्रौपदी के साथ 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञात वास के लिए जा रही थीं। तभी विदुर ने पांडवों से कहा कि उनका ये वृद्ध शरीर वनवास नहीं झेल सकता है। इसलिए इन्हें मेरे पास छोड़कर चले जाओ। जिसके बाद युधिष्ठिर ने मां को विदुर काका के पास छोड़कर वनवास जाने का फैसला लिया।
12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञात वास मिलने के बाद पांडव, अपनी मां कुंती के साथ पितामाह भीष्म और धृतराष्ट्र से अंतिम विदा लेने आई हैं। जिसके बाद धृतराष्ट्र ने कुंती से कहा कि तुम मत जाओ तुम इस घर की बहु हो। जिसके बाद कुंती ने कहा मैं कैसी बहु हूं। हस्तिनापुर में मेरी बहु के वस्त्र हरण का घिनौना कृत्य हुआ है, अब मैं एक पल भी इस महल में नहीं रह सकती हूं।
अपने ज्येष्ठ पिता की आज्ञा मानते हुए युधिष्ठिर ने एक बार फिर चौसर खेलना स्वीकार किया और इस बार फिर हार गया। जिसके बाद पांडवों के हिस्से में 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञात वास आया है।
चौसर की आखिरी बार महफिल लगी है। जिसे खेलने की शर्त में धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से कहा कि अगर तुम हारे तो 12वर्ष के वनवास और 1वर्ष के अज्ञात वास मिलेगा। यही अगर दुर्योधन हारा तो उसको भी यही मिलेगा।
चौसर की आखिरी बार महफिल लगी है। जिसे खेलने की शर्त में धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से कहा कि अगर तुम हारे तो 12वर्ष के वनवास और 1वर्ष के अज्ञात वास मिलेगा। यही अगर दुर्योधन हारा तो उसको भी यही मिलेगा।
दुर्योधन ने एक बार फिर अपनी बातों में फंसा कर धृतराष्ट्र को मना लिया है कि वो पांडवों को फिर से चौसर खेलने के लिए बोले, जिसके बाद युधिष्ठिर फिर द्यूत सभा में उसकी आज्ञा का पालन करने पहुंच गया है।A
अपने ज्येष्ठ पिता की आज्ञा मानते हुए युधिष्ठिर ने एक बार फिर चौसर खेलना स्वीकार किया और इस बार फिर हार गया। जिसके बाद पांडवों के हिस्से में 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञात वास आया है।
चौसर का खेल इस बार बराबरी पर चल रहा है। जहां पांडव और कौरवों दोनों बराबर से जीत रहे हैं। जिसे देख धृतराष्ट्र चिंतित नजर आ रहा है।
चौसर की आखिरी बार महफिल लगी है। जिसे खेलने की शर्त में धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से कहा कि अगर तुम हारे तो 12वर्ष के वनवास और 1वर्ष के अज्ञात वास मिलेगा। यही अगर दुर्योधन हारा तो उसको भी यही मिलेगा।
द्यूत क्रीड़ा भवन में एक बार फिर चौसर का खेल शुरू हुआ है। इससे पहले पांचाली ने युधिष्ठिर से वचन लिया है कि वो अब ना ही पांचाली को और ना ही अपने भाईयों को दांव पर लगायेंगे। जिसके बाद युधिष्ठिर ने द्रौपदी की बात ये स्वीकार कर ली है।
दुर्योधन ने एक बार फिर अपनी बातों में फंसा कर धृतराष्ट्र को मना लिया है कि वो पांडवों को फिर से चौसर खेलने के लिए बोले, जिसके बाद युधिष्ठिर फिर द्यूत सभा में उसकी आज्ञा का पालन करने पहुंच गया है।
पांचाली ने अपने केश खुले छोड़कर ये प्रण लिया है कि वो दुशासन के रक्त से अपने बाल धोकर ही उन्हें बांधेगी। इस पर युधिष्ठिर पांचाली को समझाने का प्रयत्न कर रहा है।
दुर्योधन के पुत्र मोह में आकर धृतराष्ट्र ने युद्ध को ना स्वीकार करके एक बार फिर से चौसर का खेल खेलने की अनुमति दे दी है। धृतराष्ट्र के इस फैसले से गंगा पुत्र भीष्म नाराज नजर आ रहे हैं और उन्होंने कुरुवंश के सर्वनाश की आगुआई करने का जिम्मेदार धृतराष्ट्र को बताया है।
दुर्योधन अपने पिता और राजा धृतराष्ट्र पर भड़क रहा है और कह रहा है कि आपने पांडवों से जीता हुआ सबकुछ उनको लौटाकर बहुत गलत किया। जिसके बाद उसने धृतराष्ट्र से कहा कि मुझे इंद्रप्रस्थ चाहिए उसके लिए या तो द्यूत सभा दोबारा कराइये या फिर युद्ध की आज्ञा दीजिए। जिसके बाद विवश धृतराष्ट्र फूट-फूट कर रोया।
दुर्योधन अपने एक और घिनौने कृत्य की मंशा से पितामाह भीष्म और गुरु द्रोण के पास पांडवों से एक बार और द्यूत या फिर युद्ध का निमंत्रण लेकर गया है। जिसके बाद उन्होंने दुर्योधन से इस विषय को लेकर धृतराष्ट्र से पूछने को कहा है।
पितामाह भीष्म से अर्जुन ने गुस्से में कहा कि मैं कौरवों के साथ कर्ण और शकुनि का शव देखने का बाद ही शांत हो सकूंगा। इस पर पितामाह ने कहा कि तब तुम्हे मेरे और गुरु द्रोण के शव से होकर गुजरना पड़ेगा। इसके बाद पितामाह ने कहा जो कुछ भी हुआ उसके जिम्मेदार युधिष्ठिर है.. यदि मुझे युद्ध की धमकी देने आए हो तो इंद्रप्रस्थ में जाकर क्रोध की जगह शांति से सोचो की गलती कहां हुई थी।
अर्जुन इंद्रप्रस्थ लौटने से पहले पितामाह भीष्म से भेंट करने पहुंचा। इस दौरान अर्जुन ने पितामाह भीष्म से कहा कि हमारे अंदर धधकती ज्वाला तब तक शांत नहीं होगी। जब तक हमें दुर्योधन, दुशासन, कर्ण और गांधार नरेश शकुनि के शव नहीं मिल जाते हैं। इस पर पितामाह ने यदि ऐसा होगा तो तुम्हें और भी कई शव उठाने पड़ेंगे पुत्र।
द्रौपदी के साथ भरी सभा में हुए वस्त्र हरण के दृश्य को याद करते हुए गुरु द्रोण और गंगापुत्र भीष्म बात कर रहे हैं। इस दौरान पितामाह ने गुरु द्रोण से कहा कि आज हमने जो अपनी आंखों से देखा है। उसका बदला हमें अपना लहु देकर चुकाना पड़ेगा। भीषण विध्वंस होगा औऱ हम सब उसके साक्षी बनेंगे।
द्यूत सभा में दुर्योधन ने पांचाली को नग्न करने का प्रयास किया। जिसके बाद श्री कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई, जिसके बाद सभा समाप्त होने के बाद विदुर महारानी गांधारी के कक्ष में जाते हैं और उनसे इस घिनौने कृत्य के परिणाम के स्वरूप में होने वाले भयंकर विध्वंस को रोकने का आग्रह किया। जिसके बाद गांधारी उन्हें इसका कोई जवाब ना दे सकीं और सिर्फ रोती हुई नजर आईं।