Mahabharat 19th April Episode Live Updates: महासंघार की कहानी महाभारत में अब तक दिखाया गया कि इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के राज तिलक के बाद सभी राजा अपने-अपने राज्य और स्वयं वासुदेव श्री कृष्ण भी द्वारिका लौट जाते हैं। लेकिन षड्यंत्रकारी शकुनि और दुर्योधन पांडवों के पास रुक जाते हैं। इधर शकुनि युधिष्ठिर से चौंसर खेलने के लिए कहता है जिसके बाद वो जानबूझकर चौंसर में हार जाता है। वहीं जब दुर्योधन इन्द्रप्रस्थ का भ्रमण कर रहा होता है जहां पर हर चीज माया की बनी होती है लेकिन वासत्विक प्रतीत हो रही होती है। दुर्योधन इसी माया के जाल में फंसकर पानी में गिर पड़ता है। दुर्योधन को पानी में गिरा देख द्रौपदी जोर जोर से हंसने लगती हैं और दुर्योधन का मजाक उड़ाते हुए कहती हैं कि अंधे का पुत्र अंधा। जिससे वो क्रोध में आ जाता है और अपने इस अपमान का बदला लेने की ठान लेता है।
सम्राठ युधिष्ठिर ने खेल के दौरान खुद के अलावा अपना सबकुछ गवां दिया है लेकिन इस दौरान सबसे बड़ा झटका तब लगा जब सम्राठ ने दाव पर द्रौपदी को भी लगा दिया। मामा शकुनि ने चाल चलकर उसे भी जीत लिया और उसे दुर्योधन की दासी बना दिया है। द्रौपदी के दासी बनते ही दुर्योधन ने उसे सभा में पेश करने की अनुमति देते हुए कहा कि उस घमंडी स्त्री को यहां मेरे सामने पेश किया जाए। आज से वो मेरी सभी दासियों की तरह ही रहेगी।
सम्राठ युधिष्ठिर ने खेल के दौरान खुद के अलावा अपना सबकुछ गवां दिया है लेकिन इस दौरान सबसे बड़ा झटका तब लगा जब सम्राठ ने दाव पर द्रौपदी को भी लगा दिया। मामा शकुनि ने चाल चलकर उसे भी जीत लिया और उसे दुर्योधन की दासी बना दिया है। द्रौपदी के दासी बनते ही दुर्योधन ने उसे सभा में पेश करने की अनुमति देते हुए कहा कि उस घमंडी स्त्री को यहां मेरे सामने पेश किया जाए। आज से वो मेरी सभी दासियों की तरह ही रहेगी।
युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दाव पर लगाकर उसे भी गवा दिया है। दुर्योधन अपने दासों पांडवों से कह रहा है कि द्रौपदी आज से मेरी दासी हुई।
पांडव दुर्योधन के दास हो गए हैं। वहीं जब युधिष्ठिर, दुर्योधन से कहता है कि अब मैं सबकुछ हार चुका हूं मेरे पास कुछ नही बचा तो कर्ण उससे कहते हैं नही अभी तुम्हारे पास वो घमंडी द्रौपदी बची है अब उसको दाव पर लगाओ।
युधिष्ठिर ने दाव में अपने भाई नकुल सहदेव के अलावा अर्जुन को भी गवा दिया। दुर्योधन ने युधिष्ठिर से पूछा कि भ्राता श्री दाव पर लगाने से पहले कम से कम अपने भाइयों से पूछ तो लो जिसपर युधिष्ठिर कहते हैं कि मुझे अपने भाइयों पर पूरा भरोसा है।
सम्राट युधिष्ठिर दाव में लगभग सबकुछ हार गए हैं। युधिष्ठिर को हारता देख सभी पांडव पसीने-पसीने हो गए हैं। सम्राट ने अपने भाई नकुल को भी दाव पर लगा दिया है। जिसके बाद भीष्म ने धृतराष्ट्र से खेल को वहीं रोक देने की गुहार लगाई।
युधिष्ठिर के हार की सिलसिला रुक नही रहा है वहीं दूसरी और लगातार हार के बावजूद सम्राट एक के बाद एक दाव लगा रहे हैं। भीष्म को इस बात का आभास हो गया है कि आज इस सभा में कुछ न कुछ अनर्थ होकर ही रहेगा।
दुर्योधन ने पहला दाव पांडवों को हरा दिया है। मामा शकुनि ने युधिष्ठिर से कहा कि मुझे लगता है आज आप पासा पाने के लिए तरस जाएंगे। वहीं महामंत्री विदुर को शकुनि पर शक था जिसके चलते उन्होंने दुर्योधन के पासों से खेल शुरू करने के लिए कहा।
खेल प्रारंभ होने से पहले दुर्योधन ने शर्त रखते हुए कहा कि उसकी तरफ से पासे उसके मामा यानि शकुनि फेंकेगे जिसपर अर्जुन को आपत्ति होती है वहीं महामंत्री विदुर भी अर्जुन का पक्ष लेते हुए नजर आते हैं।
शकुनि के बिछाए जाल के अनुसार आखिरकार द्वित सभा सज गई है। भीष्म से लेकर पांडव तक सभा में प्रवेश कर चुके हैं। वहीं भीष्म को आने वाले तूफान का अंदेशा हो गया है।
पांडवों को हस्तिनापुर बुलाने का शकुनि का षड्यंत्र सफल हो गया है। युधिष्ठिर द्वित क्रीड़ा के लिए अपने सभी छोटे भाइयों वा रानी द्रौपदी के साथ हस्तिनापुर पहुंच गए हैं।
महाभारत के संघार का सबसे भयभीत करने वाला अध्याय यानी द्वित क्रीड़ा अब शुरु होने वाली है, जिसके लिए दुर्योघधन शकुनि के साथ और युधिष्ठिर सभी पांडवों के साथ द्वित सभी में पहुंच गया है। इस दौरान पितामाह भीष्म धृतराष्ट्र दुशासन सहित सभी मंत्री मौजूद हैं।
पांडवों को हस्तिनापुर बुलाने का शकुनि का षड्यंत्र सफल हो गया है। युधिष्ठिर द्वित क्रीड़ा के लिए अपने सभी छोटे भाइयों वा रानी द्रौपदी के साथ हस्तिनापुर पहुंच गए हैं।
हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र के आमंत्रण का संदेशा लेकर महात्मा विदुर इंद्रप्रस्थ के राजा युधिष्ठीर के पास गए थे। जिसके बाद उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है। जब ये बात पितामाह भीष्म को पता चली तो वो होने वाले महासंग्राम को सोचकर फूट फूट कर रोय और उन्होंने विदुर से कहा कि द्वित क्रीड़ा कोई भी जीते लेकिन हारेगा सिर्फ हस्तिनापुर
द्वित सभा का आमंत्रण पाकर शकुनि काफी खुश नजर आ रहा है। इस दौरान उसने दुर्योधन से कहा कि अब पांडवों के विनाश का समय नजदीक आ गया है। जुएं में वो मुझसे जीत नहीं पाएंगे।
धृतराष्ट्र ने शकुनि के षड्यंत्रकारी बातों में आकर पांडवों को द्वित सभा का निमंत्रण युधिष्ठिर के पास विदुर द्वारा भेजा है। जिसके बाद विदुर सर्वनाश को भांपते हुए बेमन से हस्तिनापुर के राजदूत बनकर इंद्रप्रस्त पहुंचे हैं और युधिष्ठिर को हस्तिनापुर आने का निमंत्रण दिया है। वहीं विनाश की बात को बिना ध्यान में रखे युधिष्ठिर ने द्वित क्रीड़ा खेलने का आमंत्रण स्वीकार कर लिया है।
धृतराष्ट्र के आदेशानुसार विदुर इंदप्रस्त पांडवों को द्वित सभा के लिए आमंत्रित करने के लिए जा रहे हैं। लेकिन उससे पहले वो पितामाह से मिलने पहुंचे और उन्हें धृतराष्ट्र की पूरी बात बताई। जिसके बाद भीष्म ने कहा कि अगर पांडव यहां आ द्वित सभा में आ गए तो बहुत बड़ी परेशानी हो जाएगी और अनहोनी को कोई नहीं टाल पाएगा।
धृतराष्ट्र ने परम ज्ञानी विदुर को दूत बनाकर इंद्रप्रस्त भेजा है। पांडवों को लाने के लिए, इंद्रप्रस्थ जाने से पहले विदुर पितामाह भीष्म से मिलने पहुंचे हैं और उन्हें पूरी बात बताई।
दुर्योधन का अपमान करने पर युधिष्ठिर ने पांचाली से कहा कि मुझे चिंता हो रही है। तुमने उसका उपहास उड़ा कर सही नहीं किया है। वो इसे नहीं भूलेगा। इससे हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ के बीच दरार आ सकती है।
शकुनि ने धृतराष्ट्र को भड़काते हुए कहा कि दुर्योधन को इन्द्रप्रस्थ की कामना है। जिसपर धृतराष्ट्र उससे कहता है कि पांडव काफी शक्तिशाली हैं और ऐसा कर पाना संभव नही जिसपर शकुनि उनसे कहता है कि आप इन्द्रप्रस्थ तो नही दे सकते लेकिन अपने पुत्र दुर्योधन की बात सुनकर उसका मन बहलाव जरूर कर सकते हैैं। शकुनि धृतराष्ट्र से हस्तिनापुर आने के आमंत्रण देने के लिए कहता है।
दुर्योधन इन्द्रप्रस्थ का भ्रमण कर रहा होता है जहां पर हर चीज माया की बनी होती है लेकिन वासत्विक प्रतीत हो रही होती है। दुर्योधन इसी माया के जाल में फंसकर पानी में गिर पड़ता है। दुर्योधन को पानी में गिरा देख द्रौपदी जोर जोर से हंसने लगती हैं और दुर्योधन का मजाक उड़ाते हुए कहती हैं कि अंधे का पुत्र अंधा।
शकुनि जान बूझकर जुएं का खेल सम्राट युधिष्ठिर से हार गया ताकि उसको इस बात का यकीन हो जाए कि मामा शकुनि के पासे उनके इशारे पर काम नही करते हैंं। आखिरकार ऐसा ही होता है और पांडवों को इस बात का यकीन हो जाता है कि शकुनि के पासे उसका कहा नही सुनते बल्कि जुआं केवल भाग्य का खेल है।