Mahabharat 11th May Episode online Updates: महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से अंतिम योद्धा खुद दुर्योधन बचा है। जिस वजह से गांधारी अपने पुत्र दुर्योधन से कहती है कि अब तुम युद्ध में अकेले ही रह गए हो। इस लिए तुम जाओ और गंगा में स्नान करके उस अवस्था में मेरे सामने आओ जैसे कोई नवजात बालक अपनी मां के सामने होता है। जिसके बाद दुर्योधन गंगा स्नान के बाद पूर्ण रूप से नग्न हो कर अपनी मां गांधारी के पास जा रहा होता है, कि रास्ते में उसे भगवान श्री कृष्ण मिल जाते हैं वो उससे कहते हैं ये क्या अपनी मां से तुम पूरे नग्न कैेसे मिल सकते हो, तुम तो बड़े हो। इसके बाद भगवान कहते हैं ये तो मर्यादा के विपरीत है। जिसके बाद दुर्योधन अपने जांग से नीचे के भाग में केले का पत्ता लपेट कर गांधारी के सामने जाता है। गांधारी अपनी आंखों से क्षण भर के लिए पट्टी खोलती है औऱ दुर्योधन के जिस हिस्से पर उसकी नजर पड़ती है वो वज्र का हो जाता है।
वहीं इससे पहले कर्ण और अर्जुन में भयंकर युद्ध देखने को मिला। इस दौरान दोनों ही तरफ से बाणों की वर्षा हुई। लेकिन अपने श्रॉपों के कारण कर्ण अपने प्रतिद्वंदी अर्जुन के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ। जब कर्ण युद्ध कर रहे होते हैं, उस दौरान उनके रथ का पहिया जमीन में धंस जाता है। तब उन्हें अपना श्रॉप याद आता है। उसके बाद क्रोधित हो कर वो अपना ब्रह्मास्त्र चलाने का प्रयास करते हैं, तब भगवान परशुराम के श्रॉप के कारण उनका ब्रह्मास्त्र भी नहीं आता है। इसके बाद जब कर्ण अपने रथ का पहिया निकालने जाता है, तो भगवान श्री कृष्ण के कहने से अर्जुन- निहत्थे कर्ण का सिर उसके धड़ से अलग कर देते हैं। वीरगति को प्राप्त करने से पहले कर्ण एक-एक करके सभी पांडवों को जीवनदान दे देता है। क्योंकि उसने माता कुंती को ये वचन दिया होता है कि युद्ध के बाद भी आपके पांच पुत्र जीवित रहेंगे।
इससे पहले आपने देखा कि भगवान श्री कृष्ण के सुझाए मार्ग से पांडव अपनी विजय में रोड़ा बन रहे द्रोणाचार्य को अपने रास्ते से हटाने में कामयाब होते हैं। दरअसल श्री कृष्ण पांडवों से कहते हैं कि गुरुद्रोण को पराजित करने का एक ही तरीका है वह है अश्वत्थामा का वध। उसके वध से वो अवश्य ही शस्त्रों का त्याग कर देगें। श्री कृष्ण के कहने पर भीम अश्वत्थामा नाम के एक हाथी का वध कर देते हैं और द्रोण को बताते हैं कि मैंने अश्वत्थामा को मार दिया। बेटे के वध की खबर सुनकर द्रोणाचार्य अपने शस्त्र त्याग देते हैं। वह कहते हैं, ‘मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मेरा बेटा अश्वधामा तुम सबसे पराजित हो गया, लेकिन युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलता इसलिए मैं अपने शस्त्रों को त्याग रहा हूं।’ जैसे ही वो शस्त्र रखते हैं तुरंत द्रुपद पुत्र दृष्टद्यूम्न उनका मस्तक धड़ से अलग कर देता है।
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युधिष्ठर अपने भाइयों के साथ कर्ण का दाह संस्कार करने जा ही रहे होते हैं तभी दुर्योधन वहां पहुंचते हैं। कहते हैं कि आप यह नहीं कर सकते। आपका राधेय की चिता पर कोई अधिकार नहीं है। मैं जानता हूं यह आपका ज्येष्ठ भाई था। मैं इसका दाह संस्कार करूंगा। यह शव मेरे प्रिय राधेय का है किसी और का नहीं। दाह संस्कार केवल मैं कर सकता हूं। दुर्योधन अर्जुन से पूछते हैं कि तुमनें बाण अपने भाई पर चलाए थे या मेरे मित्र राधेय पर। वासुदेव कहते हैं कि दुर्योधन ठीक कह रहे हैं। राधेय के शव पर हम सबसे ज्यादा अधिकार इनका है। दुर्योधन कर्ण का दाह संस्कार कर रहे हैं। और उनकी चिता को आग लगा रहे हैं। दुर्योधन कहते हैं कि जब तक यह संसार रहेगा तुम मित्रता का प्रतीक रहोगे।
गांधारी अपने पुत्र दुर्योधन से कहती है कि अब तुम युद्ध में अकेले ही रह गए हो। इस लिए तुम जाओ और गंगा में स्नान करके उस अवस्था में मेरे सामने आओ जैसे कोई नवजात बालक अपनी मां के सामने होता है। जिसके बाद दुर्योधन गंगा स्नान के बाद पूर्ण रूप से नग्न हो कर गांधारी के पास जा रहा होता है, कि रास्ते में उसे भगवान श्री कृष्ण मिल जाते हैं वो उससे कहते हैं ये क्या अपनी मां से तुम पूरे नग्न कैेसे मिल सकते हो तुम तो बड़े हो। इसके बाद भगवान कहते हैं ये तो मर्यादा के विपरीत है। जिसके बाद दुर्योधन अपने जांग से नीचे के भाग में केले का पत्ता लपेट कर गांधारी के सामने जाता है। गांधारी अपनी आंखों से क्षण भर के लिए पट्टी खोलती है औऱ दुर्योधन के जिस हिस्से पर उसकी नजर पड़ती है वो वज्र का हो जाता है। लेकिन वासुदेव की बुद्धिमता के दम पर दुर्योधन की जांग से नीचे का शरीर वज्र का नहीं हो पाता है।
वासुदेव जब तुम द्वारिका जाना तो देवकी से पूछना की कोख उजड़ने की पीड़ा क्या होताी है। तुम समझोगे। मैं तुम्हें श्राप देती हूं वासुदेव कृष्ण अगर तुम चाहते तो यह युद्ध न होता, तुम इस युद्ध को रोक सकते थे। वासुदेव कहते हैं कि हां, रोक सकता था लेकिन यह युद्ध होना आवश्यक हो गया था। गांधारी कहती हैं कि मैं गांधारी आज तुम्हें यह श्राप देती हूं कि पूरे यदूवंश का भी विनाश हो जाए। वासुदेव कहते हैं कि माता मैंने सोचा था कि आपके चरण स्पर्श करूंगा लेकिन अब मैं नहीं करूंगा क्योंकि अगर मैंने ऐसा किया तो आप आशीर्वाद देने के लिए विवष हो जाएंगी। इसलिए आज आपका यह पुत्र केवल जाने की आज्ञा मांग रहा है।
गांधारी के पास वासुदेव आते हैं। वासुदेव की आवाज सुनकर गांधारी गुस्से में आ जाती हैं। गांधारी कहती हैं कि आज मैं तुम्हें देवकी नंदन बुलाऊंगी। तुम्हें याद होगा देवकी नंदन 17 दिन पहले मैं 100 पुत्रों की मां थी और आज केवल एक पुत्र की मां रह गई हूं। 100 और एक के बीच केवल शव ही शव हैं। देवकी नंदन तुम तो उन शवों को पहचानते होंगे। वे मेरे पुत्रों के शव थे। वासुदेव कहते हैं कि हां, इन शवों में एक शव ऐसा भी है जिसे आप पहचान नहीं पाएंगी। ज्येष्ठ शव वह था जिसे आप सब राधेय के नाम से जानते थे। गांधारी यह जानकर चौंक जाती हैं और कहती हैं कि वह कुंती पुत्र था। वासुदेव हामी भरते हैं। वासुदेव कहते हैं कि वह सब कुछ जानते हुए भी अपने मित्र दुर्योधन के साथ युद्ध में शामिल होते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया।
युधिष्ठिर और अर्जुन को जैसे ही ये पता चलता है कि कर्ण उनका बड़ा भाई है। वो अपनी मां कुंती को इस युद्ध का जिम्मेदार ठहराते हैं। वो कहते हैं लाखों शवों के पीछे आप जिम्मेदार हैं, हमसे हमारे बड़े भाई का वध करवा कर जो आपने पाप किया है। मैं आपको और समस्त नारी को ये श्रॉप देता हूं कि आज के बाद कभी कोई भी नारी अपने मन में कोई भेद नहीं छुपा पाएगी।
कर्ण के शव पर कुंती रो रही हैं। जिसके बाद युधिष्ठिर, अर्जुन और वासुदेव श्री कृष्ण के साथ कुंती के पास पहुंचे हैं। इस दौरान युधिष्ठिर के बार-बार पूछने पर की आप हमारे शत्रु के शव पर क्यों रो रही हैं। इस पर कुंती ने उन्हें बताया कि जिसे तुम शत्रु समझ रहे हो वो तुम्हारा बडा़ भाई है।
अपने मित्र कर्ण की मृत्यु से अत्यंत दुखी दुर्योधन उसकी मृत्यु का शोक प्रकट करने पितामह भीष्म के पास पहुंचा है। बांणों की शैय्य पर लेटे भीष्म ने उससे कहा कि वो कुंती पुत्र था। जिसे सुनकर दुर्योधन चौंक गया। पितामह ने उससे कहा वो अर्जुन का बड़ा भाई होने के बावजूद तुम्हारी तरफ से युद्ध करता रहा। उस पीर को मैं आज अपने वृद्ध हाथों से प्रणाम करता हूं।
प्रधान सेनापति और युधिष्ठर के बीच तीर चल रहे हैं। दोनों ही युद्ध के मैदान में हैं। अब दोनों भाला लेकर धरती पर युद्ध कर रहे हैं। युधिष्ठर और प्रधान सेनापति मध्य नरेश आमने-सामने हैं। इस बीच युधिष्ठिर ने मध्य नरेश का वध कर दिया है।
युधिष्ठिर के छोटे भाई सहदेव से शकुनि का युद्ध चल रहा है। इस दौरान दोनों बाणों से युद्ध करने के बाद तलवारों पर आ गए हैं। इस दौरान शकुनि ने सहदेव के पेट में तलवार घुसा दी लेकिन फिर भी सहदेव बड़े ही पराक्रम से युद्ध करते नजर आ रहे हैं और उन्होंने अंत में अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए शकुनि का वध कर दिया।
अर्जुन के हाथों कर्ण वीरगति को प्राप्त हो गए हैं। इसकी खबर जब दुर्योधन को मिली तो दुर्योधन के होश उड़ गए। वो मद्र नरेश से कह रहा है कि कह दो कि ये झूठ है। मेरा मित्र कर्ण मर नहीं सकता। दुर्योधन जोर-जोर से चिल्ला रहा है। जिसके बाद मद्र नरेश ने उससे कहा कि कर्ण महावीर था और अर्जुन ने उसे कायरों की तरह मारा है।
कर्ण और अर्जुन के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस दौरान भगवान के कहने पर अर्जुन ने अपने दिव्यस्त्र का इस्तेमाल किया। वहीं युद्ध नें श्रॉप के कारण कर्ण के रथ का पहिया गढ्डे में गिर चला जाता है। इसके बाद कर्ण अपना ब्रह्मास्त्र चलाने का प्रयास करता है लेकिन परशुराम के श्रॉप के कारण उसको ब्रहमस्त्र नहीं आता है। जिसके बाद कर्ण अपने रथ का जमीन में धंसा पहिया निकालने जाता है। तब भगवान के कहने पर अर्जुन रथ का पहिया निकाल रहे कर्ण का सर धड़ से अलह कर देता है।
कर्ण और अर्जुन के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस दौरान भगवान के कहने पर अर्जुन ने अपने दिव्यस्त्र का इस्तेमाल किया। वहीं युद्ध नें श्रॉप के कारण कर्ण के रथ का पहिया गढ्डे में गिर चला जाता है। इसके बाद कर्ण अपना ब्रह्मास्त्र चलाने का प्रयास करता है लेकिन परशुराम के श्रॉप के कारण उसको ब्रहमस्त्र नहीं आता है। जिसके बाद कर्ण अपने रथ का जमीन में धंसा पहिया निकालने जाता है। तब भगवान के कहने पर अर्जुन रथ का पहिया निकाल रहे कर्ण का सर धड़ से अलह कर देता है।
कर्ण ने अपने वचनों अनुसार एक एक कर के सभी पांडवों को जीवनदान दे दिया है। इस बार उसने सम्राट युधिष्ठिर का मस्तक काटने की जगह उसे जीवनदान दिया। जिसके बाद अर्दुन और कर्ण में भीषण युद्ध हो रहा है। इस दौरान अर्जुन के प्रत्येक बाणों का जवाब दे रहे कर्ण को देख कर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, पार्थ ये प्रतिद्वंदी दिवयस्त्र के योग्य है। इस लिए दिव्यस्त्र चलाओ।
कर्ण ने पहले भीम को उसके बाद गांडीवधारी अर्जुन को जीवनदान तो दिया ही था। आज के युद्ध में कर्ण ने सहदेव को भी जीवनदान दे दिया है।
महाभारत का महासंग्राम एक बार फिर शुरु हो गया है। इस दौरान कृपाचार्य ने अपने बाणों से धृष्टद्यूम्न को तो युधिष्ठिर ने दुर्योधन को घायल कर दिया है।
कर्ण को श्राप की चिंता सता रही हैं। वह गांधारी से मिलने के लिए पहुंचते हैं। गांधारी कहती हैं कि मैं केवल महारानी नहीं हूं मैं तुम्हारे सबसे प्रिय दुर्योधन की माता भी हो। यदि संभव हो तो भूल जाओ कि मैं महारानी हूं और आप मुझे मां भी कह सकते हो। मेरा दुर्योधन अगर कड़वी बात बोले दे उसका बुरा मत मानना। उसका साथ कभी मत छोड़ना। कर्ण ने कहा कि चाहे कुछ भी हो मैं कभी उसका साथ नहीं छोड़ूंगा
कुंती, भीष्म पितामह से मिलने के लिए पहुंचती हैं। कुंती कहती हैं कि मैं क्या करूं। भीष्म ने कहा कि जिस प्रश्न का सामना तुम कर रही हो उसी प्रश्न का सामना मैं भी कर रहा हूं। बस सोचता रहता हूं कि क्या खोया और क्या पाया। दुर्योधन तो अब यहां आता नहीं है लेकिन कर्ण आता रहता है। उसने बताया कि आज दुशासन वीरगति को प्राप्त हो गया। दुशासन में केवल एक दोष था कि वह दुर्योधन से बहुत प्यार था। वह अपने व्यक्तित्व को दुर्योधन की परछाई बना दिया था।
धृतराष्ट्र, संजय से पूछते हैं कि तुम चुपचाप क्या देख रहे हो? संजय बोले मैं मां की ममता देख रहा हूं। धृतराष्ट्र ने कहा कि हां गांधारी को वहां अकेले नहीं जाना चाहिए। संजय बताते हैं कि कुंती आपके शिविर में हैं। धृतराष्ट्र ने कहा कि तुमसे कोई भूल हुई है। कुंती वहां नहीं जा सकती हैं क्योंकि उनके पुत्र युद्ध जीत रहे हैं। यह सब तातश्री का किया हुआ है न वह तीरों की शैय्या पर लेटते और न ही हमें यह युद्ध हारना पड़ता
कर्ण सपने में अपने गुरु परशुराम से मांग करते हैं कि उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया जाए। परशुराम कहते हैं कि तुम लेने के लिए नहीं हो बल्कि देने के लिए हो। तुम दुर्योधन के ऋण से मुक्त हो चुके हैं।
कर्ण से मिलने पहुंची उनकी मां कुंती से अंगराज ने कहा आप चिंता ना कीजिए माता अर्जुन मेरा छोटा भाई है। मेरे से ज्यादा आपके आर्शीवाद पर मेरे छोटे भाई का अधिकार है।
अर्जुन द्रौपदी से बात कर रहे हैँ। इस दौरान उन्होंने पांचाली से कहा कि रणभूमि में हम अपनों का ही लहु बहा रहे हैं। तुम्हारे केश बहुत सुंदर हैं लेकिन हस्तिनापुर से ज्यादा सुंदर नहीं हैं। रही बात कर्ण की तो वो कल का सूर्योदय नहीं देखेगा।
सूर्यास्त होने के बाद अर्जुन पर बाण नहीं चलाने को लेकर दुर्योधन शिविर में नाराजगी जाहिर करता है। वहीं शकुनि भी अंगराज को भलाबुरा बोलते हैं। दुर्योधन कहता है कि विजय हमारी थी तुमने क्यों जाने दिया। कर्ण कहते हैं कि अगर विजय आज थी तो कल भी हमारी ही होगी। मैं भीष्मपितामह के बनाए नियमों को तोड़ अर्जुन पर बाण नहीं चला सकता था।
दुःशासन की मौत के बाद दुर्योधन टूट जाता है। वहीं अश्वत्थामा दुर्योधन को पांडवों से संधि करने की बात कहते हैं लेकिन दुर्योधन ये करने से इंकार कर देता है। दुर्योधन कर्ण को युद्ध करने के लिए कहता है। कर्ण इसके बाद अपना रथ अर्जुन के रथ के समीप ले जाते। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है। अर्जुन को कर्ण घायल कर देते हैं। तभी कृष्ण अपनी माया से सूर्यास्त कर देते हैं और युद्धविराम की घोषणा हो जाती है।