शशिप्रभा तिवारी
सुमिता शर्मा जयपुर घराने की बेहतरीन कलाकार हैं। इनदिनों वह दिल्ली में रहती हैं। वह संस्कार भारती से वर्षों से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने परंपरागत कथक नृत्य करने के साथ उसमें हिंदी साहित्य के कवियों को लेकर अनेकों नृत्य रचनाएं की हैं, जो बहुत लोकप्रिय रही हैं। उन्होंंने उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ कुंभ महापर्व में आयोजित नृत्य समारोह में उन्होंने रामचरितमानस के प्रसंग को प्रस्तुत कर समां बांध दिया। सुमिता शर्मा ने मधु अखौरी और बनबिहारी आचार्य से कथक के आरंभिक ककहरे को सीखा है। बाद के दिनों में वह जयपुर घराने के गुरु कुंदनलाल गंगानी के संपर्क में रह कर नृत्य साधना की है।

कथक नृत्यांगना सुमिता शर्मा मानती हैं कि कथक नृत्य सिर्फ नृत्य नहीं है। यह जीवन की गहराई है। उन्होंने कथक नृत्य के साथ शोध कार्य भी किया। इसके संदर्भ में वह बताती हैं कि जब मैं अपने शोध ग्रंथ ‘राजस्थान के लोक नृत्य व शास्त्रीय कथक नृत्य में पारस्परिकता’ के लिए शोध कर रही थी, तब डॉ जयचंद शर्मा, डॉ पुरु दधीच, डॉ महेंद्र भनावत, आचार्य नंदिकेश्वर की किताब ‘अभिनय दर्पण’ को पढ़ने पर पता चला कि हमारे कथक में भाव को सात तरीके से प्रदर्शित करते हैं, जैसे-नयन भाव, बोल भाव, नृत्य भाव, अंग भाव आदि। ठुमरी-‘देखो री, ना माने श्याम’ गुरुजी खुद हारमोनियम लेकर बैठते। फिर, गाते हुए, ठुमरी के बोल-भाव को अपने स्वर में लाते थे। उनका अंदाज ही अनूठा था।
नानाजी देशमुख ने सुमिता शर्मा को कथक नृत्य की ओर प्रेरित किया। उनकी बातों को वह अपने जीवन में गांठ की तरह बांध लिया। इस बारे में वह कहती हैं कि नानाजी का मन था कि मैं नृत्य सीखूं। इससे मेरे व्यक्तित्व का विकास होगा। केवल मनोरंजन या व्यक्तिगत प्रसिद्धि के लिए मुझे नृत्य नहीं सीखना। मेरे लिए नृत्य एक संस्कार साधना है।

पिछले दिनों आयोजित अखिल भारतीय कला साधक संगम के दौरान उन्होंने नृत्य संयोजन ‘आराधना’ पेश किया। इस नृत्य संयोजन के संगीत की परिकल्पना पंडित ज्वाला प्रसाद ने की थी। इस नृत्य रचना में कथक, ओडिशी, भरतनाट्यम और कुचिपुडी नृत्य शैलियों को शामिल किया गया। इसमें गुरु रेखा नागगौड़ा, मोहन बोड़े, वेंकटरमा शर्मा और बागेश्वरी की शिष्याओं ने शिरकत की। नृत्य के आरंभ में ‘त्वम् आदि देव’ और ‘साधयति संस्कार भारती’ पर नृत्य पेश किया गया। नृत्य के क्रम में कई ताल अवतर्नों पर शिव, दुर्गा और कृष्ण के विश्वरूप को प्रदर्शित किया। नृत्य के अंत में तराना पर अलग-अलग नृत्य शैलियों की जुगलबंदी काफी मोहक और संतुलित थी।

छोटे शहरों से आए हुए युवा अकसर महानगरों की चकाचौंध और ग्लैमर में आकर गुम हो जाते हैं। यहां के खुले वातावरण में खुद को ढालना एक युवा के लिए चुनौती होती है। अगर, वह संस्कार और सभ्यता को थाती मानने वाले परिवार से आया हो, तो उसपर जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह उस धरोहर को बहुत यत्न से संवारे। जमशेदपुर में ही पली-बढ़ीं कथक नृत्यांगना हैं सुमिता शर्मा प्रधान। उनकी कला यात्रा और उनके गुरु पंडित कुंदनलाल गंगानी से जुड़ी कुछ यादों से गहरी जुड़ी हैं।