राजीव सक्सेना
एकल पर्दे वाले सिनेमाघरों और मल्टीफ्लेक्स थिएटर से बचने वाले दर्शकों को मनोरंजन के साथ जन जागरण से जुड़ी संदेश प्रधान फिल्मों को अब प्रदर्शन के कुछ ही हफ्ते बाद ओटीटी मंच पर लाए जाने का सिलसिला चल रहा है। अपराध को लेकर सतर्क करती हुई नित नई वेब सीरीज में रुचि लेने वाले दर्शकों की एक निश्चित और नियमित संख्या का लाभ फिल्मों को भी समान रूप से मिल रहा है।
दून कांड
वूट पर प्रसारित देहरादून और मसूरी की पृष्ठभूमि में रची-बुनी पटकथा के मुताबिक वहां नशे के पनपते कारोबार के खिलाफ कमर कसने वाले युवा एसएसपी को एक खास गैंग के मुखिया और उसके साथियों की धर पकड़ में सफलता हासिल होती है। पुलिस महकमे में एसएसपी प्रदीप रावत की कार्यकुशलता की तारीफ का सिलसिला उनके हौसले को नई उड़ान देता है। उत्तराखंड को नशामुक्त प्रदेश बनाने के संकल्प के साथ ये उत्साही अधिकारी अपनी मुहिम को रफ्तार देना शुरू ही करते हैं कि अल्पतम सजा काटकर गैंग का सरगना, बाहर आते ही एक बार फिर सक्रिय होने के मंसूबे बुनने लगता है।
इस बार उसका लक्ष्य अधिकारी प्रदीप रावत से प्रतिशोध भी है
एसएसपी के परिवार पर नजर रखते हुए गैंग का सरगना उनकी नन्हीं बेटी को अगवा करने की कोशिश करता है। महकमे के भीतर रावत की बढ़ती लोकप्रियता से ईर्ष्या रखने वाले पुलिसकर्मियों के सहयोग से सरगना को अपने प्रयास में सफलता भी मिलती है। लेकिन कई सारे नाटकीय घटनाक्रम के कारण एसएसपी को उनके मकसद में कामयाबी के संकेत मिलने लगते हैं।
वेबसीरीज ‘दून कांड’ के बोझिल दृश्यों से अलग उत्तराखंड के मसूरी और देहरादून की प्राकृतिक पहाड़ी खूबसूरती दर्शकों का मन मोहित करती दिखाई देती है। कहानी में अपेक्षाकृत कसावट का अभाव बना रहा। मनोज खाड़े के निर्देशन में अभिनेता इकबाल खान ने पुलिस अधिकारी की मुख्य भूमिका और इंद्रनील सेनगुप्ता ने गेंगस्टर की नकारात्मक भूमिका शिद्दत से निभाई है। अभिनेत्री डोनल बिष्ट ने भी एसएसपी की पत्नी की जिम्मेदार भूमिका को अच्छी तरह निभाया। अधिकतर कलाकार उत्तराखंड के रंगमंच से जुड़े हुए हैं।
जनहित में जारी
वाकई, ताज्जुब होता है जब हमारे देश का नेतृत्व सम्हालने का दावा करने वाले तथाकथित नेता बड़े फख से कहते हैं 140 करोड़ जनसंख्या वाले हमारे देश में फलां तरक्की हो रही है.. फलां उपलब्धि अर्जित की है। जबकि जनसंख्या का लगातार तेजी से बढ़ना तो तरक्की और उपलब्धि दोनों के लिए सबसे बड़ी रुकावट ही साबित हुआ है। सत्तर के दशक में ज़ोर पकड़ने वाला परिवार नियोजन अभियान के ..‘बच्चे दो ही अच्छे’ या ‘हम दो हमारे दो’ सरीखे नारे.. चुनिंदा समझदार लोगों से अधिक आम नागरिकों पर कोई खास असर डालने में सफल नहीं हुए।
जी 5 पर प्रसारित जनहित में जारी जैसी बेहद जरुरी और सार्थक हिंदी फ़िल्म को तवज्जो न मिलना इसी दोहरी मानसिकता की मिसाल है। देश के निचले माने जाने वाले तबकों ही नहीं कतिपय ऊंचे और कथित सभ्य घरों में भी.. आवश्यक संरक्षण के अभाव में..गर्भपात का खामियाजा सैकड़ों महिलाओं को रोज भुगतना पड़ रहा है।
नुसरत भरुचा, अनुदसिंह ढाका, विजय राज, टीनू आनंद, परितोष त्रिपाठी, ब्रजेन्द्र काला जैसे अभिनेताओं के सशक्त अभिनय और जयबसंतु सिंह के कुशल निर्देशन का नतीजा विगत दिनों प्रदर्शित फ़िल्म ‘जनहित में जारी’, आज देश में तमाम जातीय दंगों – फसादों, बेरोजगारी, गरीबी..लचर अर्थव्यवस्था की विडम्बना के लिए परिवार नियोजन की दबंग वकालत करती है।
नुसरत भरुचा ने इस फिल्म से खुद को एक अच्छी अभिनेत्री साबित किया है। बुंदेलखंड के कस्बाई परिवेश में रची-बुनी पटकथा के मुताबिक प्रधान पद के दावेदार नेताजी की बहू बतौर नायिका का, निरोध बनाने वाली कम्पनी में काम करना ही कथित रूप से सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होने का कारण माना जाता है।
तमाम नाटकीय घटनाक्रम के बाद महिलाओं को संगठित कर नायिका उनके भीतर परिवार नियोजन के साधन के प्रति जागरूकता स्थापित करने में कामयाब हो जाती है। मध्य प्रदेश की खूबसूरत हेरिटेज सिटी, साड़ियों के लिए मशहूर चंदेरी में फिल्माई गई शानदार फिल्म ‘जनहित में जारी’ को सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं देश भर में मनोरंजन कर से मुक्त कर भारी प्रचार के साथ, उन लोगों को देखने के लिए प्रेरित जाना चाहिए जो जानते-बूझते सुरक्षा के साधन के इस्तेमाल से बचते हुए महिलाओं की जान और जनसंख्या नियंत्रण दोनों के साथ घटिया तरीके से खिलवाड़ कर रहे हैं।