इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘वर्ड्स इन दी गार्डन’ समारोह आयोजित था। इस समारोह में जयपुर घराने की वरिष्ठ गुरु और कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली ने कथक नृत्य पेश किया। कार्यक्रम में शाम की महफिल में प्रेरणा श्रीमाली ने हजरत अमीर खुसरो, मिर्जा गालिब, मीर और दाग की रचनाओं पर बेहद खूबसूरत नृत्य पेश किया। आमतौर पर इन रचनाकारों की रचनाओं को काफी तामझाम के साथ पेश किया जाता है। लेकिन, प्रेरणा श्रीमाली ने इन रचनाओं को गहराई से महसूस करते हुए, नृत्य प्रस्तुत किया।
उन्होंने अपने नृत्य का आगाज अमीर खुसरो के कलाम ‘मोहे अपने ही रंग में’ पर आधारित नृत्य से किया। आंगिक अभिनय और मुख के भावों के जरिए नृत्यांगना पे्रेरणा श्रीमाली ने नायिका के भावों को प्रस्तुत किया। नृत्य के क्रम में घंूघट की गत और कलाई की हरकतों का मोहक प्रयोग किया। नजर की अदाओं को उन्होंने आंखों के जरिए बखूबी बयां किया। पैर के काम में लयकारी का अंदाज भी खूब दिखा। वहीं, ‘जो तू मांगे रंग की रंगाई’ पंक्तियों पर नायिका के भावों को बहुत नजाकत और महीन अंदाज में प्रस्तुत किया। उनके अदायगी में गजब का ठहराव दिखा, जो कलाकारों में जिंदगी के अनुभव और उम्र के साथ की परिपक्वता को बताता है। भक्ति और शृंगार की चाशनी से पगी यह प्रस्तुति एक अच्छी शुरुआत साबित हुई।
नृत्यांगना ने मिर्जा गालिब की रचना ‘जहां तेरा नक्श-ए कदम देखते हैं’ का चयन किया, जिसकी शुरुआत उन्होंने चलन से की। नायिका के भावों के चित्रण के क्रम में टुकड़े, तिहाई, गत निकास, थाट का अंदाज मनोरम था। नृत्य में चक्करों का प्रयोग काफी सधा हुआ था। साथ ही, उन्होंने सादी गत व अन्य गत निकास का प्रयोग किया। इस प्रस्तुति में अभिनय और कथक की तकनीकी बारीकियों को भी सुंदर अंदाज में पिरोया गया।
जयपुर घराने के दमदार तोड़े, टुकड़े और परणों का प्रयोग तराने में दिखा। शायर मीर और दाग के कलामों को फारसी के तराने में पिरोया गया। नृत्यांगना पे्ररणा श्रीमाली ने एक-एक भाव को खूबसूरती के साथ अदा किया। कथक के अमूर्तन पक्ष और कथक की तकनीकी बारीकियों की यह बानगी रोचक थी।
बहरहाल, इन दिनों कथक नृत्य में तकनीकी पक्ष का बोलबाला ज्यादा दिखता है। चक्कर और पैर के काम से ही कलाकार अपनी उपस्थिति को जताना चाहते हैं। ऐसे में ठहराव, सुकून और चैनदारी कहीं खोता नजर आता है। लेकिन, कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली के नृत्य को देखकर, एहसास हुआ कि इस तरह की पेशकश के लिए निरंतर साधना और रियाज जरूरी है। तभी कलाकार की कला दर्शकों के दिल की गहराई में उतरती है और वह अपने भीतर रस की अनुभूतियों को साकार पाता है।