फिल्म उद्योग में काफी उथल-पुथल है, जिसकी सबसे बड़ी वजह है फिल्मों का न चलना। कहना गलत न होगा कि दो-तीन साल में निर्माता-निर्देशक हर मुमकिन कोशिश कर चुके हैं कि बेहतरीन फिल्में बनाएं जिन्हें देखने दर्शक थिएटर तक आएं। वे हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं, जिसके तहत वे दर्शकों को फिल्मों की तरफ आकर्षित कर सकें। इसके लिए जहां बड़ी उम्र के कलाकार सलमान, शाहरुख जवान दिखने की कोशिश में जुटे हैं, वहीं निर्माता फिल्म की शूटिंग के लिए महंगे सेट से लेकर देश-विदेश के ठिकानों जैसे हर हथकंडे अपना रहे हैं। इसके बावजूद अक्षय कुमार से लेकर सलमान खान तक कई नामी कलाकार पिटी हुई फिल्में दे रहे हैं। आखिर क्या वजह है कि दर्शक लगभग हर फिल्म को नकार रहे हैं? पेश है इस पर एक खास रिपोर्ट
अभिनेता रणबीर कपूर अलग सोच रखते हैं। उनका कहना है कि आज के दर्शक सारी दुनिया का सिनेमा देखने के बाद काफी परिपक्व हो चुके हैं। अब वे कुछ ऐसा देखना चाहते हैं जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। आज का दर्शक विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध कई ऐसी फिल्में देखता है, जिनमें लीक से हटकर कुछ होता है, कल्पना से बाहर होता है तो उसे बालीवुड की फिल्में नीरस लगने लगती हैं। वह स्वर दी हुई फिल्मों में कथा, पटकथा, फिल्मांकन, तकनीक को देखकर हिंदी फिल्मों से इनसे अधिक अपेक्षाएं पालता है और इसलिए वह अपनी भाषा में बनी घिसी-पिटी फिल्मों को देखने नहीं जाता।
रणबीर कपूर का कहना है अगर मैं अपना उदाहरण दूं तो मेरी फिल्म ‘शमशेरा’ पिट गई, लेकिन ब्रह्मास्त्र सफल हो गई। इसकी वजह यही थी कि दर्शकों को ब्रह्मास्त्र में ऐसा कुछ देखने को मिला जो दूसरी फिल्मों से अलग था। एक समय था जब मेरे पिता ऋषि कपूर एक रूमानी छवि के साथ 7-8 फिल्में एक साथ दे देते थे और वे सफल भी होती थीं। तबके दर्शक अपने सितारों को एक ही छवि में देखकर बोर नहीं होते थे। लेकिन आज इसके बिल्कुल विपरीत है। आज दर्शकों को सब कुछ नया चाहिए, ताकि उनको कुछ नया देखने को मिले। आज के दर्शक नई सोच, नई कहानी, यहां तक कि नए कलाकार देखना चाहते हैं जो उनको कुछ नई सामग्री दे सकें। ऐसी सामग्री जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। जब इस तरह की फिल्में ज्यादा से ज्यादा बनने लगेंगी तो दर्शक अपने आप ही थिएटर तक खिंचे चले आएंगे।
प्रसिद्ध कहानीकार, गीतकार, गालिब असद भोपाली रणबीर कपूर की बात से पूरी तरह इत्तेफाक नहीं रखते। गालिब की कहानी पर आधारित फिल्म ‘जोगीरा सारा रा रा’ प्रदर्शित होने के लिए तैयार है। इस फिल्म में अहम भूमिका में नवाजुद्दीन सिद्दीकी और नेहा शर्मा हैं। उनके अनुसार हर पीढ़ी के दर्शक निर्माता से कुछ नया चाहते हैं। कहानी का अभाव पहले भी था और आज भी है। फिल्म उद्योग में दो तरह के निर्माता हैं। एक तो वह जो कहानी को अहम मानते हैं और हमेशा कुछ नया करने के बारे में सोचते हैं। और एक वे जो कलाकार की छवि को अहमियत देते हैं। इसी तरह दर्शक भी दो भागों में बंटे हुए हैं। कुछ दर्शक कहानी और फिल्म निर्माण को ज्यादा अहमियत देते हैं। तो कुछ दर्शक सितारों को देखकर फिल्में देखने आते हैं। जहां तक निर्माता निर्देशकों का सवाल है तो वे हमेशा से अच्छे से अच्छा देने की कोशिश करते हैं। आज की बालीवुड फिल्मों की विफलता की एक बड़ी वजह यह भी है कि ओटीटी मंच के कारण दर्शक देश-विदेश की विभिन्न तरह की फिल्में देखते हैं। इसके बाद उनकी अपेक्षाएं हिंदी फिल्मों को लेकर और ज्यादा बढ़ गई हैं। जिस वजह से ज्यादातर हिंदी फिल्में पिट रही हैं।
फिल्म आलोचक और पत्रकार भावना शर्मा के अनुसार एक अच्छी फिल्म वह है जो मनोरंजक हो, शिक्षाप्रद और नई जानकारी देने वाली हो, जो कहीं ना कहीं दर्शकों को प्रेरणा भी दे। साथ ही जिसका कथानक मजबूत और विश्वसनीय पात्रों के साथ अच्छी तरह से प्रस्तुत किया गया हो। एक अच्छी फिल्म वह भी होती है जो आपको दुनिया के बारे में नए तरीके से सोचने पर मजबूर कर दे, और आपके दिमाग पर स्थायी प्रभाव छोड़ें। इसके अलावा एक सम्मोहक कहानी, मजबूत पटकथा, खूबसूरत फोटोग्राफी, असरदार संपादन और अच्छा निर्देशन एक अच्छी फिल्म के निर्माण में सहायक होता है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज दर्शक परिपक्व और समझदार हैं। वे कुछ नया और अलग चाहते हैं। लिहाजा तरोताजा कहानियों के साथ फिल्म निर्माण कार्य करना ही होगा। आगे बढ़ाएं। ताकि पिछले कई सालों से फिल्म उद्योग जो बुरे दौर से गुजर रहा है आर्थिक तौर पर नुकसान झेल रहा है उसे प्रगति मिल सके।
आरती सक्सेना