कथक नृत्यांगना ऋचा गुप्ता जयपुर घराने की समर्पित कलाकार हैं। वह वर्षों से नृत्य साधना में जुटी हैं। जयपुर घराने के गुरु घनश्याम गंगानी के सानिध्य में ऋचा नृत्य की बारीकियों को ग्रहण करती रही हैं। गुरु-शिष्य का यह गहरा संबंध सराहनीय है। समय के साथ गुरु-शिष्य का संबंध गहरा हुआ है, वहीं ऋचा के नृत्य में परिपक्वता आई है। इसकी झलक पिछले दिनों हुए नृत्य समारोह में दिखी।
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में कथानक की ओर से नृत्य समारोह आयोजित था। यह समारोह प्रसिद्ध गायक पंडित ज्वाला प्रसाद की स्मृति में आयोजित किया गया था। पंडित ज्वाला प्रसाद ने कथक के कलाकारों के लिए विशेषतौर पर संगीत रचनाएं की हैं। उन्होंने कृष्ण नृत्य रचना के लिए संगीत निर्देशन किया था, जिसे आज भी कलाकार और रसिकजन याद करते हैं। उनकी खुली, दमदार और पुरकशिश आवाज की वजह से उमा शर्मा, शोवना नारायण जैसी गायिकाओं की प्रस्तुतियां जानदार बन पड़तीं थीं।
शायर मिर्जा गालिब की गजल ‘आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक..’ को ज्वाला प्रसादजी ने बहुत ही प्रभावी अंदाज में गाया था। इसी को याद कर और उनकी स्मृति में ऋचा ने इस गजल का चयन अपनी प्रस्तुति के लिए किया। जिसपर कथक नृत्यांगना ऋचा ने बहुत ही मोहक भाव पेश किए। उन्होंने नायिका के एक-एक भाव को अपने नृत्य के जरिए दर्शाया, जो जयपुर घराने के कलाकरों में कम ही देखने को मिलता है। कारण कि जयपुर घराने के कलाकारों का जोर कवित्त और तकनीकी पक्ष को ज्यादा पेश करना होता है।
कथक नृत्यांगना ऋचा ने नृत्य का आरंभ दस मात्रा से किया। उन्होंने उपज में पैर का काम पेश किया। प्राचीन परण ‘धा धिंन ना धि धि तक’ में हिरण के चलन का अंदाज दिखाया। थाट में नायिका के खड़े होने का अंदाज पेश किया। वहीं परमेलू ‘त त तक दिग त धलांग’ में राधा-कृष्ण की छेड़छाड़ के अंदाज को दर्शाया। वहीं गज परण में गज के चलन को पेश किया। गौरतलब है कि गज परण अब बहुत कम कलाकार करते हैं। वहीं तकनीकी पक्ष को उन्होंने तराने में और अधिक उभारा। यह तराना राग चारूकेशी और तीन ताल में था। इस प्रस्तुति के दौरान तिहाइयों, चक्कर और चक्करदार तिहाइयों का प्रयोग खासतौर पर किया गया।
बड़े गुलाम अली खां साहब ने ठुमरी ‘याद पिया की आए’ को रसीले ढंग से गाया है। उनकी इस ठुमरी को पटियाला घराने के कलाकार आज भी बड़े मन से गाते हैं। इसी ठुमरी को ऋचा ने अपने नृत्य में पिरोया। नायिका के विरह भावों को ऋचा ने निभाने की अच्छी कोशिश की। वैसे गायक माधव प्रसाद ने इस ठुमरी को भरसक अपने अंदाज में गाया। इस प्रस्तुति के संगत कलाकार थे-तबले पर फतह सिंह गंगानी, सितार पर खालिद मुस्तफा, सारंगी पर कमाल अहमद और पढंत पर मनोज गंगानी।