निर्देशक- अदीब रईस, कलाकार- शहनाज ट्रेजरीवाला, बरूण सोबती, वरुण खंडेलवाल, नेहा गोसाई, केवी शास्त्री
बालीवुड में निर्देशक बनने का ख्वाब लेकर कई लोग आते हैं। लेकिन उन्हें यह समझ नहीं होती कि एक अच्छी फिल्म के लिए अभिनेत्री या अभिनेताओं का चुनाव कैसे किया जाए। ताजा मिसाल हैं अदीब रईस जिनकी फिल्म ‘मैं और मिस्टर राइट’ को देखने के दौरान यह सवाल दिमाग पर हथौड़े की तरह बजता रहता है कि आखिर इस निर्देशक ने फिल्म बनाने की कला किससे सीखी?
माना कि आपके पास कोई अच्छी कहानी है लेकिन सिर्फ उससे तो बात नहीं बनती। सबसे पहले कलाकारों का तो ठीक से चयन करो। शहनाज ट्रेजरीवाला को लीजिए। वे इस फिल्म के केंद्र में हैं। खूबसूरत हैं। कई सालों से फिल्मों में हैं। अभिनेत्री की भूमिका भी निभाई है। लेकिन अभिनय नाम की बुनियादी समझ उनमें नहीं है। उनकी हर हंसी, हर संवाद, हर अदा बनावटी लगती है। निर्देशक महोदय, अगर उन्हें लेकर फिल्म बनाओगे तो वह कैसे अच्छी बनेगी?
शहनाज ने आलिया नाम की एक कास्टिंग एजेंट की भूमिका निभाई है जो बालीवुड में फिल्मों के लिए नए कलाकारों का चयन करती है।
आलिया सफल है और उसके दोस्त उसे मिस परफेक्शनिस्ट कहते हैं। लेकिन वह अपने लिए एक परफेक्ट जीवनसाथी नहीं चुन पाई है। उसके दोस्त उस पर दबाव डालते हैं कि वह जल्द से जल्द शादी करे वरना जिंदगी निकल जाएगी। तंग आकर वह फिल्म नगरी में सलमान खान बनने की हसरत लेकर आए सुखविंदर उर्फ सुखी (बरुण सोबती) को इस बात के लिए राजी कर लेती है कि वह उसके (आलिया के) नकली ब्यॉयफ्रेंड का अभिनय करेगा। यह सब शुरू होता है। पर धीरे-धीरे आलिया और उसके दोस्तों के आपसी रिश्तों का खोखलापन सामने आने लगता है।
फिर आलिया को भी अपनी जिंदगी बेमतलब लगने लगती है। और जब सबको सुखी की वजह से यह अंतर्ज्ञान होता है कि वे नकली जिंदगी जी रहे हैं तो दर्शक को भी लगने लगता है उसे पकाया जा रहा है। शायद यह फिल्म के कलाकारों को भी लगने लगा था कि वे एक पकाऊ फिल्म में काम कर रहे हैं इसलिए उनमें ऊर्जा नहीं बची। निचुड़ा हुआ दर्शक क्या करे? वह फिल्म खत्म होने के बाद यह सवाल खुद से पूछता है।
