सन 2014 में एक तमिल फिल्म आई थी- ‘पिसासु’। ‘नानू की जानू’ उसी का हिंदी रीमेक है। यह हॉरर-कॉमेडी है यानी थोड़ा-सा डराती है और थोड़ा हंसाती है। जी हां, थोड़ा ही हंसाती है ज्यादा नहीं। फिल्म कुछ कुछ ‘फिल्लौरी’ जैसी है। बॉलीवुड में हॉरर- कॉमेडी विधा में ज्यादा फिल्में नहीं है। इस हिसाब से इसकी अहमियत है।
‘नानू की जानू’ में आनंद यानी नानू (अभय देओल) दिल्ली-नोएडा का एक गुंडा- मवाली किस्म का शख्स है, जो दूसरों की प्रॉपर्टी पर जबरदस्ती कब्जा करता है। इसमें डब्बू (मनु ऋषि) उसकी मदद करता है। धंधा आराम से चल रहा था कि एक दिन नानू देखता है कि सड़क पर एक लड़की दुर्घटनाग्रस्त हो गई है। गोकि नानू गुंडा है लेकिन हर गुंडे के दिल में कुछ अच्छाई तो बची रहती है। सो नानू सीधी (पत्रलेखा) नाम की उस लड़की को अस्पताल पहुंचा देता है जहां वह मृत घोषित की जाती है। इसके बाद आता है कहानी में मोड़ क्योंकि वह लड़की भूतनी बनके नानू के फ्लैट में पहुंच जाती है और अजीबोगरीब हरकतें करने लगती हैं। कभी बोतल खोलनेवाला ओपनर गायब कर देती है, तो कभी कुछ और। दरअसल वो नानू से इश्क करने लगी है। लेकिन एक भूतनी से इश्क कैसे होगा? यही वो बिंदु है, जहां से हंसी का माहौल पैदा होने लगता है।
फिल्म और बेहतर और चुस्त हो सकती थी। लेकिन निर्देशक संतुलन पैदा नहीं कर पाया। यह अपराध फिल्म के रूप में शुरू होती है और फिर हॉरर की तरफ मुड़ती और कॉमेडी की दिशा में चक्कर लगाने लगती है। फिर भी यह औसत किस्म की फिल्म है, जो अभय देओल की वजह से दर्शकों को बांधे रखती है। पत्रलेखा के बारे में क्या कहा जाए? वे दो पाटों के बीच में फंस गई हैं। हंसाना भी है और डराना भी। दोनों काम ठीक से हो नहीं पाए है। लड़की (या भूतनी) के पिता के रूप में राजेश शर्मा का काम अच्छा है।
निर्देशक- फराज हैदर
कलाकार- अभय देओल, पत्रलेखा, बिजेंद्र काला, राजेश शर्मा ऋषि, हिमानी शिवपुरी