निर्देशक-शैलेश वर्मा, कलाकार-निशान, अन्नू कपूर, शरण्या मोहन, किशोरी शाहाणे

यह फिल्म कबड्डी के खेल का ‘चक दे इंडिया’ हो सकती थी, लेकिन हो न सकी। अन्नू कपूर ने इसमें सूरजभान नाम के कबड्डी कोच की भूमिका निभाई है जो उत्तर प्रदेश के बदलापुर गांव की कबड्डी टीम को प्रशिक्षित करता है। एक प्रतियोगिता में यह कबड्डी टीम कैसे आगे बढ़ती है और किस तरह चुनौतियों का सामना करती है यह इस फिल्म में है।

लेकिन इसमें एक किसान की संघर्ष गाथा भी मिला दी गई है और इस कारण दर्शक कभी कबड्डी का खेल देखता है और कभी ग्रामीणों के आंदोलन को। यह आंदोलन किसानों का है जो मांग कर रहे हैं कि गांव में नहर का निर्माण किया जाए। लेकिन इस मांग को मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंचने दिया जा रहा है। किसान चेतना और कबड्डी के जोश के बीच झूलती यह फिल्म ‘जय किसान जय कबड्डी’ के नारे में फंस जाती है और उससे आखिर तक निकल नहीं पाती।

यह 2009 की तमिल फिल्म ‘वेनिला ओ कबड्डी कुजु’ का रिमेक है। यह कई जगहों पर दिल को छूती है खासकर जहां कबड्डी के दृश्य हैं। लेकिन जहां किसान संघर्ष आता है, नहर निर्माण को लेकर लड़ाई की बात आती है और मुख्य किरदार विजय (निशान) के पिता की यादों को समेटती यह कई जगहों पर भावना की जगह आंसुओं को तरजीह देने लगती है।

‘जय कबड्डी और जय किसान’ का नारा भी आपस में खूबसूरती से मिलाया जा सकता है जैसे ‘लगान’ में क्रिकेट और किसान चेतना को मिलाया गया था। लेकिन ‘बदलापुर बॉयज’ के निर्देशक के पास वह कलात्मक दृष्टि नहीं है। इसलिए अच्छे विषय को उठाने के बावजूद यह लचर फिल्म ही बन सकी है।