Ramayan Episode 8 April 2020: अद्भुत है महिमा दो अक्षर के नाम की-‘राम’। श्री राम अनुज लक्ष्मण सहित हनुमान, सुग्रीव, अंगद और पूरी वानर सेना को लिए सीता की खोज में निकल पड़े हैं। मानवरूपी ‘श्रीराम’ के सामने अभी और चुनौतियां आने वाली हैं। सुग्रीव के किश्किंधापति बनते ही वानरपति कहते हैं कि अब प्रभु मां सीता को खोजने की बारी है। लेकिन तभी श्रीराम कहते हैं कि अभी हमें 4 माह रुकना पड़ेगा। चौमास शुरू हो चुका है। भारी वर्षा में ये काफी कठिन होगा। सीता की खोज वो सब मिलकर कार्तिक माह से शुरू करेंगे। इन चार महीनों में सुग्रीव अपना पूरा समय अपने राज्य को दें। राम ने बताया कि अगले 4 महीने वो गिरि पर्वत पर वास करेंगे। वहीं सुग्रीव अपने राज्य के साथ सेना तैयारी में जुटेंगे।
ज्ञात हो, रामायण में इससे पहले बाली वध दिखाया गया था। श्रीराम चंद्र ने अपने पावन बाण से बाली के प्राण हर लिए थे। वहीं बाली ने पहले छोटे भाई सुग्रीव को अपनी मृत्यु का जिम्मेदार ठहराया था। बाली ने श्रीराम को भी श्राप देने की कोशिशकी थी। लेकिन श्रीराम ने बाली को कहा कि वह तो धर्म और कर्म की बात न ही करे तो अच्छा। बाली ने हमेशा अभिमान दिखाया छोटे भाई को छोटा दिखाया, उसकी पत्नी भी हरली। क्या यह पाप नहीं श्रीराम ने जब बाली के आगे उसका समस्त जीवन रखा तब बाली राम के चरणों में गिर गया औऱ अपने पापों से मुक्त होने की आज्ञा मांगी। आज के एपिसोड में क्या होगा जानिए…
Highlights
रावण की बातों को सुनकर क्रोधित सीता उससे कहती हैं कि वो एक बड़े कुल में जन्मी हैं और उनकी पूरे विधि-विधान से उनका परिणय राम के साथ हुआ है। रोष से भरी हुई सीता रावण से कहती हैं कि एक तुम्हारे पाप के कारण पूरे विश्व से राक्षसों का सर्वनाश हो जाएगा।
इधर शाम होने पर हनुमान जी अशोक वाटिका की तरफ पहुंचते हैं। और देखते हैं कि राक्षसनियां मशाल जलाकर सीता के आसपास खड़ी हो जाती है। तभी लंका नरेश रावण मंडोदरी के साथ वहां पहुंचते हैं। इतने में माता सीता फिर से हाथ में तिनका रख लेती हैं। सीता की तारीफ करते हुए रावण कहता है कि ये जगह तुम्हारे लिए नहीं है। लोभ देकर, डरा-धमका कर हर तरह से रावण सीता को मनाने की कोशिश करता है।
इधर अंगद जामवंत से कहते हैं कि हनुमान तो अब तक लंका पहुंच गए होंगे, पता नहीं माता सीता के दर्शन उन्हें हुए होंगे या नहीं। इस पर जामवंत कहते हैं कि जो लोग भक्ति, श्रद्धा और दृढ़ संकल्प के साथ अपने कर्तव्य की ओर बढ़ते हैं उन्हें लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है।
पूरी तसल्ली के बाद हनुमान जी ने विभीषण को अपना परिचय दिया, साथ ही, भक्ति से जुड़े ज्ञान भी साझा किया। माता सीता के बारे में पूछने पर विभीषण कहते हैं कि आपने ये कैसे सोच लिया कि माता सीता रावण के महल में रहती होंगी। वो उन्हें अशोक वाटिका के बारे में बताते हैं।
पूरे महल में हनुमान सीता की खोज में विचरते हुए विभीषण के कक्ष के पास आकर रुकें जब उन्होंने सुना कि विभीषण राम नाम का जाप कर रहे हैं तो वो भी उनका नाम जपने लगे। भेष बदलकर हनुमान विभीषण से मिले और उनका परिचय पूछने लगे। इस पर विभीषण उनसे कहते हैं कि वो राक्षस कुल के ही हैं लेकिन भगवान राम के भक्त हैं। वो कहते हैं कि वो लंका में ठीक उसी प्रकार रहते हैं जैसे दांतों के बीच जिह्वा रहती है। उन्होंने कहा कि तीनों ही भाइयों ने ब्रम्हा जी को तप के जरिये प्रसन्न किया। विभीषण ने कहा कि दोनों ही भाइयों ने शक्ति मांगी और मैंने नारायण की भक्ति
सारी बाधाओं को पार कर शाम होते-होते बजरंगबली लंका नगरी पहुंच गए। लंकिनी यानि कि लंका की रक्षा करने वाली देवी से मिलें हनुमान। यहां आने का कारण पूछने पर हनुमान कहते है कि वो तो बस लंका घूमने आए हैं। राक्षसी के मना करने पर हनुमान ने गदा से उस पर हमला किया। इसके बाद लंकिनी ने कहा कि वो उन्हें पहचान गई, ब्रम्हा ने रावण को वर देने के साथ ही उन्हें लंका की रक्षा करने का वर दिया था। ये पूछने पर कि उन्हें कब तक इसकी रक्षा करनी पड़ेगी तो ब्रम्हा ने कहा कि जब तुम एक वानर से परास्त हो जाओगी तो समझ लेना कि अब लंका नरेश का अंत संभव है।
हनुमान जी न राक्षसी को मुंह खोलने के लिए कहा और अपने कद को बड़ा और फिर छोटा करके उनके मुख के अंदर जाकर बाहर निकल गए और उनसे कहते हैं कि मैने तुम्हारी बात मान ली। अपने असली रूप में आकर नागलोक की देवी ने बताया कि देवताओं ने उन्हें हनुमान जी की परीक्षा लेने भेजा है।
मैनाक पर्वत को पार करके हनुमान जी आगे बढ़ते हैं और उनके सामने आती हैं राक्षसी सुरसा। हनुमान जी उनसे पूछते हैं कि तुम कौन हो तो सुरसा कहती हैं कि आज देवताओं ने तुम्हें मेरा आहार बना कर भेजा है। इस पर हनुमान ने कहा कि मैं तो राम जी का कार्य करने जा रहा हूं। सुरसा कहती है कि भूखे को खिलाना ही धर्म है। हनुमान सुरसा क वचन देते हैं कि श्री राम का कार्य पूरा होते ही वो उनके आहार बन जाएंगे। राक्षसी हनुमान से कहती है कि उसे ब्रम्हा का वरदान प्राप्त है कि उन्हें लांघकर कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता।
पर्वत बताते हैं कि उनके पिता पवन ने एक बार उनकी मदद की थी जिस वजह से वो उनके ऋणी हैं और हनुमान जी की मदद करने को इच्छुक है। वो बजरंगबली से कहते हैं कि वो कुछ देर वहीं पर विश्राम कर लें, लेकिन हनुमान जी उनके इस आग्रह को मना कर देते हैं और कहते हैं कि राम जी के कार्य को पूरा किये बिना वो आराम नहीं कर सकते।
पूरी वानर सेना हनुमान जी की वीनती करने में लीन थी, अपने बल को कछु ध्यान करो... हर किसी की जुबान पर बस यही बात थी। इधर, बजरंगबली को धीरे-धीरे अपनी शक्तियां याद आने लगी। जामवंत राम की परेशानी को दूर करने के लिए कहते हैं, साथ ही कहते हैं कि लंका जाकर सिया की सुधि लेकर आओ। उसके पश्चात, अपने विशालकाय कद को धारण कर पवन पुत्र हनुमान लंका के लिए उड़ान भरते हैं।
जामवंत ने हनुमान को उनकी शक्तियां याद दिलाई और कहा कि अपने अंदर उठती उमंगों से सागर पार कर लो। इधर, अंगद समेत सभी वानर सेना हनुमान को जगाने की कोशिश में जुटे हुए थे।
बाल अवस्था में जब हनुमान जी ने भगवान सूर्य को फल समझकर खा लिया था, इसके अलावा भी नटखट हनुमान कई बार ऋषि-मुनियों को परेशान किया करते थे। एक बार क्रोध में आकर ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि वो अपनी समक्ष शक्तियों को भूल जाएंगे। जैसे ही इस बात की जानकारी माता अंजनि ने ऋषिवर से माफी मांगी। तब ऋषि ने उपाय बताया कि जब बहुत जरूरत आनप पड़ेगी और कोई याद दिलाएगा तो उन्हें उनकी शक्तियां याद आ जाएंगी।
अपनी दैव्य शक्ति भूल गए हनुमान.. भगवान शिव के 11वें रुद्र कुछ तो याद करो। सब हनुमान को याद दिलाते हैं। हनुमान को याद दिलाया जाता है कि उनका नाम हनुमान कैसे पड़ा। सूर्यदेव ने नन्हे हनुमान पर प्रहार किया था। श्राप की वजह से वह सब भूल गए हैं। ऋषि् मुनियों को अपने नटखटपन से परेशान किया करते थे। तब एक ऋषि मुनि ने तुम्हें श्राप दिया था कि तुम इस शक्ति को भूल जाओ। माता अंजनि ने ऋषिवर से तुम्हें माफ करने के लिए कहा। तब ऋषि ने उपाय बताया कि जब बहुत जरूरत आनप पड़ेगी और कोई याद दिलाएगा तो उन्हें उनकी शक्तियां याद आ जाएंगी।
इधर सुग्रीव परेशान हैं कि पूर्व, पश्चिम औऱ उत्तर में भेजी गईं सेना की टुकड़ियां निराश कर वापस लौट रही हैं अब तो हनुमान और अंगद की टुकड़ी से उम्मीदें हैं। यहां हनुमान तट पर बैठे सेना से बात कर रहे हैंकि वह कैसे सफल हों इस कार्य में। ऐसे में सब कहते हैं कि माता सीता कहांल है ये ठिकाना हमें पता है। तो बस वहां जाना है औऱ माता सीता को सब बताना है। लेकिन फिर एक सवाल आता है कि 400 कोस का समंदर कौन पार कर जाएगा?
गिद्ध बताते हैं कि जो इस अथाह सागर को पार करेगा वही लंका पहुंच सकेगा। ऐसे में आपको अपनी शक्तियों का प्रयोग करना होगा। सीता की व्यथा जानने के बाद हनुमान का मन और व्याकुल होजाता है। कैसे लंका पहुंचा जाए, इस बारे में सभी सोचने लगते हैं।
पक्षीराजन ने बताया कि उन्होंने भी देखा था कि एक वायुयान जा रहा है। अवश्य ही उसमें मां सीता होंगी। इसके बाद गिद्ध अपनी दिव्य दृष्टि से पता करते हैं कि सीता कहां हैं। वह बताते हैं कि सीता इस वक्त एक वृक्ष के नीचे बैठ गहरी चिंता में डूबी हैं।
महासागर तट पर वानर सेना को एक गिद्ध मिलता है। वह कहता है कि इस तट पर कोई नहीं था। इतने सारे वानर मेरे लिए भोजन के तौर पर आए हैं। तभी हनुमान कहते हैं कि वापस जाना नहीं है और यहां तट पर हम ऐसे ही प्राण त्याग देंगे क्योंकि हम श्रीराम को दिए वचन को पूरा नहीं कर पाए। ऐसे में कोई तो हमारे शरीर को नाश करेगा ही। तो ये ही सही। इस बीच हनुमान जटायु का जिक्र करते हैं। तभी गिद्ध के कान खड़े हो जाते हैं। गिद्ध बताता है कि जटायु तो मेरा भाई है। क्या हुआ उसको। तब हनुमान बताते हैं कि मरते मरते जटायु ने ही श्रीराम को सीता मां का हाल बताया था। इसके बाद गिद्ध रो पड़ता है।
सीता मां का खोज में महासागर तट पहुंची वानर सेना असहाय
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वानर सेना की टुकड़ी का साहस टूटने लगता है। लेकिन वह कहते हैं कि हम अपना साहस नहीं छोड़ सकते। सब सोचने लगते हैं कि अगर बिना सीता मां की खबर के वापस गए तो लक्ष्मण छोड़ेंगे नहीं। तभी अंगद कहते हैं कि मै वापस नहीं जाऊंगा मैं यहीं अपने प्राण त्याग दूंगा।
माता हनुमान औऱ अंगद सहित पूरी वानर सेना को आंख बंद करने को कहती हैं । आंखें मूंदते ही वह महासागर तट पर पहुंच जाते हैं। अब हनुमान और सेना भव सागर पार कर कैसे जाएं? इस सोच में सब पड़ जाते हैं।
महामानवी महादेवी ने वानर सेना की भूख मिटाई, इसके लिए वानर सेना ने अन्नपूर्णा को धन्यवाद कहा। इसके बाद वह गुफा से बाहर निकलने का रास्ता पूछते हैं। अन्नपूर्णा कहती हैं कि वह सीता माता तक पहुंचने में उनकी मदद करेंगी। वह उन्हें आंखे बंद करने के लिए कहती हैं।
हनुमान अपने साथ अंगद को ले जाते हैं। रास्ते में उन्हें एक मायावी ऋषि मिलती हैं। वह पहचानती हैं- किश्किंधा का वीर वानरबल। हनुमन्त कहते हैं- आपने हमें पहचान लिय़आ आप बताएं आप कौन हैं? वह बताती हैं कि वह अन्नापूर्णा हैं। हनुमान औऱ सेना को वह भोजन कराने आई हैं।
सुग्रीव अपनी सेना को कहते हैं कि 'हम सब यहां क्यों उपस्थित हैं ये सब आप भलीभांति जानते हैं। हमारा गठबंधन कोई राजनीतिक गठबंधन नहीं है। श्रीराम ने अपना वजन पूरा किया है अब हमारी बारी है। अब हमें वानर मित्रता की लाज रखनी है और मां सीता को वापस लाना है।'
श्रीराम चंद्र हनुमान को आज्ञा देते हैं वह दक्षिण दिशा जाएं और जानकी का पता लगाएं। ब्रह्मा विष्णु महेश तुम्हें सफल करें।
बाली वध के पश्चात सुग्रीव कहते हैं कि वे अब राजा नहीं बनना चाहते हैं बल्कि तपस्या कर पाप का प्रायश्चित करना चाहते हैं। सुग्रीव की इस बात पर राम उन्हें समझाते हैं कि ये प्रायश्चित का भाव ही तुम्हें सच्चा पुरुष बनाता है। वहीं सुग्रीव संन्यासी बनने की बात कहते हैं। सुग्रीव को राम समझाते हुए कहते हैं, 'सन्यासी से अच्छा राजा और कौन हो सकता है। जिसे सिंघासन और सत्ता का लोभ ना हो वही न्याय कर सकता है। जिसे काम की इच्छा नहीं होगी वही तपस्वी की भांति जन कल्याण में मग्न रहेगा। सन्यासी की भांति ही कुछ भी ना अपना होगा ना ही पराया होगा। वह ईश्वर और प्रजा से एक जैसा बर्ताव करेगा। इसलिए राजा को ईश्वर माना गया है।'