Ramayan Episode 3 April 2020,Updates: चित्रकूट में श्री रामचंद्र को मनाने पूरा अयोध्या आ पहुंचा है। राजा जनक भी अपनी बेटी सीता को देखने वन आ पहुंचे हैं। इधर, भरत लगातार श्रीराम से वापस अयोध्या चलने की गुहार लगा रहे हैं। लेकिन श्रीराम अपने धर्म को ध्यान में रख कर जस के तस वहीं अटके हैं। वह पिता के वचन को पूरा करने के लिए अड़िग हैं।
आपको बता दें कि देश में इन दिनों कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन का ऐलान किया गया है इसी बीच सरकार ने एक बार फिर से रामायण का प्रसारण शुरू किया है। दूरदर्शन पर रामानंद सागर की रामायण का रिपीट टेलीकास्ट चल रहा है। रामायण के री-टेलीकास्टिंग से दर्शक बेहद खुश हैं।
गौरतलब है कि पिछले एपिसोड में दिखाया गया था- पुत्र वियोग में दशरथ प्राण त्याग चुके हैं।अयोध्या के राजगुरू वशिष्ठ, दशरथ के मंत्री सुमंत्र को आदेश देते हैं कि दूत भेज कर भरत और शत्रुघ्न को अयोध्या से वापस बुलवाया जाए। दूत रवाना होता है।
भरत और शत्रुघ्न ननिहाल में हैं। वहीं भरत को अयोध्या में किसी अनहोनी की आशंका सताती है। तभी उन्हें खबर मिलती है कि अयोध्या से दूत आया है। वह घबरा जाते हैं। तुरंत दूत से मिलते हैं।
तब तक दशरथ के पार्थिव शरीर को विशेष तेल और औषधि से भरी नौका में डुबा कर रखा जाता है, ताकि शव को सुरक्षित रखा जा सके। दूत अयोध्या में जो कुछ हुआ है, उसके बारे में कोई जानकारी दिए बिना भरत को गुरू वशिष्ठ का आदेश सुनाते हैं कि उन्हें शीघ्र बुलाया गया है। नाना और मामा से इजाजत लेकर भरत और शत्रुघ्न अयोध्या के लिए रवाना होते हैं।
अयोध्या में प्रवेश करते ही प्रजा भरत को धिक्कार भरी नजरों से देखती है। इस बीच रानी कैकेयी की दासी मंथरा भरत को दशरथ के पास जाने से पहले कैकेयी के कक्ष में ही बुलवा लेती है। कैकेयी के कक्ष में वहां भरत को उनकी गैरहाजिरी में हुई राम-लक्ष्मण-सीता के वनवास और पिता के स्वर्गवास और इसके पीछे की कहानी पता चलता है। भरत कैकेयी से सारा रिश्ता तोड़ने का ऐलान कर वहां से कौशल्या के कक्ष में पहुंचते हैं।
कौशल्या भरत से राजा होने के नाते खुद को वन भेजने का आज्ञा मांगती हैं। भरत इनकार कर देते हैं और कहते हैं कि वह श्रीराम को वन से वापस लाएंगे।इस बीच गुरू वशिष्ठ राजा दशरथ की अंत्येष्टि की तैयारी करवाते हैं और भरत को अंतिम संस्कार के लिए तैयार करवाते हैं।
राजा दशरथ का अंतिम संस्कार होता है और उनकी अस्थियां यमुना में प्रवाहित की जाती हैं। इसके बाद गुरू वशिष्ठ भरत को शोक नहीं करने और अयोध्या का राजभार संभालने के लिए कहते हैं। आज के एपिसोड में क्या होगा आइए जानते हैं…
Highlights
एक बार भगवान शिव का विवाह देखने के लिए सभी उत्तर में पहंच गए। तो पृथ्वी का भार एक तरफ हो गया। ऐसे में आगस्त्य को भगवन ने कहा कि वह पश्चिम में जाएं तब जाकर पृथ्वी का संतुलन ठीक हुआ। शिव जी ने खुद माहर्षि को तमिल भाषा सिखाई थी।
माहर्षि आगस्त्य के आश्रम पहुंचे श्रीराम: श्रीराम बताते हैं कि इन्होंने एक बार सातों समुद्रों का पानी अपनी अंजुली में रख पी लिय़ा था क्योंकि समुंद्र के अंदर असुर औऱ राक्षिस छइपे थे। वह बाहर आकर लोगों को परेशान करते थे औऱ फिर छिप जाते थे। देवों ने माहर्षि से प्रार्थना की तो उन्होंने ये कार्य किया। जब समंदर का पानी सूखा तब राक्षकों को भी साफ किया गया।
जहां जीवन है वहीं मृत्यु है, सुख पकड़ने जाओगे तो दुख को हाथ में पाओगे।
जैसे वर्षा का जल सब पेड़ पौधों पर एक समान पड़ता है लेकिन पत्ते फूल अलग आकार औऱ रंग केनिकलते हैं। वैसे ही इंसान भी अलग होते हैं।
पत्थर में लिखा कभी नहीं मिटता, न ही पानी में लिखा ठहरता है। क्रोध को पानी जैसा होना चाहिए।
हर एक प्राणी भगवान का अवतार है। लेकिन अपने माया जाल में फंस कर वह फंस जाता है। स्वंय को पहचान कर इससे बचा जा सकता है।
असुरों को सबक सिखाने के लिए श्रीराम चंद्र ने अपने कांधे से बाण उतारा और चला दिया राक्षसों पर। अत्याचारी असुरों पर रामबाण गिरे औऱ सारे राक्षसों का सफाया हो गया।
तपस्वी, साधु ,महात्मा श्रीराम के पास अपना दुख लेकर आए। असुर शक्तियां मांस खाकर हड्डियां उनके समीप फेंक देते हैं। ऐसे में ऋषि मुनी श्रीराम को बताते हैं। श्रीराम उन्हें वचन देते हैं कि वह राक्षसों को सबक सिखाएंगे और दंड देंगे।
विशाल राक्षस ने मां सीता को अपने हाथ से पकड़ लिया। तभी श्रीराम ने राक्षस के दोनों हाथ काट दिए,
श्रीराम चंद्र जी सीता माता और लक्ष्मण के साथ चित्रकूट से आगे बढ़ते हैं। रास्ते में तीनों को एक राक्षस मिलता है। वह कहता है कि 'मैं तुम जैसे मुनियों का मांस खाता हूं, एक सुन्दरी को अपनी पत्नी बनाऊंगा।'
अनुसूया सीता से कहती हैं- दवता कई प्रकार से नारी की परीक्षा लेते हैं, लेकिन जो नारी अड़िग रहती है वह सफल होती है। वह कहती हैं- मुझे ये जानकर अच्छा लगा कि तुम वन में जाते हुए अपने पति का साथ दे रही हो। सुख में तो सब साथ देते हैं जो दुख में साथ दे वह पत्नी कहलाती है। वह आगे कहती हैं- भविष्य में स्त्रियां तुम्हें ही पतिव्रता का प्रतीक मानेंगी।
राम सीता औऱ लक्ष्मण ने किए अनुसूया के दर्शन। अनुसूया की वजह से ही मंदाकिनी उत्पन्न हुई थीं। श्रीराम बताते हुए कहते हैं 'जाओ सीता इनके साथ।'
सीता की मां अपनी बेटियों को सीख देते हुए कहती हैं- किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर भी बातों में आकर कभी अपना परिवार खराब मत करो। ज्ञात हो मंथरा और कैकई का उदाहरण देते हुए वह ये कहती हैं। वह ये भी कहती हैं कि तुम कैकई का खयाल रखना वह पश्चाताप की आग में जल रही हैं। उनका विशेष खयाल रखें।
सीता ने हम सब नारियों का मान बढ़ा दिया है- कौशल्या कहती हैं, वह कहती हैं कि इतिहास में सीता को पत्नीवृता माना जाएगा।
सीता ने हम सब नारियों का मान बढ़ा दिया है- कौशल्या कहती हैं, वह कहती हैं कि इतिहास में सीता को पत्नीवृता माना जाएगा।
श्री रामचंद्र औऱ लक्ष्मण दूसरी तरफ भरत
भरत के मनाने पर भी नहीं माने प्रभु राम। भर ने भैयाराम की पादुका को अपने सिर पर रखा औऱ मनाने की कोशिश की। लेकिन श्रीराम अपने पिता के वचन को पूरा करने सेपैर पीछे नहीं खींच रहे।
राम अपने पिता के परम धाम सिधारने की बात सुनकर बहुत आहत होते हैं। राम और लक्ष्मण मन्दाकिनी नदी में जाकर पिता के लिए तर्पण करते हैं।'हे पुण्य आत्मा, तृप्त करें हम तुम्हें तिलांजलि द्वारा,आत्मशांति के लिए...दुग्ध, धी जल में डाले धारा ,हे स्वर्गीय पितामह तर्पण हो स्वीकार हमारा..'
चित्रकुट में भरत राम के कुटिया में पहुंचते हैं और राम के चरणों में गिर जाते हैं। लक्ष्मण को लगता है कि भरत पूरे सैन्य बल के साथ राम की हत्या करने आ रहा है लेकिन राम को अपने भाई भरत पर तनिक भी संदेह नहीं है।
निषाद से यह पता चलने पर कि उनके भैया राम घास पर सोकर रात बिताए वह बेहद दुखी होते हैं और आगे की यात्रा पैदल चलकर तय करते हुए चित्रकुट की ओर निकल पड़ते हैं। 'गंगा तीर पांवरी त्यागी,नंगे पांव चला रे वैरागी...'
भरत अपने भैया राम को मनाने वन चल पड़ते हैं। 'भरत चला रे अपने राजा को मनाने,भगत चला रे प्रभु दर्शन पाने,अवध को राम को अर्पण करने, प्रभुता प्रभु चरणों में धरने, राजतिलक के साज सजा के,माताएँ चली संग प्रजा के...'
भरत अपने भैया राम को मनाने वन चल पड़ते हैं
भरत चला रे अपने राजा को मनाने,
भगत चला रे प्रभु दर्शन पाने,
अवध को राम को अर्पण करने,
प्रभुता प्रभु चरणों में धरने,
राजतिलक के साज सजा के,
माताएँ चली संग प्रजा के...
निषाद से यह पता चलने पर कि उनके भैया राम घास पर सोकर रात बिताए वह बेहद दुखी होते हैं और आगे की यात्रा पैदल चलकर तय करते हुए चित्रकुट की ओर निकल पड़ते हैं।
गंगा तीर पांवरी त्यागी,
नंगे पांव चला रे वैरागी...
चित्रकुट में भरत राम के कुटिया में पहुंचते हैं और राम के चरणों में गिर जाते हैं। लक्ष्मण को लगता है कि भरत पूरे सैन्य बल के साथ राम की हत्या करने आ रहा है लेकिन राम को अपने भाई भरत पर तनिक भी संदेह नहीं
राम अपने पिता के परम धाम सिधारने की बात सुनकर बहुत आहत होते हैं। राम और लक्ष्मण मन्दाकिनी नदी में जाकर पिता के लिए तर्पण करते हैं।
'हे पुण्य आत्मा, तृप्त करें हम तुम्हें तिलांजलि द्वारा,
आत्मशांति के लिए...दुग्ध, धी जल में डाले धारा ,
हे स्वर्गीय पितामह तर्पण हो स्वीकार हमारा..'