Ramayan 17th April Episode: राम और रावण के बीच का युद्ध दर्शकों को काफी रोमांचित कर रहा है। रामायण में राम की विजय और रावण के अंत को अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की विजय से जोड़ कर देखा जाता है। रामायण में इस समय राम और रावण के बीच यानी अधर्म और धर्म के बीच युद्ध छिड़ चुका है। दोनों ही सेनाओं के बीच के इस युद्ध को दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि लोगों की मांग पर इस दृश्य को शाम के एपिसोड में दोबारा दिखाया जाएगा।
सुबह के एपिसोड में आपने देखा कि श्रीराम लक्ष्मण को विभीषण के साथ जाने की आज्ञा देते हैं ताकि इंद्रजीत का महा यज्ञ विफल कर सकें। ऐसे में विभीषण लक्ष्मण, हनुमान सुग्रीव और अंगद को लेकर लंका की कुल देवी के मंदिर पहुंचते हैं। विभीषण की वजह से एकबार फिर रावण को मुंह की खानी पड़ती है। इन्द्रजीत जब ये देखता है तो वह बहुत नाराज होता है। इसके बाद भयानक युद्ध होता है। मेघनाद इंद्रजीत अपने पिता रावण से कहता है कि लक्ष्मण ने आज जो कुछ किया वो कोई आम इंसान नही लगता है ऐसा लगता है कि वो देव पुरुष है।
इन्द्रजीत अपने पिता रावण से कह रहा है कि राम स्वंय नारायण का रूप है इसलिए मैं आपसे अपने अनुभव से कह रहा हूं कि अभी भी आपके पास समय है सीतामोह त्याग कर राम की शरण में चले जाएं। मुझे इस बात पर पूरा यकीन है कि ये नर नही बल्कि नारायण का रूप हैं। लेकिन रावण अपना अहंकार दिखाता है।
इन्द्रजीत इस बीच अपने पिता को भी काफी समझाने की कोशिश करता है लेकिन रावण बात नही मानी। रावण कहता है कि हर परिस्थिति में वह अपने पिता के साथ है। इसके बाद वह युद्ध भूमि में जाता है। एक बार फिर से भयानक युद्ध छिड़ता है जिसमें इंद्रजीत की पराजय होती है।
अब लंका में शोक की लहर दौड़ पड़ती है। श्रीराम आदर के साथ महाबली इंद्रजीत का शव वापस करते हैं। रावण पुत्र का शव देख बौखला जाता है। इसके बाद वह राम और लक्ष्मण को मारने की ठानता है, आगे देखिए क्या होता है:-
Highlights
रावण अपने विजय रथ पर आता है जिसे देवता देख कहते हैं रावण के पास विजय रथ पर आया है वहीं श्रीराम नंगे पांव आए हैं। ब्रह्मा के कहने पर इंद्रदेव अपना दिव्य रथ श्रीराम को देते हैं ताकि युद्ध बराबरी का हो सके। इंद्र का रथ भूमि पर आता है। श्रीराम सहित लक्ष्मण देखते हैं कि यह रथ किसका है। देवराज इंद्र का सार्थी रथ लेकर श्रीराम के पास आता है। श्रीराम कहते हैं कि हमने इंद्र देव से कोई सहायता नहीं मांगी। तभी सार्थी बताते हैें क ब्रह्मा जी की आज्ञा से रथ आपके पास भेजा गया है। लक्ष्मण कहते है भैया ये मायावी राक्षसों की चाल भी हो सकती है। तब सार्थी प्रमाण देते हैं कि वह देवों का रथ है। विभीषण कहते हैं संकोच त्याग कर प्रवेश करें स्वामी। श्रीराम ब्रह्मा स्मरण कर उन्हें प्रणाम करते हैं औऱ रथ की प्रतक्षणा कर रथ पर विराजमान होते हैं। रथ को रणभूमि के बीचोबीच ले जाया जाता है...
सूर्योदय के बाद शंखनाद के साथ राम और रावण पुनः रणभूमि में आमने सामने होते हैं। रावण कहता है वह मिट जाएगा पर झुकेगा नहीं। रावण भगवान शंकर के सामने कहता है कि जिस राम का तुम साथ दे रहे हो उसे भी देखने दो कि उसका मुकाबला किससे है। युद्ध भूमि में हर हर महादेव और जय लंकेश के नारे लगने लगते हैं। देवी देवते देख कर कहते हैं कि रावण अपने विजय रथ पर आया है। वहीं श्रीराम नंगे पांव आए हैं युद्ध करने। इंद्रदेव अब अपना रथ श्रीराम को देते हैं ताकि युद्ध बराबरी का हो सके।
सूर्यास्त के बाद युद्ध समाप्ति की घोषणा हो जाती है। राम के शरीर पर युद्ध में मिले घाव को देख लक्ष्मण काफी रुआंसे हो जाते हैं और इसके लिए खुद को दोषी बताते हैं। वह कहते हैं कि अगर उस दिन भाबी सीता को छोड़कर नहीं जाता तो ये दिन नहीं देखना पड़ता। राम कहते हैं कि देखना कल का युद्ध ऐसा होगा कि ये युद्ध अमिट अक्षरों में लिखा जाएगा..
श्रीराम उस शक्ति आघात को खुद पर ले लेते हैं। रावण चकित रह जाता है। रावण कहता है कि तुम विभीषण से दोस्ती निभा रहे हो वाह। अब विभीषण गुस्से मे आ जाते हैं तभी वह रावण पर शस्त्रलेकर बरस पड़ते हैं। विभीषण का साथ देने के लिए हनुमान जामवंत सुग्रीव और अंगद भी आ जाते हैं। रावण पर गदा से सुग्रीव प्रहार कर देते हैं जिससे वह थोड़ी देर के लिए मुर्छित हो जाता है। रावण का सारथी परिस्थिति को देख रथ पीछे हटा लेता है जिसपर रावण काफी क्रोधित हो जाता है।
रावण विभीषण को देख क्रोधित हो जाता है और अपने भाई पर शक्ति आघात करता है और कहता है कि इससे तुझे ब्रह्मा भी नहीं बचा पाएंगे। वहीं विभीषण पर आए शक्ति आघात को राम अपने उपर ले लेते हैं। और राम थोड़ी देर के लिए मूर्छित अवस्था में आ जाते हैं।
राम और रावण के बीच तीर और धनुष के जरिए अपनी शक्तियों का प्रदर्शन कर रहे होते हैं। काफी देर तक चले इस शक्तिप्रदर्शन के बाद विभीषण राम के कान में कुछ बोलते हैं जिसे देख रावण काफी क्रोधित हो जाता है।
हनुमान और रावण के बीच युद्ध होता है। रावण केसरी नंदन से कहता है जाओ अपने स्वामी को भेजो। रावण के सामने लक्ष्मण आते हैं जिन्हें देख रावण कहता है- तेरे काल मेरे सामने ले आया है। मेरे पुत्र के हत्यारे आज तेरा मस्तक काट अपनी छाती ठंडक करूंगा। इसके बाद रावण और लक्ष्मण में भयानक युद्ध होता है।
शाम के एपिसोड में सुबह के दिखाए दृश्यों को ही प्रसारित किया जा रहा है। रावण रणभूमि में युद्ध के लिए आता है। मायावी रावण से युद्ध करने को लेकर विभीषण चिंतित होते हैं और राम से कहते हैं आपके पास रथ और कवच नहीं है कैसे जीतेंगे रावण से? राम कहते हैं उनके पास दृढ़ रथ है।
रामायण में इस समय राम और रावण के बीच यानी अधर्म और धर्म के बीच युद्ध छिड़ चुका है। दोनों ही सेनाओं के बीच के इस युद्ध को दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि लोगों की मांग पर इस दृश्य को शाम के एपिसोड में दोबारा दिखाया जाएगा। राम और रावण के बीच युद्ध छिड़ चुका है
श्रीराम रणभूमि में जाने की आज्ञा देते हैं। सार्थी इंद्र के रथ को रणभूमि के बीचों बीच ले जाकर खड़ा कर देता है। हनुमान आक्रमण करने को कहते हैं। भीषण युद्ध छिड़ जाता है। राक्षस औऱ वानर एक दूसरे पर प्रहार करने लगते हैं। हाहाकार मच जाता है।
इंद्र का रथ भूमि पर आता है। श्रीराम सहित लक्ष्मण देखते हैं कि यह रथ किसका है। देवराज इंद्र का सार्थी रथ लेकर श्रीराम के पास आता है। श्रीराम कहते हैं कि हमने इंद्र देव से कोई सहायता नहीं मांगी। तभी सार्थी बताते हैें क ब्रह्मा जी की आज्ञा से रथआ आपके पास भेजा गया है। लक्ष्मण कहते है भैया ये मायावी राक्षसों की चाल भी हो सकती है। तब सार्थी प्रमाण देते हैं कि वह देवों का रथ है। विभीषण कहते हैं संकोच त्याग कर प्रवेश करें स्वामी। श्रीराम ब्रह्मा स्मरण कर उन्हें प्रणाम करते हैं औऱ रथ की प्रतक्षणा कर रथ पर विराजमान होते हैं।
रावण मिट जाएगा पर झुकेगा नहीं। रावण भगवान शंकर के सामने कहता है कि जिस राम का तुम साथ दे रहे हो उसे भी देखने दो कि उसका मुकाबला किससे है। युद्ध भूमि में हर हर महादेव और जय लंकेश के नारे लगने लगते हैं। देवी देवते देख कर कहते हैं कि रावण अपने विजय रथ पर आया है। वहीं श्रीराम नंगे पांव आए हैं युद्ध करने। इंद्रदेव अब अपना रथ श्रीराम को देतेहैं ताकि युद्ध बराबरी का हो सके।
सूर्योदय के साथ रावण तैयार होता है। रावण कहता है कि आज तय होगा कि कौन युद्ध जीतेगा। मंदोदरी कहती है कि नाथ आप मेरे जीवन का आधार हैं, सोचिए जरा। रावण कहता है कि अगर राम नारायण है तो मैं राम को मारने के लिए तैयार हूं। मंदोदरी कहती है कि प्राणनाथ मंगल तिलक तो करवाते जाइए। अब मंदोदरी के हाथ कांपने लगते हैं। तभी मंदोदरी के हाथ से आरती की थाली गिर जाती है।
रावण अकेले बैठ कर सोच में पड़ जाता है। वहां लक्ष्मण और श्रीराम को भी नींद नहीं आ रही। ये रात अंतिम है और भारी भी है। कोई सो नहीं पा रहा। सब सोच रहे हैं कि कल युद्धभूमि में क्या होने वाला है। मंदोदरी सोच सोच कर परेशान है कि कल क्या परिणाम आने वाला है युद्ध का। धर्म से पाप कब तक लड़ेगा। या तो झुकना पड़ेगा या मिटना पड़ेगा। ये सब सोच सोच कर परेशान हो रही है लंकेशवर की पत्नी। इधर, सीता धीरज की अंतिम कड़ी में करवटें ले रही हैं। सीता कह रही हैं अब तो आजाओ राम अब मैं रो रो के कहीं मर न जाऊं।
इधर मंदोदरी रावण के घावों को सहला रही है और उनमें दवा लगा रही है। मंदोदरी एक बार फिर समझाती है कि स्वामी एक बार फिर विचार करें। केवल आपसे पूछना चाहती हूं कि आप ये युद्ध क्यों करना चाहते है? रावण कहता है कि विजय के लिए। यश औऱ कीर्ती के लिए। मंदोदरी कहती है कि वह विजय पताका फहराने के लिए क्या कोई बचा है? स्वामी सोचिए। क्या इसी विजय के लिए अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं आप? जितने लोग बचे हैं उन्हें बचा लीजिए स्वामी।
श्रीराम विश्राम करते हैं तभी लक्ष्मण भैया के घावों पर दवा लगाते है। श्रीराम कहते हैं ऐसा लग रहा है मानों स्वंय मां लगा रही हों। लक्ष्मण कहते हैं कि भैया इस सब की जड़ मैं हूं भैया मैं मां सीता को छोड़ कर आपके पीछे न आता तो आज ऐसा न होता। श्रीराम कहते हैं परिणाम स्वरूप समाज का कितना कल्याण होना था यह तय है। रावण के अत्याचार सेस मुक्ति के लिए ये सब रचयता ने रचा।
अंगद शंखनाद करते हैं औऱ संकेत देते हैं कि सूर्य अस्त हो गया है। रावण कहता है जाओ राम तुम्हारे सिर पर मुझे काल दिखाई दे रहा है आज जाओ। तो राम जवाब देते हैं वह काल मेरे बाढ़ों में बैठ कर तुम्हारा खात्मा करने का इंतजार कर रहा है रावण।
रावण अब कहता है हमें फिर ले चलो रणभूमि पर। रावण एक बार फिर अपने धनुष से चेताता है कि वह वापस आ गया है। रावण कहता है कि आज मैं राम और लक्ष्मण को मौत के घाट उतारूंगा। श्रीराम कहते हैं मैं आ गया लंकेश।रावण तामस अस्त्र निकालता है औऱ प्रभु राम पर छोड़ता है। लेकिन वह व्यर्थ जाता है। श्रीराम कहते हैं रावण वीरों की तरह युद्ध कर। छल कपट वीर राजा को शोभा नहीं देता।
रावण उधर सार्थी पर गुस्सा करता है कि वहउसकी बिना आज्ञा के हमारा रथ मोड़ कर क्यों ले आया? वह बताताहै कि आप बेहोश हो गए थे। ऐसे में मैंने सोचा कि कहीं कोई अमंगल न हो जाए। इसलिए मैं आपको वापस ले आया।
श्रीराम के पास जाकर विभीषण कहते हैं कि स्वामी मुझ जैसे तुच्छ राक्षस के लिए आपने अपने प्राण खतरे में क्यों डाले प्रभु। श्रीराम कहते हैं कि मित्रों के संकट सहनायह कर्तव्य है हमारा। हमारे रघुकुल की रीत है। प्राण जाई पर वचन न जाई। आपतको लंकेश बनाने का वादा किया है।
रावण कहता है कि मैं अपनी भूल को अब सुधारूंगा तुझे मारकर। अच्छा हुआ जो तू सामने आ गया। इससे स्वंय ब्रह्मा जी भी तुझे बचा न सकेंगे। रावण ने ऐसा प्रहार किया कि वह शक्ति आघात राम के साथ खड़े विभीषण की तरफ आता है। ऐसे में श्रीराम उस शक्ति आघात को खुद पर ले लेते हैं। रावण चकित रह जाता है। रावण कहता है कि तुम विभीषण से दोस्ती निभा रहे हो वाह। अब विभीषण गुस्से मे आ जाते हैं तभी वह रावण पर शस्त्रलेकर बरस पड़ते हैं। विभीषण का साथ देने के लिए हनुमान जामवंत सुग्रीव और अंगद भी आ जाते हैं।
राम और रावण दोनों के विफल हुए रणबाण। अब कौन विजय रहेगा इस बारे में कोई समझ नहीं पा रहा है। इतने में विभीषण श्रीराम के कान मे कुछ कहते हैं। लंकेश्वर ये देख कर गुस्से में आ जाते हैं। वह कहता है विभीषण राजद्रोही। विभीषण श्रीराम को रावण से जीतने के लिए उपाय बताते हैं।
रावण और राम के बीच तीखे व्यंग होते हैं। इसके बाद चलते हैं तीखे और विषैले बाण। रावण का हर बाण अब श्रीराम काटते हैं। धर्म औऱ पाप की लड़ाई है, निर्णय की घड़ी अब आई है। आज मर्यादा पुरुषोत्तम गुस्से में आ गए हैं।
लक्ष्मण अपना पूरा प्रयास करते है लेकिन रावण पर कोई असर नहीं होता। लक्ष्मण के सारे तीर लुप्त होने लगते है। रावण के जवाब का कोई तोड़ नहीं। लक्ष्मण हैरान होकर देखते हैं।. अब .युद्धभूमि पर पराक्रमी श्रीराम आते हैं।
इधर युद्ध भूमि में रावण ने आतंक मचाना शुरू कर दिया है। रावण तीरों की बरसात कर रहा है। ऐसे मे रावण सर्वप्रथम आते हैं औऱ रावण से लोहा लेते हैं। रावण औऱ हनुमान के बीच भीषण .युद्ध छिड़ता है। तभी अंगद उनका साथ देने आते हैं। अंगद को भी रावण दूर फेंकता है। रावण कहता है कि क्यों मरनाचाहते हो जाओ राम को ेलकर आओ। तभी लक्ष्मण वहां पहुंचते हैं. औऱ कहतोे हैं अहंकार रावण मेरे विषैले बाण से बच।
श्रीराम ने अपना गमछा रावण के पुत्र मेघनाद के मृत शरीर परओ ढ़ा दिया था। अब रावण स्वंय युद्ध भूमि में आ गया है। ऐसे में श्रीराम भी युद्ध भूमि में जाने की तैयारी करते है। तभी विभीषण कहते हैं प्रभु आपने न कवच पहना है न ही शरीर ढका है। तो श्रीराम जवाब देते हैं कि रावण विजय होने के लिए रथ लाया है। लेकिन धर्म सत्य है