Ramayan 15th April Episode Updates: राम की महिमा राम ही जाने। श्रीराम ने कुंभकरण को खत्म कर दिया है। कुंभकरण की भुजा उखाड़ श्रीराम ने रावण के भाई को मार डाला। इस खबर को सुन कर रावण स्तब्ध रह जाता है। वह कहता है कि कुंभकरण को तो ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था फिर वह कैसे मर सकता है? रावण के कुल में एक एक कर सारे शूरवीर मायावी राक्षस खत्म हो चुके हैं। अब रावण के पास मात्र सिर्फ मेघनाद इंद्रजीत ही बचा है।
इंद्रजीत अपने पिता को कहता है कि वह उसे रणभूमि में जाने की आज्ञा दे ताकि वह राम लक्ष्मण दोनों को मारकर उसके सामने ला सके। रावण उसे विजय होने का आशीर्वाद देता है। मेघनाद रणभूमि में पहुंचता है जहां चारों तरफ वानर सेना फैली होती है। धरती पर कई राक्षस कटे मरे पड़े होते हैं। ये देख कर मेघनाद बौखला जाता है।
इंद्रजीत लक्ष्मण को ललकाराता है। इन्द्रजीत के बार-बार ललकारने के बाद आखिरकार श्री राम से आज्ञा लेकर लक्ष्मण इन्द्रजीत से युद्ध करने के लिए जाते हैं। लक्ष्मण जी काफी गुस्से में होते हैंं वही दूसरी तरफ इन्द्रजीत उनसे कहता है कि अगर आज ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी आ जाएं तो फिर भी वो तुमको नही बचा सकते। लक्ष्मण इन्द्रजीत के वार से एकबार फिर से घायल हो जाते हैं।
लक्ष्मण की हालत देखकर राम काफी ज्यादा भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि मेरे भाई लक्ष्मण के बिना मेरी जीत का कोई मतलब नही है। लक्ष्मण को देखकर राम कहते हैं कि अब मैं माता सुमित्रा को क्या मुंह दिखाउंगा। मैं उर्मिला से क्या कहूंगा जो अपने पति का 14 वर्षों से इंतजार कर रही है। मैं उससे कैसे कहूंगा कि मैंने अपनी पत्नी के लिए जो युद्ध किया उसमें मैंने तुम्हारे पति को गवा दिया।

Highlights
हनुमान जी राम का आशिर्वाद लेते हैं और संजीवनी बूटी की तलाश में निकल पड़ते हैं। हनुमान श्री राम से कहते हैं कि अगर वो कल सुबह तक संजीवनी नही लेकर आए तो फिर आज के बाद आपको कभी मुंह नही दिखाएंगे। हनुमान, वैद्य से बूटी की निशानी पूछते हैं और संजीवनी लेने हिमालय की ओर निकल पड़ते हैं। वहीं राम जी अपने भाई लक्ष्मण की हालत को देखकर लगातार रो रहे होते हैं।
हनुमान जी सुषैण वैद्य को उड़ाकर ले जाते हैं लेकिन वैद्य जी लक्ष्मण का उपचार करने से ये कहते हुए मना कर देते हैं कि वो अपने शत्रु को नही बचा सकते जिसपर विभीषण उन्हें उनका धर्म याद दिलाता है। विभीषण की बातें सुनकर वैद्य सुषैण सोचने पर मजबूर हो जाते हैं वहीं श्री राम भी अपने भाई को वैद्यराज के हवाले करते हुए कहते हैं कि अब ये आपपर है चाहे तो आप इसकी जान ले लें लेकिन फिर भी आपपर मुझको पूरा विश्वास है। आखिरकार वैद्यराज लक्ष्मण का उपचार करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
महाराज विभीषण हनुमान से कहते हैं कि इसका एक उपचार है लेकिन वो असंभव है। विभीषण हनुमान से कहते हैं कि लंका से वैद्दराज को लाना होगा वही उपाय बता सकते हैं जिसपर हनुमान लंका जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। हनुमान राम जी का आशिर्वाद लेते हैं और लंका के लिए प्रस्थान करते हैं।
लक्ष्मण की हालत देखकर राम काफी ज्यादा भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि मेरे भाई लक्ष्मण के बिना मेरी जीता का कोई मतलब नही है। लक्ष्मण को देखकर राम कहते हैं कि अब मैं माता सुमित्रा को क्या मुंह दिखाउंगा। मैं उर्मिला से क्या कहूंगा जो अपने पति का 14 वर्षों से इंतजार कर रही है। मैं उससे कैसे कहूंगा कि मैंने अपनी पत्नी के लिए जो युद्ध किया उसमें मैंने तुम्हारे पति को गवा दिया।
लंकापति रावण ने घोषणा करते हुए कहा कि जैसे ही लक्ष्मण की मृत्यु का समाचार मिले वैसे ही शंखनाद किया जाए ताकि सीता को भी पता चले की लक्ष्मण मर चुका है। वहीं दूसरी ओर इन्द्रजीत कह रहा है कि उसका प्रतिशोध तब जाकर शांत होगा जब वो राम का सिर काटकर लाएगा।
इन्द्रजीत अपने पिता रावण को ये समाचार सुना रहा है कि उसने राम के भाई लक्ष्मण को मृत्यु की कगार पर पहुंचा दिया है। रावण पुत्र के द्वारा किए गए इस करिश्मे से काफी ज्यादा खुश है वहीं इन्द्रजीत कह रहा है कि उसे आज बस इतना अफसोस है कि वो लक्ष्मण के मृत शरीर को अपने पिता तक नही ला पाया।
लक्ष्मण इन्द्रजीत के वार से एकबार फिर से घायल हो गए हैं। लेकिन लक्ष्मण के बेसुध शरीरो को मेघनाद उठा नही पा रहा है। वही हनुमान लक्ष्मण की रक्षा करने के लिए आ गए हैं और इन्द्रजीत से कह रहे हैं कि तुम इन्हें नही उठा पाओगे। फिलहाल हनुमान, लक्ष्मण को मेघनाद के चंगुल से छुड़ा लाए हैं।
लक्ष्मण एक बार फिर इन्द्रजीत की माया में फंसते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में श्री राम ने उन्हें संयम रखने की सलाह दी है। फिलहाल लक्ष्मण को कुछ समझ नही आ रहा है कि इन्द्रजीत का सामना किस प्रकार से किया जाए।
इन्द्रजीत के बार-बार ललकारने के बाद आखिरकार श्री राम से आज्ञा लेकर लक्ष्मण इन्द्रजीत से युद्ध करने के लिए जा चुके हैं। लक्ष्मण जी काफी गुस्से में हैं वही दूसरी तरफ इन्द्रजीत उनसे कह रहा है कि अगर आज ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी आ जाएं तो फिर भी वो तुमको नही बचा सकते।
मेघनाद खुद को महाबली समझते हुए लंका वापस आता है औऱ पिता रावण से मिलता है। रावण एक बार फिर अपने गुरूर में आ जाता है। इधऱ, विभीषण बताते हैं कि नागपाश का कोई उपचार नहीं है।
इंद्रजीत एक बार फिर गरजता है औऱ कहता है कि कल वह फिर युद्ध भूमि में जाएगा औऱ राम पर विजय प्राप्त होगा।
वानर सेना श्रीराम से आज्ञा लेती है कि वह शंखनाद कर सीता माता तक ये समाचार पहुंचाएं कि श्रीराम और अनुज लक्ष्मण एक दम स्वस्थ हैं। इस शंखनाद को रावण भी सुन लेता है। वह मेघनाद के पास जाकर पूछते हैं कि तुम तो कह रहे थे क सूर्योदय के साथ एक अच्छी खबर आएगी? मेघनाद कहता है हां महाराज मैं भी यही सोच रहा हूं कि येशंखनाद क्यों हो रहे हैं। फिर रावण को गुप्तचर समाचार लाता है। कि राम और लक्ष्मण दोनों नागपाश से मुक्त हो गए हैं।
हनुमान गरुड़ देव के पास गए औऱ उन्हें ले आए ताकि श्रीराम और लक्ष्मण को वह नागपाश बंधन को छु़ड़ा सकें। गरुड़ देव अपने मुख से सांपों को हटाते हैं। वह नाग पाश को तोड़ देते हैं और लक्ष्मण राम होश मे आते हैं। श्रीराम गरुड़ राज को कहते हैं कि हम आपके आभारी हैं।
इधर हनुमान किसी को मिल नहीं रहे हैं। सभी को उम्मीदें हैं कि वह ही इस अवस्था में कुछ कर सकते हैं। लेकिन हनुमान कहां है किसी को नहीं पता। सब आशंका जताते हैं कहीं मेघनाद हनुमान को बंदी बना कर तो नहीं ले गया? लेकिन हनुमान जी तो गरुड़ के पास गए हैं।
मेघनाद खुद को महाबली समझते हुए लंका वापस आता है औऱ पिता रावण से मिलता है। रावण एक बार फिर अपने गुरूर में आ जाता है। इधऱ, विभीषण बताते हैं कि नागपाश का कोई उपचार नहीं है। हनुमान सुग्रीव समस्त सेना के साथ उदास होजाते है। सब सोचते हैं कि कैसे राम लक्ष्मण को वापस ठीक किया जाए। सीता को इस बारे में पता चलता है तो वह बहुत रोती हैं सीता का जी घबराने लगता है- वह कहती हैं कि ईश्वर ऐसा कैसे हो गया। मेरे स्वामी तो अविनाशी हैं। मेरे रघुनाथ मेरे प्राणनाथ के प्राण संकट में हैं तो मैं कैसे जीवित रह सकती हूं। त्रिजटा कहती है कि ये समय रोने का नहीं है महासती। जगदंबा के आगे अपने स्वामी के प्राण वापस मांगो। सीता मां जगदंबा के आगे अराधना करना शुरू कर देती हैं।
तीर को तीर काटते हैं,तीर पे तीर बरसते हैं। एक बाहुबल से युद्ध करता है तो दूसरा शस्त्रों पर अभिमान करता है। दोनों अपने सम्मान के लिए प्राणों को दाव पर लगाए युद्ध कर रहे हैं। तभी विभीषण बताते हैं कि सूर्यास्त होने के बाद मेघनाद की शक्तियां चौगुनी बढ़ जाती हैं। तभी सूर्यास्त हो जाता है और मेघनाद अदृश्य होकर प्रहार करता है। ऐसे मे दोनों भाई राम और लक्ष्मण आगे आते हैं तभी मेघनाद अपना शस्त्र चलाता है और राम लक्ष्मण मेघनाद के चंगुल में फंस जाते हैं। दोनों भाइयों को नागपाश से बांध दिया जाता है
लक्ष्मण का हर वार खाली जाता है। मेघनाद अपनी शक्तियों का बखान करने लगता है। लक्ष्मण कहते हैं सिर्फ गरजने वाले मेघ मैं आगया हूं। दोनों के बीच युद्ध शुरू होता है। तीर पर तीर बरसते हैं।
मेघनाद राम लक्ष्मण को ललकारता है तभी सबसे पहले सुग्रीव आ जाते हैं। वह कहते हैं कि प्रभु के दर्शनों को बड़े उतावले हो। पहले सेवक को तो मौका दो। सुग्रीव मेघनाद पर प्रहार की कोशिश करते हैं ऐसे में वह असफल हो जाते हैं तभी अंगद आते हैं और पिता की सहायता करते हैं लेकिन इसका भी कोई असर नहीं होता। लक्ष्मण को इस बारे में पता चलता है तो लक्ष्मण गुस्से में आ जाते हैं। श्रीराम कहते हैं जो भी करो शांति से करो। मैं तुम्हारा उत्साह भंग नहीं कर रहा। इधर मेघनाद कहता है मेरे सामना करने आओ लक्ष्मण। लक्ष्मण मेघनाद के सम्मुख आते हैं।
मेघनाद गुस्से मे लंका से युद्ध के लिए निकल पड़ा है चारों तरफ युवराज इंद्रजीत की जीत के नारे लग रहे हैं। लक्ष्मण पूछते हैं कि एक ही व्यक्ति के दो नाम कैसे- तो विभीषण बताते हैं कि जब वह जन्मा था तो मेघ बरस रहे थे तो महाराज ने इसका नाम मेघनाद रखा। इसके बाद अपनी कुलदेवी से मेघनाद ने शक्तियां पाईं। जिससे दसों दिशाओं में कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता।
मेघनाद अपनी पत्नी सुलोचना को कहता है कि तुम क्यों सहमी खड़ी हो प्रिय, खुशी का अवसर है मुस्कुराओ। क्या सोच रही हो? मेघनाद कहता है.. तो सुलोचना कहती है कि इस युद्ध का परणाम क्या होगा ये सोच रही हूं। मेघनाद कहता है कि हंसते हुए मुझे युद्ध भूमि में भेजो। तभी मंदोदरी आ जाती है औऱ वह अपने पुत्र को विजय भव होने का आर्शीवाद देती है।
मेघनाद की पत्नी सुलोचना के पास मंदोदरी जाती है और वह कहती है कि अपने पति को युद्ध करने से रोके। ये अधर्म युद्ध है। इसलिए मेरा मन डर रहा है। चाहे कोई योद्धा कितना भी वीर क्यों न हो, उस वीर का हारना निश्चित है क्योंकि वह अधर्म के साथ है। इधर त्रिजटा सीता को सारी कथा व्यथा बताती है। रणभूमि पर क्या हो रहा है कैसे राक्षस मारे गए इस बारे में सीता को बताया जाता है। सीता को ये भी बताया जाता है कि अब मेघनाद युद्ध भूमि में जाने वाला है। त्रिजटा कहती है न जाने अब क्या होने वाला है क्योंकि मेघनाद बहुत शक्तिशाली है।
इधर रावण की रानियां रावण को कोसती हैं कि महाराज आपने ये सही नहीं किया। रानी धान्य मालिनी रावण से कहती है कि मेरे जीने का एकमात्र सहारा था अतिकाय। मेरी ममता का मोती मुझे लौटा दो लंकेश्वर। इस पर रावण कहता है कि अतिकाय उनका भी पुत्र था, तभी रानी कहती है कि आपने अपनी कामवासना के लिए अपने पुत्रों की बलि चढ़ा दी जाए। अब अगर आपको सीता मिल भी जाए तो क्या, आपके पुत्रों के लाश से पग लाकर जब वो महल में कदम रखेगी तो उसकी इज्जत कौन करेगा। रावण अपने भाई-बेटों के लिए घातक साबित हुआ।
रावण के चारों पुत्रों का भी नाश होता है। इससे पहले अतिकाय अपनी मायावी शक्तियों से लक्षमण जी को परेशान करते हैं, तभी भगवान इंद्र के कहने पर वहां वायु देवता प्रकट होते हैं और उन्हें बताते हैं कि ये ब्रह्मा जी के वरदान की वजह से सुरक्षित है। अब आप शीघ्र ही अतिकाय पर ब्रह्मास्त्र चलाइए। ,तब, लक्षमण ब्रह्मास्त्र निकालते हैं औऱ अतिकाय को धराशयी कर देते हैं। अतिकाय का ब्रह्म कवच टूट जाता है औऱ वह अपने प्राण त्याग देता है।