हिंदी सिनेमा का शुरुआती दौर स्टूडियो का था। बॉम्बे टॉकीज, न्यू थियेटर्स, प्रभात, जैमिनी जैसे स्टूडियो के नाम से फिल्में बिकती-खरीदी जाती थीं। कलाकार उनमेंं मासिक तनख्वाह पर काम करते थे। 40 के दशक के बाद स्टूडियो सिस्टम ढहने लगा और स्टार सिस्टम हावी हो गया। जिसके बाद सब कुछ स्टारों के इर्दगिर्द घूमने लगा। इससे स्टारों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी। कैम्प और खेमे बनने लगे। इसके बाद शुरू हुआ स्टारों की इमेज बनने-बिगड़ने का खेल। अभिनेता राज कुमार के अक्खड़पन के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं कि उन्होंने सोने से लदे रहने वाले बप्पी लहरी से कहा कि जानी तुम्हारा मंगलसूत्र कहां है। जीनत अमान से कहा कि खूबसूरत हो फिल्मों में काम क्यों नहीं करतीं। ऐसे कई कच्चे-सच्चे किस्से राज कुमार से जुड़े।
किस्म किस्म के किस्से
राज कुमार पढ़े लिखे, तमीजदार इनसान थे। एक वाकये से इसे समझा जा सकता है। राज कुमार मीडिया से बात नहीं करते थे। चिकने पन्नों वाली एक फिल्म पत्रिका की महिला संवाददाता किसी तरह साक्षात्कार लेने उनके घर जा पहुंचीं। राज कुमार ने स्वागत किया और पूछा आप ड्रिंक करेंगी? महिला के इनकार करने के बाद राज कुमार ने पूछा, क्या मैं ड्रिंक कर सकता हूं। महिला ने स्वीकृति दे दी। फिर राज कुमार ने पूछा आप सिगरेट लेंगी? महिला ने फिर इनकार किया। राज कुमार ने कहा कि क्या मैं सिगरेट पी सकता हूं। महिला ने कहा शौक से। यह बहुत छोटी-सी घटना है मगर इससे पता चलता है कि वह अपने सामने खड़े शख्स को कितनी अहमियत देते थे। मगर उन्हीं राज कुमार की बददिमागी को लेकर फैले किस्से आज तक दोहराए जाते हैं।
मसलन बताया जाता है कि उन्होंने प्रकाश मेहरा के साथ ‘जंजीर’ (1973) में यह कहकर काम करने से इनकार कर दिया कि मेहरा के सिर से चमेली के तेल की खुशबू आती थी, जो उन्हें पसंद नहीं थी। लेकिन यह किस्सा सुनाने वालों को यह याद नहीं रहता कि राज कुमार ने प्रकाश मेहरा के साथ एक नहीं दो फिल्में की थीं। एक तो करण जौहर के पिता यश जौहर ने बनाई (मुकद्दर का फैसला, 1987) थी, जिसके निर्देशक प्रकाश मेहरा थे। दूसरी ‘मोहब्बत के दुश्मन’ खुद प्रकाश मेहरा ने राज कुमार को लेकर बनाई थी। क्या अपनी बेइज्जती के बाद प्रकाश मेहरा राज कुमार को साइन करने जाते? क्या राज कुमार को 15 साल बाद चमेली के तेल की खुशबू भाने लगी थी।
नहीं थे अहंकारी
राज कुमार इतने अहंकारी थे तो ‘महल’ जैसी सुपर हिट फिल्म बनाने वाले कमाल अमरोही उन्हें ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ के बाद ‘पाकीजा’ में क्यों दोहराते? अगर राज कुमार नखरे दिखाने वाले स्टार थे तो अनुशासित तरीके से काम करने वाले पारिवारिक फिल्में बनाने वाले जैमिनी के एसएस वासन ने उन्हें अपनी तीन फिल्मों (दिलीप कुमार के साथ ‘पैगाम’ के बाद ‘घराना’ और ‘जिंदगी’) में कैसे दोहराया। बीआर चोपड़ा (वक्त, हमराज) जैसे सुलझे हुए पत्रकार फिल्मकार और चेतन आनंद (हीर रांझा, हिंदुस्तान की कसम, कुदरत) जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के निर्देशक ने राज कुमार को अपनी फिल्मों में दोहराया। राज कुमार की यह इमेज उनसे जुड़े किस्सों से बिलकुल अलग उन्हें एक समर्पित कलाकार के रूप में पेश करती है। मगर राज कुमार की यह इमेज मीडिया में बनी उनकी इमेज के नीचे दब गई।
राज कुमार (8 अक्तूबर, 1926-3 जुलाई, 1996)