मशहूर शायर राहत इंदौरी का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। राहत इंदौरी कोरोना वायरस से भी संक्रमित थे। मध्य प्रदेश के इंदौर में 10 अगस्त की देर रात उन्हें अस्तपाल में भर्ती कराया गया था। राहत इंदौरी ने खुद ट्विटर पर इस बात की जानकारी देते हुए लिखा, ‘कोविड के शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर कल मेरा कोरोना टेस्ट किया गया, जिसकी रिपोर्ट पॉज़िटिव आई है। हॉस्पिटल में एडमिट हूं, दुआ कीजिये जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं। एक और इल्तेजा है, मुझे या घर के लोगों को फ़ोन ना करें, मेरी ख़ैरियत ट्विटर और फेसबुक पर आपको मिलती रहेगी।’

राहत इंदौरी अपने खास और बेहद कमाल के लहजे के लिए जाने जाते थे। राहत इंदौरी जब शेर पढ़ते थे तो स्टेज पर तालियों की गड़गड़ाहट रुकती नहीं थी। उर्दू भाषा को नई पहचान देने वाले शायरों में से एक राहत इंदौरी का इस दुनिया को छोड़कर चले जाना निश्चित तौर पर काफी दुखद है। आइए नजर डालते हैं राहत इंदौरी के कुछ मशहूर शेरो शायरी पर…

आसमान लाये हो ले आओ ज़मीन पर रख दो: मेरे हुजरे में नहीं, और कहीं पर रख दो, आसमान लाये हो ले आओ, जमीं पर रख दो। अब कहां ढूंढने जाओगे, हमारे कातिल, आप तो क़त्ल का इल्जाम, हमी पर रख दो। उसने जिस ताक पर, कुछ टूटे दिये रखे हैं, चाँद तारों को ले जाकर, वहीँ पर रख दो।

बुलाती है मगर जाने का नहीं: बुलाती है मगर जाने का नहीं, ये दुनिया है इधर जाने का नहीं। मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर, मगर हद से गुज़र जाने का नहीं। ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो, चले हो तो ठहर जाने का नहीं। सितारे नोच कर ले जाऊंगा, मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं। वबा फैली हुई है हर तरफ, अभी माहौल मर जाने का नहीं। वो गर्दन नापता है नाप ले, मगर जालिम से डर जाने का नहीं।

तूफ़ानों से आँख मिलाओ: तूफ़ानों से आँख मिलाओ, तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो। मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो। ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे, जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे।

फकीरी पे तरस आता है: फकीरी पे तरस आता है, अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है। जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे। मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे। फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो। इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो।

किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है: किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है। अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है। ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है। लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है। मैं जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन, हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है। हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है, हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है। जो आज साहिब-इ-मसनद हैं कल नहीं होंगे, किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है। सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।