सेंसर बोर्ड और फिल्ममेकर्स के बीच खींचतान कोई नई बात नहीं है। आज इसका रूप भले ही अलग हो गया है। आज निर्माता-निर्देशक खुल कर सेंसर बोर्ड के खिलाफ उतर रहे हैं और बोर्ड को चुनौती भी दे रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह है कि फिल्मकार आर्थिक रूप से काफी मजबूत हुए हैं और फिल्मों के लिए पैसे लगाने की व्यवस्था काफी व्यवस्थित भी हुई है। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। 1961 में रिलीज हुई फिल्म ‘अमर रहे यह प्यार’ सेंसर बोर्ड के चक्कर में ऐसी फंसी कि निर्माता राधा किशन ने जान दे दी।
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राधा किशन ने प्रभु दयाल के साथ मिल कर ‘अमर रहे यह प्यार’ का निर्माण किया था। राधा किशन ने फिल्म के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। लेकिन जब फिल्म सेंसर बोर्ड के पास पहुंची तो अटक गई। दो साल फिल्म रुक गई। पैसा फंस गया। कर्जदार तबाह करने लगे। राधा किशन के पास पैसे लौटाने का कोई इंतजाम नहीं था। वह फिल्म रिलीज होने की उम्मीद पर किसी तरह कर्जदारों को टालते रहे। पर दो साल बाद फिल्म रिलीज हुई तो फ्लॉप हो गई। अब तो कर्जदारों के सब्र का बांध और राधा किशन की उम्मीदें टूट गई थीं। कर्जदारों का दबाव इतना बढ़ गया था कि झेलना मुश्किल हो रहा था। एक दिन राधा किशन ने फांसी लगा ली और सारे कर्जों से खुद को ‘आजाद’ कर लिया।
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‘अमर रहे यह प्यार’ में राजेंद्र कुमार, नलिनि जयवंत और नंदा ने काम किया था। फिल्म के निर्देशक प्रभु दयाल थे। गीत-संगीत सी. रामचंद्र और कवि प्रदीप का था।
