प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में कहा कि देश में एक नई जमात का जन्म हुआ है, जिसका नाम है ‘आंदोलनजीवी’। ये लोग खुद आंदोलन नहीं चला सकते हैं, लेकिन किसी का आंदोलन चल रहा हो तो वहां पहुंच जाते हैं। ये आंदोलनजीवी ही परजीवी हैं, जो हर जगह मिलते हैं। पीएम मोदी के ‘आंदोलनजीवी’ शब्द के इस्तेमाल पर सियासी चर्चा तेज हो गई है। इसी बीच बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह ने भी पीएम मोदी के इस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।
सुशांत सिंह ने ट्वीट कर लिखा- आंदोलन पे कोई जीवित नहीं रहता है, हक़ से जीवित रहने के लिए आंदोलन होते हैं। अतः ‘आंदोलनजीवी’ शब्द ही झूठा है। और झूठों को हर सच से डर लगता है, इसीलिए वो ‘आंदोलनाक्रांत’ रहते हैं। हर आंदोलन को झूठा साबित करते हैं। हर आंदोलन देशद्रोह।’ सुशांत सिंह की इस पोस्ट पर तमाम यूजर्स ने भी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी।
अनंत नाम के यूजर ने इस पोस्ट पर लिखा,- साहब ने सांस्कृतिक इतिहास पढ़ा होता तो ज्ञात होता, इस देश में आंदोलन की रीत बहुत पुरानी है। भक्ति आंदोलन लगभग 900 साल चला। अनेक महापुरुषों ने योगदान दिया। कबीरदास, संत रविदास, गुरु नानक देव आदि ने सभी प्रकार के जाति भेद और धार्मिक शत्रुता तथा रीति रिवाजों का विरोध किया।
आंदोलन पे कोई जीवित नहीं रहता है, हक़ से जीवित रहने के लिए आंदोलन होते हैं। अतः ‘आंदोलनजीवी’ शब्द ही झूठा है। और झूठों को हर सच से डर लगता है, इसीलिए वो ‘आंदोलनाक्रांत’ रहते हैं। हर आंदोलन को झूठा साबित करते हैं। हर आंदोलन देशद्रोह।
— सुशांत सिंह sushant singh سشانت سنگھ (@sushant_says) February 8, 2021
मोहित कुमार नाम के शख्स ने लिखा- सहमत, लोकतंत्र जब राजतंत्र की ओर बढ़ जाए तो सत्ता पर काबिज लोगों को जनता द्वारा यह याद दिलाने के लिए कि आप हमारे ही सेवक हैं और अपने हक़ लेने के लिए आंदोलन किया जाता है। लेकिन जब लोकतंत्र के सत्तारूढ़ दल को बहुमत का घमंड हो जाता है तो हक़ लेने वालों का किस तरह मजाक उड़ाया जाता है।’ एक ने कहा- आज हमने लोकतंत्र के मंदिर संसद में बेशर्म होकर ठहाके लगाते देख लिया… खैर, जिनका इतिहास ही माफी मांगने का हो उनसे और उम्मीद की ही नहीं जा सकती।
अरूषा नाम की यूजर ने लिखा- डरपोक को लगता है, उसके हंसने से उसका डर किसी को दिखाई नहीं देगा। पर वो ये क्यों भूल जाता है कि उसकी हंसी में भी डर का स्वर सुनाई दे रहा है। ममता नाम की महिला यूजर ने लिखा- वो इससे अच्छी आंदोलन की परिभाषा दे भी क्या सकते थे ? अगर कपड़े बदलने, मालिकों की जी-हुजूरी और दलाली से समय मिला होता तो पता भी चलता कि आंदोलन का क्या मतलब होता है।

