बालीवुड के चर्चित फिल्मकार कबीर खान ने कहा है कि सरकार के पास सिनेमा को लेकर कोई नीति नहीं है। देशभर में असहिष्णुता का ऐसा माहौल बनता जा रहा है कि आने वाले दिनों में फिल्मकारों को निशाना बनाया जाएगा और उन पर और अधिक मुकदमे दर्ज होंगे।
सलमान खान की फिल्म बजरंगी भाईजान की भारी सफलता से चर्चा में आए कबीर खान ने गोवा में फिल्म महोत्सव के दौरान एक संवाद कार्यक्रम में कहा कि वे मुख्यधारा के हिंदी सिनेमा में राजनीति लाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। आज हिंदी सिनेमा को पहले से अधिक राजनैतिक होने की जरूरत है। काबुल एक्सप्रेस (2006), न्यूयार्क (2009), एक था टाइगर (2012) जैसी फिल्में बनाने वाले कबीर खान नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के सिपाहियों पर अगली फिल्म बनाना चाहते हैं।
इस विषय पर वे बहुत पहले ‘द फारगाटेन आर्मी’ नाम से एक वृत्तचित्र बना चुके हैं। इसके लिए उन्हें कैप्टन लक्ष्मी सहगल के साथ सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड, बर्मा की पंद्रह हजार किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ी थी। यह देखना दिलचस्प होगा कि पचपन हजार स्त्री- पुरुष इस सेना से कैसे जुड़ गए थे। यह फिल्म नेताजी पर नहीं उनकी फौज पर होगी।
अपनी फिल्मों और पत्रकारिता के लिए करीब साठ देशों की यात्रा कर चुके कबीर खान ने बताया कि अफगानिस्तान में काबुल एक्सप्रेस की शूटिंग के दौरान वे मरने से कई बार बाल- बाल बचे। एक रूसी हेलिकॉप्टर वाले को दो हजार डॉलर की रिश्वत देकर हिंदुकुश की पहाड़ियों मे उतरते ही विद्रोहियों से घिर जाने पर उनकी जान इसलिए बच गई कि हथियारबंद लड़ाके हिंदी फिल्मों के दीवाने निकले।
चारो तरफ से घिर जाने पर वे जोर-जोर से हिंदुस्तान- हिंदुस्तान बोलने लगे और हथियारबंद लड़ाकों ने हिंदुस्तान सुनते ही गाना शुरू कर दिया – मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू। इस तरह बॉलीवुड ने उनकी जान बचाई। उन्होंने सलमान खान जैसे सुपर स्टार के साथ काम करने के सवाल पर कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं किया जो सलमान चाहते थे। वे एक बड़े ब्रांड हैं। ऐसे मे कोई भी सेफ जोन से बाहर नहीं निकलता ।
पर ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘एक था टाइगर’, दोनों में उन्होंने वहीं किया जो चाहते थे। हम बड़ी आसानी से इसका सीक्वल बना सकते थे, फिल्म चल भी जाती लेकिन सीक्वल बनाने में मेरा कोई यकीन ही नहीं है। कबीर का यह भी कहना है कि वे डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाकर ही संतुष्ट थे। पर भारत में इनका न तो कोई बाजार है न ही इनको जनता तक ले जाने का कोई सिस्टम। सिनेमा में आप जो कहते है वह लोगों तक पहुंचता है।