वैसे तो नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने ‘गैंग्स आॅफ वासेपुर’ के दूसरे भाग में धनबाद के माफिया सरगना का किरदार निभाया था, जिसमें वे खूब जमे थे, पर उन्होंने महेंद्र फौजी नाम से ‘मुन्ना माइकल’ में जो चरित्र निभाया है, वह कुछ अलग किस्म के भाई का है। महेंद्र फौजी भी माफिया सरगना है। वह भी भाईगिरी करता है पर उसमें हंसोड़पन भी है। वह दिल्ली के एक इलाके का कुख्यात गुंडा होने पर भी नाचने का शौक रखता है। इसलिए जब मुन्ना (टाइगर श्रॉफ) नाम का मवाली, जो जबर्दस्त डांसर भी है, मुंबई छोड़कर दिल्ली आता है और एक क्लब में फौजी के भाई की जबर्दस्त ठुकाई कर देता है तो फौजी उसे बदले में ठोकता नहीं बल्कि अपना डांसर-ट्यूटर रख लेता है। फौजी मुन्ना से कहता है कि वह तीस दिनों में उसे धांसू डांसर बना दे और मुंहमांगी फीस ले ले। वह ब्लैंक चेक देने का भरोसा देता है। वजह यह है कि फौजी का दिल डॉली (निधि अग्रवाल) नाम के एक क्लब डांसर पर आ गया है और वह उसे रिझाने के लिए डांसर बनने की सोचता है। हालात कुछ ऐसे बनते हैं डॉली मुन्ना से इश्क करने लगती है। यहीं से कहानी में ट्विस्ट आता है।

थोड़े शब्दों में कहें तो ‘मुन्ना माइकल’ में एक प्रेम त्रिकोण है। पर इस त्रिकोण में इश्किया जज्बात कम हैं और डांस और एक्शन ज्यादा है। यों भी जहां टाइगर श्रॉफ हों और निर्देशक शब्बीर खान के साथ उनकी जोड़ी हो, वहां डांस और फाइटिंग का जलवा होगा ही। सो फिल्म में दोनों ही तत्व लबालब भरे हैं। हर दस पंद्रह मिनट के बाद गाना और डांस। इस तरह फिल्म मसाले से भरपूर मनोरंजन की थाली है।

टाइगर श्रॉफ का यह संवाद बार बार सुनने को मिलता है, ‘मुन्ना झगड़ा नहीं करता मुन्ना पीटता है’ और इसके बाद शुरू हो जाते हैं फाइटिंग वाले दृश्य। मुन्ना दे दनादन शुरू कर देता है। फिल्म की हीरोइन निधि अग्रवाल की यह पहली फिल्म है। हालांकि उनके पास करने को लिए कुछ खास नहीं है फिर भी उनमें एक भोलापन है जो दर्शक को बांधे रखता है। डांस के दृश्यों में वे खूब जमती हैं। रॉनित रॉय ने माइकल नाम के उस शख्स का किरदार निभाया है, जो अनाथ मुन्ना को बचपन में अपने घर में लाकर उसका लालन- पालन करता है। पर रोनित के किरदार में ज्यादा भरावट नहीं है इसलिए वह कुछ खास कर नहीं पाए। ‘मुन्ना माइकल’ युवा वर्ग को ध्यान में रखकर बनाई गई है उस खांचे में हिट होगी। टाइगर का अपना फैन क्लब है और उसमें बढ़ोतरी होनेवाली है।