कर्नाटक के एक किसान को जब लगा कि उसके नौ साल के लड़के मुड्डु का लिखने-पढ़ने में दिल नहीं लग रहा है, तो उसका कान पकड़ कर मुंबई जाने वाली बस में किसी के साथ बिठा दिया कि वहां जाकर कुछ कर लेगा। मुड्डू ने किया भी। मुंबई के लेमिंग्टन रोड पर पंजाबी ढाबे में 12 रुपए महीने पर काम किया। फिर टाटा ऑइल मिल के कैंटीन में काम मिला, जहां शाम को बॉक्सिंग होती थी। तो बॉक्सिंग सीखने लगा। वहां चैम्पियन बना, तो तनख्वाह 75 रुपए हो गई। मुंबई का आठ सालों तक चैम्पियन रहा। एक दिन फिल्मों के हीरो बाबूराव पहलवान ने देखा तो एक फिल्म में हाथापाई करने खड़ा कर दिया। शाम को 200 रुपए मिले तो मुड्डू ने तय किया कि अब करेंगे तो बस यही काम।

काम जोखिम का था और इसमें जीने की चाह से ज्यादा मरने का जुनून चाहिए था। पलक झपकते मौत दबोच सकती थी। चलती ट्रेन पर लड़ना, दौड़ना, ऊंची इमारतों से छलांग लगाना, तलवार चलाना, घोड़ा दौड़ाना, कांच तोड़कर निकलना… खतरनाक दृश्यों में हीरो के डुप्लीकेट बन कर मुड्डु ने यह काम शुरू किया। एक दिन प्राण ने सुबोध मुखर्जी से मुड्डू की सिफारिश की और मुड्डू देव आनंद की ‘मुनीमजी’ (1955) में स्टंटमैन से फाइट मास्टर शेट्टी बन गए।
60 और 70 के दशक में शेट्टी का जलवा था। आग उगलती आंखें और पहलवानों से डीलडौल वाले शेट्टी को परदे पर देख दर्शक सहम जाते थे। शेट्टी पहले हीरो को रुई की तरह धुनते थे फिर हीरो उनकी मरम्मत करता था। वह खतरनाक दृश्य अपने स्टंटमैन से नहीं करवाते थे, खुद करते थे। बावजूद इसके वह बुरा सपना जो शेट्टी अकसर देखते थे, हकीकत में बदल ही गया। निर्माता ब्रज की ‘बॉम्बे 405 माइल्स’ में उनके जूनियर मंसूर ने ‘टाइमिंग मिस’ की और जान चली गई। शत्रुघ्न सिन्हा के डबल बने मंसूर ने एक पल की देर लगाई, तब तक पेट्रोल बम फट चुका था। एम बी शेट्टी उस लम्हे को कभी नहीं भूल पाए।

शेट्टी दो काम नहीं कर पाए। एक निर्माता बनने का, दूसरा हीरो बनने का। उन्हें एक फिल्म ‘तुम सलामत रहो’ में मिस इंडिया परसिस खंबाटा का हीरो बनाया गया था। मगर फिल्म बनी नहीं। भाषा शेट्टी की मुसीबत थी। बामुश्किल दो साल तुलू पढ़े शेट्टी को फिल्मों में डायलाग नहीं मिलते थे। अटकते-लटकते एक दो लाइन के संवाद बोलकर हीरो को कभी-कभार धमकाने से वह कभी आगे नहीं बढ़े।

जिस पेशे से शेट्टी ने रोटी निकाली उसने जीवन के आखिरी दौर में शेट्टी को तोड़ दिया था। फिल्में मिल नहीं रही थीं। तीस साल में 40 बार शरीर की हड्डियां टूटीं मगर शेट्टी ने कभी हार नहीं मानी थी। आखिरी बार बिना कोई एक्शन सीन किए शेट्टी अपने घर में गिरे, तो उठ न सके। वे नामीगिरामी हीरो, निर्माता, जिन्होंने जबरदस्त सीन देने पर शेट्टी की पीठ थपथपाई थी, उनके जनाजे में कहीं भी नजर नहीं आए। जो उन्हें अलविदा कहने आए थे, उनमें से एक थे ‘बॉम्बे 405 माइल्स’ के निर्माता ब्रज।