निर्देशक : विक्रम भट्ट, कलाकार : इमरान हाशमी, अमायरा दस्तूर, अरुणोदय सिंह।
भट्ट कैंप के पास क्या अब कुछ भी मौलिक नहीं है? इस फिल्म को देखने के बाद यह सवाल हर दर्शक के मन में जरूर उठेगा। हालांकि इसके बाद वो खुद से यह जवाब दे देगा कि मौलिकता नाम की चिड़िया उसके पास थी कब? यह सब जानते हुए भी उसके मन में ये सवाल इसलिए उठेगा कि बेसिर-पैर की इस फिल्म को देखने के बाद दर्शक का मन झल्लाया हुआ होगा।
इमरान ने इसमे रघु राठौड़ नाम के उस अधिकारी का किरदार निभाया है जो एक आतंकवाद विरोधी दस्ते में काम करता है। उसके साथ सिया वर्मा (अमायरा दस्तूर) नाम की महिला अधिकारी भी काम करती हैं। रघु और सिया (ये दोनों नाम प्रतीकात्मक भी हैं और राम कथा की याद दिलाते हैं) एक दूसरे से प्यार करते हैं। वे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी हैं। लेकिन रघु के खिलाफ साजिश होती है और एक बम ब्लास्ट में उसकी हत्या करने की कोशिश होती है। लेकिन ‘जाको राखो साइयां मार सके न कोय’। इसलिए रघु बच जाता है। मगर उसे एक ऐसी दवा पिलाई जाती है कि वो अचानक अदृश्य हो जाता है यानी खुद तो सबको देख सकता है लेकिन कोई उसे नहीं देख सकता।
अदृश्य होने के बाद रघु अपने खिलाफ हुई साजिश का बदला लेने का प्रयास भी करता है। पर चूंकि ये इमरान हाशमी और भट्ट घराने की फिल्म है इसलिए अदृश्य होकर भी हाशमी का चिरपरिचित काम भी यहां दिखता है। यानी चुंबन के दृश्य। कई बार तो लगता है कि भट्ट कैंप फिल्में ही इसलिए बनाता है कि अलग-अलग अंदाज में इमरान हाशमी के किसिंग सीन दिखा सके।
पर ये सब करने के बाद भी ‘मिस्टर एक्स‘ ‘मिस्टर इंडिया’ (शेखर कपूर वाली) नहीं बन पाती। इमरान हाशमी से तो वैसे भी ज्यादा उम्मीद नहीं थी लेकिन अमायरा दस्तूर भी ज्यादा प्रभावित नहीं करतीं। करतीं भी कैसे, आखिर नहाने और चुंबन के अलावा दूसरे दृश्य उनके पास हैं भी नहीं। अदृश्य वाली इस फिल्म में वही दृश्य हैं जो भट्ट कैंप की फिल्मों में होती हैं।
भट्ट घराने की फिल्में अपने गीतों के लिए भी चर्चित रहती हैं। लेकिन यहां इस क्षेत्र में भी निराशा हाथ लगती है। ये फिल्म थ्री डी में भी बनी है, लेकिन शायद उसकी कोई जरूरत नहीं थी। हां, अगर चुंबन का थ्री-डी एहसास करना ही असली मकसद है तो बात अलग है।