निर्देशक- अमित मसुरकर, कलाकार-नवीन कस्तुरिया, मयंक तिवारी, अदिति वासुदेव, करण मीरचंदानी, रज्जाक।

ये एक बहुत अच्छी फिल्म बन सकती थी लेकिन सिर्फ कुछ कुछ अच्छी बनके रह गई है। ये बॉलीवुड के फिल्म लेखन और फिल्म निर्माण की सच्चाइयों से रूबरू कराने वाली फिल्म है। इसमें दुलाल (नवीन कस्तुरिया) और मैनाक (मयंक तिवारी) नाम के दो दोस्त हैं जो मुंबई में रहके फिल्म-लेखक बनना चाहते हैं। पर इनकी लिखी कोई कहानी किसी निर्माता को पसंद नहीं आती है। फिर भी दोनों लगे रहते हैं। हालांकि दिनोंदिन इनकी माली हालत खस्ता होती जाती है और मकान मालिक को किराया देने के पैसे भी नहीं हैं।

इसी बीच दुलाल को एक लड़की (अदिति वासुदेव) से प्यार भी जाता है और इसी कारण मैनाक से उसका मनमुटाव शुरू हो जाता है। अकस्मात इन दोनों को एक निर्माता रूमी कपूर के बारे में पता चलता है कि वो अपने बेटे गोंजो को हीरो बनाने के लिए एक फिल्म बनाना चाहता है लेकिन कोई ठीक ठाक कहानी नहीं मिल पा रही है। दुलाल और मैनाक रूमी को कहते हैं कि वे ऐसी फिल्म लिखेंगे। दोनों ऐसी कहानी लिखने में लग जाते हैं। उधर दुलाल की प्रेमिका अपनी आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना चाहती है और किसी भी सूरत में अपना कैरियर अपने प्रेम के लिए कुर्बान नहीं करना चाहती।

फिल्म मुंबई में फिल्मों में अपनी अपनी आकांक्षा लेकर गए लोगों की कहानी है जो हमेशा संघर्ष ही करते रहते हैं और कई तरह की मनोवैज्ञानिक ग्रंथियों के साथ जीते रहते हैं। इस फिल्म के संवादों में कुछ अतिरिक्त बिंदासपन है इसलिए ये पारिवारिक दायरे में पसंद नहीं की जाएगी। इसीलिए इसे वयस्क का प्रमाणपत्र भी दिया गया है। लेकिन एक खास तरह की ताजगी इसमें है जिससे सीमित वर्ग के दर्शकों को ये पसंद आएगी।