90 के दशक की ब्यूटीफुल एक्ट्रेस मीनाक्षी शेषाद्रि (Meenakshi Seshadri) एक समय की इंडस्ट्री की टॉप अदाकारा रही हैं। उन्होंने अपने करियर में एक से बढ़कर एक हिट फिल्मों में काम किया था। उनकी हिट फिल्मों में ‘दामिनी’, ‘हीरो’ और ‘घातक’ जैसी मूवीज शामिल हैं। वो 80-90 के दशक में फिल्मों में काफी एक्टिव रहीं। फिल्मों में ना केवल उनकी अदायगी बल्कि खूबसूरती तक के चर्चे खूब रहे हैं। ऐसे में एक बार एक्ट्रेस ने पुराने दिनों को याद किया था और उस समय शूटिंग के दौरान होने वाली कठिनाइयों के बारे में बात की थी। उन्होंने बताया था कि उस समय काफी परेशानी हुआ करती थी। सेट पर केवल एक रेस्टरूम हुआ करता था। एक वॉशरूम को करीब 100 लोग इस्तेमाल करते थे। ऐसे में चलिए बताते हैं एक्ट्रेस ने क्या कुछ कहा था।

मीनाक्षी शेषाद्रि ने बताया था कि फिल्म इंडस्ट्री में पूनम ढिल्लों पहली एक्ट्रेस रही थीं, जिनके पास अपनी वैनिटी वैन थी। मीनाक्षी ने कबीर वानी के शो में पहुंची थीं। इस दौरान उन्होंने बातचीत में बताया था कि शूटिंग के सेट पर केवल एक वॉशरूम होता था, जिसे 50-100 लोग इस्तेमाल करते थे। मेल और फीमेल के लिए कोई अलग से वॉशरूम नहीं होता था। उन्होंने बताया कि कुछ स्टूडियोज थे, जिसमें एक रोस्टरूम हुआ करता था। इसे 50-100 लोग बारी-बारी इस्तेमाल किया करती थीं। यहां सेपरेट कुछ नहीं होता था। अभिनेत्री ने बताया था कि एक्ट्रेसेस ऐसी ड्रेसेस पहनती थीं और उन्हें बहुत ही सावधानी से संभालना पड़ता था।

जब बीमार हालत में बारिश में करना पड़ा था शूट

इसके साथ ही मीनाक्षी शेषाद्रि से इस बातचीत में उनके सबसे बेकार अनुभव के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने बताया था कि उन्हें एक बार डायरिया में भी शूट करना पड़ा था। उनका ये शूट बारिश में था, जो कि रोमांटिक गाना था। डायरिया में भी वो एक्टिंग कर रही थीं।

जया बच्चन ने भी बताया था सेट का माहौल

इतना ही नहीं, एक बार जया बच्चन ने भी उन दिनों के शूटिंग सेट का हाल बताया था। उन्होंने चैट शो ‘वट द हैल नव्या’ में बातचीत में बताया था कि जब वो लोग आउटडोर शूटिंग के लिए जाते थे तो उनके पास वैन्स नहीं होती थी। उन्हें झाड़ियों के पीछे कपड़े बदलने पड़ते थे। अभिनेत्री ने बताया था कि सेट पर टॉयलेट की व्यवस्था भी नहीं होती थी। इसे उन्होंने अजीब और शर्मनाक बताया था। इसके साथ ही जया बच्चन ने बताया था कि सेट पर सैनिटरी पैड इस्तेमाल करने और उसे फेंकने की भी व्यवस्था नहीं होती थी। अगर दिन में 3-4 पैड का इस्तेमाल किया गया तो उसे फेंकने के लिए प्लास्टिक की थैलियां लेकर जाना पड़ता था। फिर उन्हें एक टोकरी में रख दिया जाता था ताकि घर पहुंचकर इससे छुटकारा पाया जा सके।

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