टॉलीवुड के प्रिंस कहे जाने वाले एक्टर महेश बाबू (Mahesh Babu) को उनकी एक्टिंग और नेक कामों के लिए जाना जाता है। वो अक्सर गरीबों की मदद करते हुए नजर आ ही जाते हैं इसलिए, उन्हें दिल से भी अमीर कहा जाता है। उनके सुपरस्टार पिता कृष्णा घट्टामनेनी (Krishna Ghattamaneni) की बीते दिन ही डेथ एनिवर्सरी थी। उनका निधन 15 नवंबर 2022 को हो गया था। ऐसे में पिता की पुण्यतिथि पर साउथ स्टार ने उनकी याद में मेमोरियल सर्विस रखी थी। इसी दौरान महेश बाबू ने गरीब बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाने का ऐलान किया। उन्होंने ये फैसला पिता की याद में लिया है।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट की मानें तो महेश बाबू और उनकी वाइफ नम्रता शिरोडकर (Namrata Shirodkar) ने साल 2020 में महेश बाबू फाउंडेशन की स्थापना की थी। पिता की पहली बरसी पर महेश बाबू फ़ाउंडेशन ने सुपरस्टार कृष्णा एजुकेशन्ल फंड की स्थापना की। इस एजुकेशन्ल फंड के तहत आर्थिक तौर पर कमजोर और खासतौर पर दिल की बीमारी से ग्रसित बच्चों की मदद करने का फैसला किया। उनका खर्च महेश बाबू फाउंडेशन के तहत उठाया जाएगा। आपको बता दें कि महेश और नम्रता के बेटे गौतम एक हार्ट कंडिशन के साथ पैदा हुए थे। उन 40 बच्चों की स्कूल से लेकर पोस्ट ग्रैजुएशन की शिक्षा तक मदद करने की बात की गई है।

इनकम का 30% हिस्सा करते हैं डोनेट

महेश बाबू अपनी फिल्मों, एक्टिंग और दूसरे बिजनेस से होने वाली सालाना कमाई का 30 प्रतिशत हिस्सा जरूरतमंद लोगों को दान करते हैं। इतना ही नहीं एक्टर लोगों की मदद करने से कभी पीछे नहीं रहते हैं। साल 2014 में हुदहुद सायक्लोन से तबाह हुए एरिया के लोगों की मदद के लिए भी हाथ बढ़ाया था। उन्होंने आंध्रप्रदेश रिलीफ फंड में 25 लाख रुपए दान किए थे। उनके पेरेंट्स ने भी 25 लाख अलग से दान किए थे।

1000 बच्चों की बचा चुके जान

महेश बाबू के नेक कामों की गिनती आसान नहीं हैं। वो एनजीओ चलाते हैं। एक्टर रेन्बो चिल्ड्रन हॉस्पिटल से एसोसिएट हैं और दिल की बीमारी वाले गरीब बच्चों का मुफ्त में इलाज भी करवाते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वो 1000 से ज्यादा बच्चों की हार्ट सर्जरी करवाकर उनकी जान बचा चुके हैं।

दो गांव को भी ले चुके गोद

यहीं नहीं, महेश बाबू दो गांव को भी गोद ले चुके हैं। एक ने साल 2015 में अपने पिता कृष्णा बाबू के गांव बुरिपलेम को गोद लेने का अनाउंसमेंट किया था हालांकि, बाद में ये खबर भी सामने आई थी कि उन्होंने बुरिपलेम के साथ-साथ सिद्दापुर नाम का एक और गांव गोद ले लिया। उन गांव की सड़के, स्कूल, हॉस्पिटल, पीने के पानी जैसी सुविधाओं की पूरी जिम्मेदारी महेश बाबू अपने खर्च पर ही उठाते हैं।