Mahabharat Episode 10 April 2020 Updates: श्रीकृष्ण की लीला अपरमपार है। मथुरावासी जिस अधर्मी से परेशान थे, कृष्ण ने उसे अच्छे से सबक सिखाया और अब विश्वकर्मा ने कृष्ण के कहने पर द्वारका का निर्माण कर दिया है। सभी मथुरा निवासी द्वारका चले गए हैं और वहां पर खुशी-खुशी अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
इधर, रुक्मिणी ने विद्रोह करते हुए कहा कि वह शिशुपाल के गले में वरमाला नहीं डालेंगीं। ऐसे में रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पत्र लिखती हैं। स्वयंवर में श्रीकृष्ण को न बुलाने की योजना है। क्योंकि रुक्मिणी के पिता कहते हैं कि श्रीकृष्ण राजवंश से नहीं है। और रुक्मिणी राजवंशी हैं ऐसे में अगर श्रीकृष्ण को पसंद करती हैं रुक्मिणी तो भी यह विवाह नहीं हो सकता।
इसके बाद रुक्मिणी अपने भ्राताश्री से पूछती हैं कि अगर शिशुपाल उनकी वरमाला के लायक ही नहीं हों तो? तो भी रुक्मिणी के भाई कहते हैं कि उन्हें शिशुपाल के गले में ही वरमाला डालनी होगी। इसको लेकर रुक्मिणी विरोध प्रकट करती हैं औऱ श्रीकृष्ण से विनती करने लगती हैं। ऐसे में वासुदेव पुत्र को रुक्मिणी का पत्र मिलता है और वो उसकी पुकार सुनकर उसे बचाने के लिए निकल पड़ते हैं। कृष्ण रुक्मिणी को बचाकर अपने साथ ले जाते हैं वहीं युद्ध में हारकर विदर्भ का राजकुमार और रुक्मिणी का भाई वासुदेव कृष्ण से हारकर मौत की गुहार लगाता है लेकिन कृष्ण उसको ये कहते हुए माफ कर देते हैं कि तुम्हारा कोई अपराध नही है तुम बस अपनी बहन की रक्षा कर रहे थे।
Highlights
मामा शकुनी ने चाल चलते हुए दुर्योधन और उसके पिता को भड़काना शुरू कर दिया है। शकुनी ने दुर्योधन से ये तक कह दिया कि भांजे बस तुम महाराज को संभाल लो और फिर देखो मेरा कमाल। वहीं दुर्योधन ने अपने पिता से कहा कि अगर उसे कोई नीचा दिखाने की कोशिश करेगा तो फिर वो आत्महत्या कर लेगा।
धृतराष्ट्र अपने सारथी संजय से पूछता है कि नगर में माहौल कैसा है। संयज महाराज से कहता है कि पूरा नगर युधिष्ठिर के साथ है ऐेसे में उनके पास इतनी ताकत है कि अगर वो चाहें तो फिर आपके सिर से भी मुकुट उतार सकता है। संंजय की बात सुनकर महाराज काफी ज्यादा भयभीत हो जाते हैं।
विदर्भ का राजकुमार और रुक्मिणी का भाई वासुदेव कृष्ण से हारकर मौत की गुहार लगाता है लेकिन कृष्ण उसको ये कहते हुए माफ कर देते हैं कि तुम्हारा कोई अपराध नही है तुम बस अपनी बहन की रक्षा कर रहे थे।
कृष्ण ने रुक्मिणी की पुकार सुनकर उसकी मदद करते हुए उसे स्वंयवर से ले आया है। ऐसे में ये बात रुक्मिणी के परिवार वालों को बरदाश्त नही हुई और उन्होंने कृष्ण के खिलाफ युद्ध का एलान कर दिया है। दोनों सेनाओं के बीच जमकर युद्ध हो रहा है। वहीं क्रोधित होकर कृष्ण ने अपना चक्र निकाल लिया है ऐसे में विपक्षी की मौत तय है।
शिशुपाल रुक्मिणी से शादी करने के लिए स्वयंवर में पहुंच चुका है। रुक्मिणी को पूरा विश्वास है कि कृष्ण उनकी पुकार सुनकर उनकी मदद करने के लिए जरूर आएंगे।
कृष्ण ने फैसला कर लिया है कि वो रुक्मिणी को बचाने के लिए जाएंगे। ऐसे में कृष्ण के भाई बलराम उन्हें अकेला जाते देख कहते हैं कि मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा। कृष्ण के काफी समझाने के बावजूद बलराम नही मानते आखिरकार कृष्ण ये फैसला लेते हैं कि पहले मैं जाता हूं और आप मेरे पीछे-पीछे सेना लेकर आ जाएं।
आज कल के समय में पुरुष इस बात को भूल चुके हैं कि वरमाला वधु के हाथ में होती है जिसके चलते उसे पूरा अधिकार होता है अपने पति का चुनाव करने का लेकिन अगर फिर भी उसकी इच्छा को कुछला जाए तो फिर ऐसे में खुद भगवान को हस्तक्षेप करना पड़ता होता है। रुक्मिणी ने अपने साथ हो रहे अन्याय के लिए कृष्ण को पत्र लिखा है।
शकुनी ने दुर्योधन को भड़काना शुरू कर दिया है। शकुनी चाहता है कि दुर्योधन के हाथ सारा राजपाठ आजाए। शकुनी अपने भांजे से कहता है कि तुम्हें अपने अधिकार के लिए लड़ना होगा जाओ और जाकर छीन लो अपना हक। शकुनी की
बात सुनकर दुर्योधन काफी ज्यादा नाराज होता है और अपने पिता से कहता है कि वो बिल्कुल भी इस बात को नहीं सहेगा कि उसकी जगह उसके भाई को युवराज नियुक्त किया जाए।
रुक्मिणी के भाई कहते हैं कि उन्हें शिशुपाल के गले में ही वरमाला डालनी होगी। इसको लेकर रुक्मिणी विरोध प्रकट करती हैं औऱ श्रीकृष्ण से विनती करने लगती हैं। ऐसे में वासुदेव पुत्र को रुक्मिणी का पत्र मिलता है जिसमे वह अपना हाल बयां करती हैं। वासुदेव पुत्र, रुक्मिणी का हाल जानकर काफी ज्यादा भावुक हो जाते हैं।
रुक्मिणी ने किया विद्रोह कि वह शिशुपाल के गले में वरमाला नहीं डालेंगीं। ऐसे में रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पत्र लिखती हैं। स्वयंवर में श्रीकृष्ण को न बुलाने की योजना है। क्योंकि रुक्मिणी के पिता कहते हैं कि श्रीकृष्ण राजवंश से नहीं है। और रुक्मिणी राजवंशी हैं ऐसे में अगर श्रीकृष्ण को पसंद करती हैं रुक्मिणी तो भी यह विवाह नहीं हो सकता। इसके बाद रुक्मिणी अपने भ्राताश्री से पूछती हैं कि अगर शिशुपाल उनकी वरमाला के लायक ही नहीं हों तो? तो भी रुक्मिणी के भाई कहते हैं कि उन्हें शिशुपाल के गले में ही वरमाला डालनी होगी। इसको लेकर रुक्मिणी विरोध प्रकट करती हैं औऱ श्रीकृष्ण से विनती करने लगती हैं। ऐसे में वासुदेव पुत्र को रुक्मिणी का पत्र मिलता है जिसमे वह अपना हाल बयां करती हैं।
शिशुपाल के साथ रुक्मिणी का हाथ मांगा जा रहा है। लेकिन रुक्मिणी ये नहीं चाहतीं। वह नहीं चाहतीं कि रुक्मिणी शिशुपाल जो कि एक शत्रु है, उससे उनकी शादी हो। मगध नरेशा के सामने श्रीकृष्ण का नाम लेने से सब भड़क जाते हैं। रुकमण (रुक्मिणी के भाई) कहते हैं हमारी बहन का विवाह श्रीकृष्ण से होना चाहिए।
इधर श्रीकृष्ण द्वारिका में हैं। वहीं शकुनी, धृतराष्ट्र मायूस बैठे हैं। अब रुक्मिणी स्वयंवर की बारी। देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रुक्मिणी (या रुक्मणी) भगवान कृष्ण की प्रमुख पत्नी और रानी हैं,द्वारका के राजकुमार कृष्ण ने उनके अनुरोध पर एक अवांछित विवाह को रोकने के लिए उनका अपहरण कर लिया और उनके साथ भाग गए और उन्हें दुष्ट शिशुपाल (भागवत पुराण में वर्णित) से बचाया। रुक्मिणी कृष्ण की पहली और सबसे प्रमुख रानी है। रुक्मिणी को भाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है।
आई फैसले की घड़ी: महाराज धृतराष्ट्र कहते हैं-जेष्ठ पांडू पुत्र युधिष्ठर को युवराज बनाया जाए। जी हां, महाराज धृष्टराष्ट्र की आंखे खुलती हैं। मोह माया से परे देखते हुए वह युधिष्ठर को युवराज घोषित करते हैं। तभी शंखनाद होने लगता है।
कुछ ही देर में महाराज हस्तिनापुर को उसका युवराज: तभी सभा बैठती है। सभा में तभी कुछ लोग आते हैं जो बोलते बताते हैं कि एक व्यक्ति ने किसी की हत्या कर दी। ऐसे में महाराज आप फैसला करें इस अपराधी का। सभा में कहा जाता है कि केस आया ही है तो अपराधियों को क्या सजा देनी है युधिष्ठर और दुर्योधन को तय करने दें। ऐसे में पहले दुर्य़ोधन न्याय देता है वह कहता है कि इन्हें दंड देना चाहिए। ये अपराधी हैं। वहीं युधिष्ठर आते हैं वह कहते हैं कि दंड देने से पहले वह अपराधी की जाति जानना चाहते हैं। अपराधी बताते हैं कि वह शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण। युधिष्ठर कहते हैं शूद्र को 4 वर्ष, वैश्य-8 वर्ष और क्षत्रिय को 16 वर्ष का। लेकिन ब्राह्मण को मैं नहीं दे सकता दंड क्योंकि उन्होंने घोर अपमान किया है।
कुछ ही देर में महाराज हस्तिनापुर को उसका युवराज: तभी सभा बैठती है। सभा में तभी कुछ लोग आते हैं जो बोलते बताते हैं कि एक व्यक्ति ने किसी की हत्या कर दी। ऐसे में महाराज आप फैसला करें इस अपराधी का। सभा में कहा जाता है कि केस आया ही है तो अपराधियों को क्या सजा देनी है युधिष्ठर और दुर्योधन को तय करने दें। ऐसे में पहले दुर्य़ोधन न्याय देता है वह कहता है कि इन्हें दंड देना चाहिए। ये अपराधी हैं। वहीं युधिष्ठर आते हैं वह कहते हैं कि दंड देने से पहले वह अपराधी की जाति जानना चाहते हैं। अपराधी बताते हैं कि वह शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण। युधिष्ठर कहते हैं शूद्र को 4 वर्ष, वैश्य-8 वर्ष और क्षत्रिय को 16 वर्ष का। लेकिन ब्राह्मण को मैं नहीं दे सकता दंड क्योंकि उन्होंने घोर अपमान किया है।
इधर महाराज धृतराष्ट्र को लग रहा है कि कहीं उनके अंधे होने का दंड उनके बेटे दुर्योधन को न मिले। उन्हें हर एक व्यक्ति कि याद आती है कि किसने दुर्योधन के राजा बनने पर सहमति जताई तो कौन चाहता है कि युधिष्ठर हस्तिनापुर की बागडोर संभाले।
शकुनी कहता है -''दुर्य़ोधन मुंह मत लटकाओ, लेकिन हार नहीं मानते। न जाने तुम्हारे भाग्य में क्यालिखाहै। जब तक तुम्हारा मामा जी रहा है तब तक ये मुकुट तुम से कोई नहीं छीन सकता।''
कुलगुरू, द्रोणाचार्य और सभीजन चाहते हैं कि युधिष्टर ही राजा बनें। लेकिन महाराज धृतराष्ट्र के मन में है कि वह अपने बेटे दुर्योधन को ही राजा बनाएं। दुर्योधन राजनीति नहीं जानता। वह तो अपने अभिमान और गुरूर के लिए ये सब कर रहा है। उसके सीने में क्रोध का एक नर्क दहक उठा है, जिसे हवा दे रहा है शकुनी। साथ ही अब कर्ण भी पास है।