एम करुणानिधि (3 जून, 1924-7 अगस्त, 2018)
यह उदीयमान अभिनेता और उभरते हुए राजनेता की दोस्ती की कहानी है। दोनों ने साथ काम किया और उनकी दोस्तीन लगभग ढाई दशक तक चली। उदीयमान अभिनेता थे एमजी रामचंद्रन (एमजीआर), जो फिल्मों में जमने के लिए लिए संघर्ष कर रहे थे। उभरते हुए राजनेता थे करुणानिधि। एमजीआर गांधीवादी थे और कांग्रेस से जुड़े थे। करुणानिधि पेरियार की विचारधारा से अभिभूत हो राजनीति में उतरे थे। दोनों 1947 की फिल्म ‘राजकुमारी’ में करीब आए जिसमें करुणानिधि पटकथा सहायक थे। इस बीच 1952 में तमिल सिनेमा में एक महत्वपूर्ण फिल्म ‘पराशक्ति’ रिलीज हुई। इसने नास्तिकता, जातिविहीन समतामूलक समाज की विचारधारा वाली पेरियार और अन्नादुरई की डीएमके को एक मजबूत जमीन पर खड़ा कर दिया था।
‘पराशक्ति’ तमिल सिनेमा में उलटफेर करने वाली फिल्म थी। इसके संवाद करुणानिधि ने लिखे थे, जो इतने ज्यादा पसंद किए गए थे कि सिर्फ संवादों का ही |ऑडियो कैसेट अलग से जारी किया गया था। यह खुलकर ब्राह्मणवाद का विरोध करती थी और पत्थरों पर फूल चढ़ाने से वह भगवान नहीं बन जाता किस्म के विस्फोटक संवादों के कारण हिंदुओं के एक बड़े वर्ग के गुस्से का शिकार बन गई थी। सेंसर को मजबूरी में पत्थर शब्द को हटाना पड़ा था। इस फिल्म के क्लाइमैक्स का लंबा अदालती दृश्य बहुत प्रभावशाली था, जिसमें नायक (शिवाजी गणेशन, जिनकी यह पहली फिल्म थी) व्यवस्था पर हथौड़े की तरह चोट-पर-चोट करते हैं। ‘पराशक्ति’ के जरिए करुणानिधि ने अपनी पार्टी की विचारधारा खुल कर सामने रखी थी, जिसके बाद हमेशा के लिए तमिल सिनेमा बदल गया था।
इसके बाद हुआ यह कि कांग्रेस की नीतियों से नाखुश एमजी रामचंद्रन ने अन्नादुराई की द्रविण मुनेत्र कषगम जॉइन की। करुणानिधि ने उनके लिए नौ फिल्में लिखीं। इन फिल्मों में करुणानिधि ने डीएमके की विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए रामचंद्रन की परदे पर मसीहाई छवि गढ़ी। एक ऐसा नायक परदे पर उतारा गया, जो गरीबों का मददगार था और अन्याय के खिलाफ खड़ा होता था। दर्शक रामचंद्रन के दीवाने हो गए। अन्नादुराई के निधन के बाद जब करुणानिधि डीएमके अध्यक्ष बने तो उन्होंने रामचंद्रन को पार्टी का खजांची बना दिया। दोनों ने डीएमके को एक ताकतवर राजनैतिक संगठन बना दिया।
मगर नियति को कुछ और मंजूर था। करुणानिधि को लगा कि रामचंद्रन पचास साल उलांघ चुके हैं और अब सिनेमा को नए खून वाला नायक चाहिए। लिहाजा करुणानिधि ने अपनी कलम के दम पर बेटे मुथु को सिनेमा में मसीहाई छवि देनी चाही। नतीजा यह हुआ कि एमजीआर ने बगावत कर दी और करुणानिधि पर भ्रष्टाचार के साथ ही पार्टी की विचारधारा को तिलांजलि देने का आरोप लगाया।
करुणानिधि ने उन्हें डीएमके से बाहर कर दिया तो रामचंद्रन ने अपनी नई पार्टी अण्णा द्रविण मुनेत्र कषगम बना ली। 1977 के विधानसभा चुनाव में वह करुणानिधि को टक्कर देने के लिए उनके सामने थे। रामचंद्रन की गरीबों के मसीहा की छवि उनके काम आई और रामचंद्रन सूबे के मुख्यमंत्री बन गए। जब करुणानिधि ने मुख्यमंत्री रामचंद्रन के विरोध में 200 किमी पैदल यात्रा की घोषणा की तो रामचंद्रन ने उनके लिए एंबुलेंस भिजवा दी थी। बदले वक्त में भी दोनों की मित्रता अनोखी थी और उनके विधायकों को अक्सर लगता था कि कहीं दोनों पार्टियां एक दूसरे में नहीं मिल जाएं।
