बॉक्स ऑफिस पर ठीक-ठाक ओपनिंग करने के बाद फरहान अख्तर की लखनऊ सेंट्रल ने दूसरे दिन कमाई में थोड़ी थी बढ़ोत्तरी दिखाई। पहले दिन फिल्म ने जहां 2.04 करोड़ रुपए कमाए वहीं दूसरे दिन 2.82 करोड़ रुपए की कमाई की। जिसके साथ ही फिल्म का कुल कलेक्शन 4.86 करोड़ रुपए हो गया। ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श ने ट्विट कर बताया- शनिवार को लखनऊ सेंट्रल ने 38 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दिखाई। शुक्रवार को फिल्म ने 2.04 करोड़ और शनिवार को 2.82 करोड़ रुपए की कमाई की। भारत में फिल्म का कुल कलेक्शन 4.86 करोड़ रुपए हो गया है।
रंजीत तिवारी ने लखनऊ सेंट्रल के जरिए निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा है। हिट फिल्म बनने के लिए फरहान की फिल्म को रविवार को अच्छा कलकेशन किया जाना जरूरी है। यह फिल्म 30 करोड़ रुपए के बजट में बनी है। इस फिल्म को कंगना रनौत की सिमरन से कड़ी टक्कर मिल रही है। जिसकी वजह से यह रेस में पिछड़ रही है। जहां दो दिन में लखनऊ सेंट्रल का कलेक्शन 4.86 करोड़ रुपए है वहीं सिमरन ने अब तक 6.53 करोड़ रुपए की कमाई कर ली है। बात करें यदि फिल्म की कहानी की तो फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे कुछ कैदी मिलकर बैंड बनाने की कोशिश करते हैं जबकि उनका असल मकसद जेल से भागने का होता है।
#LucknowCentral is now dependent on weekdays biz for a decent total… Fri 2.04 cr, Sat 2.82 cr, Sun 3.56 cr. Total: ₹ 8.42 cr. India biz.
— taran adarsh (@taran_adarsh) September 18, 2017
#LucknowCentral day-wise growth in %…
Sat [vis-à-vis Fri]: 38.24%
Sun [vis-à-vis Sat]: 26.24%
India biz.— taran adarsh (@taran_adarsh) September 18, 2017
फिल्म में आपको जबर्दस्त एक्टिंग के साथ एक म्यूजिकल जर्नी देखने को मिलेगी। कहानी की बात करें तो किशन गिरहोत्रा (फरहान अख्तर) उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद का रहने वाला है जो मनोज तिवारी की तरह एक गायक बनना चाहता है। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए वो कोशिश भी करता है लेकिन तभी एक झूठे इल्जाम की वजह से उसकी जिंदगी बदल जाती है।
दरअसल उस पर मुरादाबाद के आईएएस अधिकारी के खून का गलत आरोप लग जाता है। जिसकी वजह से उसे जेल जाना पड़ता है। उसे सजा उस गुनाह की सजा मिल जाती है जो उसने कभी किया ही नहीं होता। इसके बाद वो आजाद होने के सपने देखता है। तभी उसे पता चलता है कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री कैदियों का बैंड बनाकर उनके बीच एक प्रतियोगिता करवाना करना चाहते हैं। इस काम में किशन को मदद मिलती है एक एनजीओ कर्मी (डायना पेंटी) की। बस यहीं से उसके लिए उम्मीद की किरण जगती है।