22 जुलाई को हिंदी सिनेमा के लिए एक अहम तारीख कहा जाए तो ये कुछ गलत नहीं होगा। जी हां क्योंकि इसी दिन बॉलीवुड को बेहतरीन हिट्स देने वाले सिंगर मुकेश का जन्म हुआ था। एक इंजीनियर पिता और घर संभालने वाली मां के परिवार में मुकेश 6ठें नंबर पर आते थे। उन्हें मिलाकर परिवार में कुल 10 सदस्य थे। गाने की शुरुआत उनके लिए उनके घर से ही हुई। हालांकि परिवार में कोई गायक नहीं था। लेकिन उनकी दीदी उस समय गाना सीखा करती थीं। जब गुरु जी दीदी को गाना सिखाते तो मुकेश भी उसी कमरे के किसी कोने में खड़े होकर चुपचाप सारी बारीकियां सीख रहे होते। ऐसे में थोड़ा रिआस गुरुजी की क्लास से हो जाता और बाकी का के.एल.सहगल के गानों से। जी हां मुकेश सहगल साहब के बड़े फैन थे। यही वजह थी कि शुरुआती दिनों में वो अपनी सिंगिंग में अपने आइडल की नकल भी करते थे।
सिंगिंग के शौकीन मुकेश को पढ़ाई में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं था। यही वजह थी कि 10वीं के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और PWD की नौकरी पकड़ ली। लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं मन में था कि गायकी में आगे बढ़ा जाए। यही वजह थी कि उस दौरान भी वह वाइस रिकॉर्डिंग का काम करते थे। गायकी के प्रति उनकी इच्छा इतनी प्रबल थी कि जल्द इसके लिए उनका रास्ता खुल गया। मौका था बहन की शादी का, इस मौके पर मुकेश ने एक गाना गाया। शादी में आए एक वीआईपी गेस्ट और उनके दूर के रिश्तेदार मोतीलाल को मुकेश की आवाज बहुत पसंद आई। उन्होंने मुकेश की बहुत तारीफ की और उन्हें मुंबई चलने का ऑफर दिया। फिर क्या था मुकेश ने बिना दो बार सोचे हां कर दी और रवाना हो गए। मुंबई में मोतीलाल जी ने मुकेश को संगीत गुरु पंडित जगन्नाथ प्रसाद के हवाले कर दिया। वहां उन्होंने गायकी से जुड़े नए पहलू सीखे।
अब मुंबई आए और एक्टिंग में हाथ ना आजमाएं ऐसा कैसे हो सकता है। मुकेश ने भी यही किया। बतौर गायक शुरुआत करने से पहले मुकेश ने 1941 में आई फिल्म निर्दोष से एक्टिंग में हाथ आजमाया। लेकिन बात नहीं बनी फिल्म ज्यादा चली नहीं। मुकेश को भी फायदा नहीं हुआ। उन्होंने इस फिल्म में गाना भी गाया था। उन्हें सिंगिंग में पहला ब्रेक 1945 में आई फिल्म ‘पहली नजर’ में मिला। इस फिल्म में उन्हों हिट सॉन्ग, ‘दिल जलता है तो जलने दे’ गाया था। उन्होंने इस गाने को के.एल.सहगल के स्टाइल में इस कदर उतारा था कि जब के.एल.सहगल ने ये गाना सुना तो उन्होंने कहा, कमाल है…मुझे याद नहीं आ रहा मैंने ये गाना कब गाया था।
लिजेंड्री म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद अली ने मुकेश को अपना एक स्टाइल बनाने में मदद की। उन्होंने मुकेश को सहगल स्टाइल से बाहर निकाला। धीरे-धीरे मुकेश राजकपूर की आवाज बन गए। राजकपूर के लिए उन्होंने आग, आवारा, श्री 420, अनाड़ी, संगम, मेरा नाम जोकर जैसी कई हिट फिल्मों में गाना गाया।
सिंगिंग में अच्छा कर रहे मुकेश का करियर नीचे तब आने लगा जब एक बार फिर उन्होंने एक्टिंग करने की सोची। 1953 में ‘माशूका’ और 1956 में ‘अनुराग’ के बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होने की वजह से वह आर्थिक तंगी में आ गए। हालात ऐसे हो गए थे कि वो बच्चों की स्कूल फीस तक जमा नहीं कर पा रहे थे। उनके बच्चों को स्कूल से निकाल दिया गया था। लेकिन मुकेश ने कभी हिम्मत नहीं हारी। वो समय की इस परीक्षा में कामयाब हुए और 1958 में यहूदी में कामयाब गाने देने के बाद मधुमति, परवरिश, आनंद, कभी कभी जैसे शानदार फिल्मों में अपनी आवाज का जादू बिखेरा।
12 अगस्त साल 1976 में अमेरिका नें एक कॉन्सर्ट के दौरान दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनकी मौत हो गई। उनके कई हिट गाने मौत के बाद रिलीज हुए। उनका आखिरी गाना 1978 में आई फिल्म सत्य शिवम सुंदरम का ‘चंचल निर्मल कोमल संगीत की देवी‘ था।