बिहार में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं जिसकी तारीखों का ऐलान भी कर दिया गया है। तीन चरणों में होने वाले इस चुनाव की सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है। इस बीच कुमार विश्वास का एक ट्वीट काफी वायरल हो रहा है। जिसमें कुमार विश्वास ने कहा है कि सत्ता को सच, संवेदना व मनुष्यता नहीं, फ़रेब व मतदाताओं का खून चाहिए। यही नहीं कुमार विश्वास ने अपने इस ट्वीट में खुद पर भी चुटकी ली है।
दरअसल चुनाव को लेकर आस्ट्रेलिया के ला ट्रोब यूनिवर्सिटी में हिंदी भाषा एवं साहित्य के लेक्चरर इयान वुल्फोर्ड ने एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने मशहूर लेखक फणीश्वरनाथ रेणु के एक कोट्स का जिक्र किया है। इयान ने लिखा, “लाठी-पैसे और जाति के ताकत के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। मैं इन तीनों के बगैर चुनाव लड़कर देखना चाहता हूँ – फणीश्वरनाथ रेणु”। कुमार विश्वास ने इयान के इसी ट्वीट को रीट्वीट करते हुए अपनी बात कही है जिसपर खूब कमेंट्स आ रहे हैं।
कुमार विश्वास ने इयान वुल्फोर्ड के ट्वीट पर लिखा, ग़लतफ़हमी में थे बेचारे, हार गए थे! कुमार ने इस बाबत उन कई साहित्यकारों का नाम लिया जिन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। कुमार ने आगे लिखा, इनके बाद फ़िराक़ साहब, डॉ नामवर सिंह व गोपालदास नीरज जी भी लड़े, ज़मानतें ज़ब्त हुईं! कुमार ने खुद पर भी चुटकी लेते हुए लिखा, ख़ाकसार को भी अपने भोले और महान पूर्वजों के पदचिह्नों पर चलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सत्ता को सच,संवेदना व मनुष्यता नहीं, फ़रेब व मतदाताओं का खून चाहिए।
कुमार विश्वास के इस ट्वीट पर कमेंट करते हुए एक यूजर ने लिखा, आप हो ही ग़रीब आदमी। 100 करोड़ दे दिए होते तो उच्च सदन में होते। एक ने लिखा, साहब, राष्ट्रवाद आज खून बनकर, हरेक देशवासी के शरीर में दौड़ रहा है। यकीन मानिए । इस चुनाव में भी, देश की और बिहार की ही जीत होगी । -जय माँ भारती।
आप हो ही ग़रीब आदमी 100 करोड़ दे दिए होते तो उच्च सदन में होते।
— Sunil Dhakad (@SunilDhakad525) September 26, 2020
इसके साथ एक यूजर ने जवाब में लिखा, यदि शक्ति को ही जीवित रहने की कसौटी मान लिया जाय तो एक भूखा कलाकार हंसी का पात्र होगा और एक डाकू प्रशंसा का पात्र होगा। मनोज भाटिया नाम के यूजर ने लिखा, डॉक्टर साहब वैसे तो आप हमारे ट्वीट के जवाब देते नहीं। पर चलो मैं बताता हूं कि ऐसा क्यों होता है। जनता को नेताओं से जूते खाना ज्यादा पसंद है। राजनेताओं से वफ़ा करके क्या आज तक किसी का भला हुआ है। राजनेता का काम जनता को मूर्ख बना कर अपना घर भरना रह गया है। जनता को इसमें मज़ा आता है।
डॉक्टर साहब वैसे तो आप हमारी ट्वीट के जवाब देते नही। पर चलो मैं बताता हूं कि ऐसा क्यों होता है। जनता को नेताओ से जूते खाना ज्यादा पसंद है। राजनेताओं से वफ़ा करके क्या आज तक किसी का भला हुआ है। राजनेता का काम जनता को मूर्ख बना के अपना घर भरना रह गया है। जनता को इसमे मज़ा आता है।
— मनोज भाटिया (@LADDUBHAISMSKIN) September 26, 2020
दिनकर नाम के यूजर ने कुमार विश्वास के ट्वीट पर कमेंट किया, वो गलतफ़हमी में थे और आप में तो थी ही नहीं? यूं तो हारना ज़रूरी था खुद की खातिर! वरना 2014 से अबतक का जो सफर आपने तय किया उसका आनंद लोग कहां पाते! आपका क्या है…आप भी खो जाते! चले जाइएगा जब समय आएगा। अभी तो कविता ही ठीक है।
वो गलतफहमी में थे और आप में तो थी ही नहीं?यूं तो हारना ज़रूरी था खुद की खातिर!वरना 2014 से अबतक का जो सफर आपने तय किया उसका आनंद लोग कहां पाते!आपका क्या है…आप भी खो जाते! चले जाइएगा जब समय आएगा अभी तो कविता ही ठीक है
— दिनकर ‘दिनकर’ (@dinksri) September 26, 2020
एक ने लिखा, ये पूर्णत: सत्य नहीं है सर। मतदाता नेताओं से ज्यादा जिम्मेवार हैं अपने बदहाली के। चाटुकारिता में व्यस्त हैं सभी। गर नेता साथ फोटो खींचा लिए तो सर्वेसर्वा समझ बैठते हैं। चमचागिरी चालू कर देते हैं। नेता तो बस इनकी विवशता का उपयोग करते हैं।

